मार्गशीर्ष माह का प्रथम प्रदोष व्रत होगा रवि प्रदोष, जानिए इसकी तिथि, मुहूर्त और महत्व

मार्गशीर्ष का प्रथम प्रदोष व्रत 10 दिसंबर रविवार को रखा जएगा. रविवार के दिन होने के कारण यह रवि प्रदोष व्रत होगा.

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रवि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का श्रृंगार और रुद्राभिषेक करने से शनि, राहु केतु जैसे ग्रहों के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है.

Margashirsha Pradosh Vart: सतानत पंचांग के अनुसार हर माह के दोनों पक्षों के त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत (Pradosh Vart ) रखा जाता है. शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की पूजा के लिए रखे जाने वाले व्रत बहुत महत्वपूर्ण हैं. मान्यता है कि पूरे दिन व्रत रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और जीवन से कष्टों का निवारण होता है. पंचांग के अनुसार 28 नवंबर से मार्गशीर्ष माह (Margashirsh) की शुरुआत हो चुकी है और मार्गशीर्ष का प्रथम प्रदोष व्रत 10 दिसंबर रविवार को रखा जएगा. रविवार के दिन होने के कारण यह रवि प्रदोष व्रत होगा. आइए जानते हैं रवि प्रदोष व्रत ( Ravi Pradosh Vart) के दिन शुभ मुहूर्त और इसका महत्व. आंवले के पेड़ की पूजा कब की जाती है और कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?

तिथि और मुहूर्त - पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 10 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 12 मिनट से शुरू होकर 11 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 10 मिनट तक रहेगी. प्रदोष व्रत की पूजा शाम के समय होती है इसलिए प्रदोष व्रत 10 दिसंबर रविवार को रखा जाएगा. उस दिन पूजा का मुहूर्त प्रदोष काल में शाम 5 बजकर 24 मिनट से 8 बजकर 8 मिनट तक है.

रवि प्रदोष व्रत का महत्व - रवि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव का श्रृंगार और रुद्राभिषेक करने से शनि, राहु केतु जैसे ग्रहों के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है. इसके साथ ही जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ती है. स्कंद पुराण के अनुसार प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पर अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवी देवता उनकी वंदना करते हैं. प्रदोष व्रत के दिन सुबह सूर्य की पूजा करनी चाहिए और शाम के समय विधि-विधान से भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करनी चाहिए.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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