हिंदू धर्म में मकर संक्रांति के पर्व का विशेष महत्व है. आज (14 जनवरी) मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य देव का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. कहा जाता है कि जब सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है. इसे दक्षिण भारत में पोंगल, गुजरात और महाराष्ट्र में उत्तरायण व असम में बीहू के नाम से मनाया जा रहा है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, सूर्य उत्तरायण के समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है. कहते हैं कि मकर संक्रांति के दिन से ठंड धीरे-धीरे कम होने लगती है और दिन बड़े होने लग जाते हैं. मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और दान की परंपरा है. इस बार मकर संक्रांति का पर्व आज शुक्रवार के दिन पड़ रहा है. बता दें कि शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है. मान्यता है कि मकर संक्राति के दिन स्नान-दान के बाद तिल के तेल का दिया जला कर मां लक्ष्मी की इस स्तुति का पाठ करने से सुख और सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है.
महा लक्ष्मी स्तोत्र
ऊँ नम: कमलवासिन्यैनारायण्यैनमो नम: ।
कृष्णप्रियायैसारायैपद्मायैच नमो नम: ।।1।।
पद्मपत्रेक्षणायैच पद्मास्यायैनमो नम: ।
पद्मासनायैपद्मिन्यैवैष्णव्यैच नमो नम: ।।2।।
सर्वसम्पत्स्वरूपायैसर्वदात्र्यैनमो नम: ।
सुखदायैमोक्षदायैसिद्धिदायैनमो नम: ।।3।।
हरिभक्तिप्रदात्र्यैच हर्षदात्र्यैनमो नम: ।
कृष्णवक्ष:स्थितायैच कृष्णेशायैनमो नम: ।।4।।
कृष्णशोभास्वरूपायैरत्नपद्मेच शोभने।
सम्पत्त्यधिष्ठातृदेव्यैमहादेव्यैनमो नम: ।।5।।
शस्याधिष्ठातृदेव्यैच शस्यायैच नमो नम: ।
नमो बुद्धिस्वरूपायैबुद्धिदायैनमो नम: ।।6।।
वैकुण्ठे या महालक्ष्मीर्लक्ष्मी: क्षीरोदसागरे।
स्वर्गलक्ष्मीरिन्द्रगेहेराजलक्ष्मीर्नृपालये।।7।।
गृहलगृ क्ष्मीश्च गृहिगृ णां गेहेच गृहगृ देवता ।
सुरभी सा गवां माता दक्षिणा यज्ञकामिनी ।।8।।
अदितिर्देवमाता त्वंकमला कमलालये।
स्वाहा त्वंच हविर्दानेकव्यदानेस्वधा स्मृता ।।9।।
त्वं हि विष्णुस्वरूपा च सर्वाधारा वसुन्धरा ।
शुद्धसत्त्वस्वरूपा त्वं नारायणपरायणा ।।10।।
क्रोधहिंसावर्जिता च वरदा च शुभानना ।
परमार्थप्रदा त्वंच हरिदास्यप्रदा परा ।।11।।
यया विना जगत्सर्वंभस्मीभूतमसारकम्।
जीवन्मृतंच विश्वंच शवतुल्यं यया विना ।।12।।
सर्वेषांच परा त्वं हि सर्वबान्धवरूपिणी ।
यया विना न सम्भाष्यो बान्धवैर्बान्धव: सदा ।।13।।
त्वया हीनो बन्धुहीनस्त्वया युक्त: सबान्धव: ।
धर्मार्थकाममोक्षाणांत्वंच कारणरूपिणी ।।14।।
यथा माता स्तनन्धानां शिशूनांशैशवेसदा ।
तथा त्वंसर्वदा माता सर्वेषांसर्वरूपत: ।।15।।
मातृहीन: स्तनत्यक्त: स चेज्जीवति दैवत: ।
त्वया हीनो जन: कोsपि न जीवत्येव निश्चितम्।।16।।
सुप्रसन्नस्वरूपा त्वं मां प्रसन्ना भवाम्बिके ।
वैरिग्रस्तंच विषयं देहि मह्यंसनातनि ।।17।।
वयं यावत्त्वया हीना बन्धुहीनाश्च भिक्षुका: ।
सर्वसम्पद्विहीनाश्च तावदेव हरिप्रिये।।18।।
राज्यं देहि श्रियं देहि बलं देहि सुरेश्वरि ।
कीर्तिं देहि धनं देहि यशो मह्यंच देहि वै।।19।।
कामं देहि मतिं देहि भोगान्देहि हरिप्रिये।
ज्ञानं देहि च धर्मंच सर्वसौभाग्यमीप्सितम्।।20।।
प्रभावंच प्रतापंच सर्वाधिकारमेव च ।
जयं पराक्रमं युद्धे परमैश्वर्यमेव च ।।21।।
फलश्रुति
इदं स्तोत्रं महापुण्यं त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: ।
कुबेरतुल्य: स भवेद् राजराजेश्वरो महान्।।
सिद्धस्तोत्रं यदि पठेत्सोपि कल्पतरुर्नर: ।
पंचलक्षजपेनैव स्तोत्रसिद्धिर्भवेन्नृणाम्।।
सिद्धिस्तोत्रं यदि पठेन्मासमेकं च संयत: ।
महासुखी च राजेन्द्रो भविष्यति न संशय: ।।
।।इति श्रीब्रह्मवैवर्तमहापुराणेइन्द्रकृतंलक्ष्मीस्तोत्रंसम्पूर्णम्।।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)