काशी में 7 जुलाई से शुरू होगा लक्खा मेला, भगवान जगन्नाथ को लगाई जाएगी 40 तरह के नानखटाई का भोग

काशी में 7 जुलाई से तीन दिवसीय लक्खा मेला शुरू हो रहा है. इस मेले के दौरान रथयात्रा निकाली जाती है. इस वर्ष रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को 40 तरह की नानखटाई का भोग लगाया जाने वाला है.

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हिंदू धर्म में भगवान की पूजा बगैर भोग की पूरी नहीं होती है.

Bhog for Lord Jagannathan : भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) का अपने भक्तों से अनूठा रिश्ता है. भक्तों के प्रेम में प्रभु इतना स्नान कर लेते हैं कि बीमार पड़ जाते हैं और भक्त 14 दिन तक उनकी अनवरत सेवा करके भी नहीं थकते हैं. भक्तों की सेवा से प्रसन्न प्रभु जगन्नाथ स्वस्थ होने पर उनसे मिलने काशी की गलियों में निकल पड़ते हैं. काशी में 7 जुलाई से तीन दिवसीय लक्खा मेला (Lakkha Mela) शुरू हो रहा है. इस मेले के दौरान रथयात्रा निकाली जाती है. इस वर्ष रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को 40 तरह की नानखटाई का भोग (Bhog for Lord Jagannath) लगाया जाने वाला है. आइए जानते हैं लक्खा मेला में इस बार क्या क्या खास होने वाला है……

लक्खा मेले में नानखटाई का भोग

हिंदू धर्म में भगवान की पूजा बगैर भोग की पूरी नहीं होती है. देवी-देवताओं को उनके प्रिय चीजों का भोग चढ़ाया जाता है. काशी में लक्खा मेले के दौरान भगवान जगन्नाथ को नानखटाई का भोग लगाया जाता है.

तैयार हो रही है 40 तरह की नानखटाई

लक्खा मेले में भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के लिए 40 तरह की नानखटाई तैयार की जा रही है. इनमें काजू, पिस्ता, नारियल के पारंपरिक नानखटाई के साथ-साथ चॉकलेट, स्ट्राबेरी के फ्लेवर के नाखटाई भी बनाए जा रहे हैं. काशी में विराजने वाले भगवान जगन्नाथ का नानखटाई से बहुत पुराना संबंध है. यहां दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं और व्यापारियों को नानखटाई से जुड़े इस मेले का पूरे साल इंतजार रहता है.

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ऐसे बनाई जाती है नानखटाई

भगवान जगन्नाथ के प्रिय भोग नानखटाई को तैयार करने में काफी समय और मेहनत लगती है. मैदा, सूजी, नारियल और मेवे को सांचे की मदद से नानखटाई को रूप दिया जाता है और उसे तंदूर में पकाया जाता है.

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भगवान विष्णु के अवतार

भगवान जगन्नाथ के नाम का अर्थ ही है पूरे जगत के नाथ यानी जगन्नाथ. काशी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के अवसर पर लक्खा मेला लगता है. मेले में भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर सवार होकर काशी की गलियों में निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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