Kurma Dwadashi: आज कूर्म द्वादशी पर पढ़ें भगवान श्री हरि विष्णु के इस अवतार की कथा

कूर्म द्वादशी का व्रत पुत्रदा एकादशी के अगले दिन पड़ता है. आज कूर्म द्वादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु के कूर्म स्वरूप की पूजा की जा रही है. आइए आपको बताते हैं भगवान विष्णु के इस अवतार की कथा और इस दिन पूजा करने की विधि.

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Kurma Dwadashi: जानिए भगवान विष्णु के इस अवतार की कथा और पूजा विधि
नई दिल्ली:

पौष मास (Paush Month) के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को कूर्म द्वादशी (Kurma Dwadashi) के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, यह दिन भगवान विष्णु के कूर्म यानी कछुए के अवतार को समर्पित है. माना जाता है कि कूर्म द्वादशी (Kurma Dwadashi 2022) के दिन दान-धर्म और श्राद्ध कार्यों से पापों का नाश होता है. इस बार कूर्म द्वादशी 14 जनवरी यानी आज (शुक्रवार) मनाई जा रही है. कूर्म द्वादशी का व्रत पुत्रदा एकादशी के अगले दिन पड़ता है. कूर्म द्वादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु (Lord Vishnu) के कूर्म स्वरूप की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. इसके साथ ही कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. आइए आपको बताते हैं भगवान विष्णु के इस अवतार की कथा और इस दिन पूजा करने की विधि.

कूर्म अवतार की कथा | Katha Of Kurma Dwadashi

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय देवराज इंद्र ने अपनी शक्ति और ऐश्वर्य के अहंकार में आकार ऋषि दुर्वासा द्वारा दी गई बहुमूल्य माला का निरादर कर दिया था, जिसके पश्चात देवराज इंद्र से कुपित होकर ऋषि दुर्वासा ने उन्हें श्राप दे दिया था. ऋषि दुर्वासा के इस श्राप के कारण देवताओं ने अपना बल, तेज और ऐश्वर्य सब कुछ खो दिया था. इस स्थिति में देवता अत्यंत निर्बल हो गए. देवताओं की ऐसी स्थिति देख असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया. देवताओं को हराकर दैत्यराज बलि ने स्वर्ग पर कब्‍जा जमा लिया. इस बीच तीनों लोकों में राजा बलि का राज स्थापित हो गया और हाहाकार मच गया.

इस स्थिति में सभी देवता एकजुट होकर भगवान श्री हरि विष्णु के पास पहुंचे और अपनी सारी व्यथा बताई, जिसके बाद भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र-मंथन कर अमृत प्राप्त करने और उसका पान कर पुनः अपनी खोई शक्तियां अर्जित करने का सुझाव दिया, लेकिन यह कार्य इतना आसान नहीं था. देवता अत्यंत निर्बल हो चुके थे, अतः समुद्र-मंथन करना उनके सामर्थ्य की बात नहीं थी. इस समस्या का समाधान भी भगवान विष्णु ने निकाल लिया. उन्होंने देवताओं से कहा कि वे जाकर असुरों को अमृत व उससे प्राप्त होने वाले अमरत्व के विषय में बताएं व उन्हें समुद्र-मंथन करने के लिए किसी भी तरह मना लें. इसके बाद दोनों पक्ष मिलकर समुद्र मंथन करें और उससे प्राप्त होने वाली मूल्यवान निधियों को आपस में बांट लें.

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कूर्म द्वादशी व्रत की पूजा विधि | Puja Vidhi Of Kurma Dwadashi

  • बता दें कि कूर्म द्वादशी व्रत के नियमों का प्रारम्भ दशमी तिथि से ही हो जाता है.
  • दशमी के दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें.
  • पूरे दिन सात्विक आचरण का पालन करें.
  • एकादशी को प्रातः स्नान-ध्यान कर पूरे दिन अन्न-जल ग्रहण किये बिना ही व्रत रखना चाहिए.
  • संभव न हो, तो इस व्रत में जल और फल ग्रहण कर सकते हैं.

  • अगले दिन कूर्म द्वादशी के दिन भगवान कूर्म का पूजन करे.
  • भगवान कूर्म के पूजन के पश्चात् प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
  • इस दिन मंदिरों में विशेष पूजा-अनुष्ठान और अभिषेक आदि का आयोजन किया जाता है.
  • भगवान को चंदन, फल-फूल चढ़ाएं व मिष्ठान का भोग अर्पित करें
  • पूजन के समय श्लोकों व मन्त्रों का जाप करें.
  • भगवान् कूर्म की आराधना-उपासना करें.
  • पूजन के बाद भगवान की आरती उतारें.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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