Kanwar Yatra 2025: कांवड़ा यात्रा में इन नदियों के जल से होता है शिवाभिषेक

Kanwar Yatra 2025 : हर साल की तरह इस बार भी शिवभक्त कांवड़ यात्रा लेकर निकले हैं. भोले भंडारी का शिवाभिषेक करने. चलिए जानते हैं इस अभिषेक में कौन कौन सी नदियों के पानी का उपयोग होता है.

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दक्षिण भारत में गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों से जल लाकर शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है.

Kanwar Yatra 2025 : सावन का महीना शुरू होते ही पूरे भारत में हर तरफ 'बोल बम' के जयकारे गूंजने लगते हैं. चारों तरफ नारंगी वस्त्रधारी कांवड़िए नजर आते हैं, जो अपनी आस्था के सफर पर निकलते हैं. यह यात्रा है 'कांवड़ यात्रा'. इसमें शिवभक्त नदियों (Kis Nadi Ke Jal Se Shivabhishek Karna Shubh Hota Hai) से पवित्र जल भरकर उसे कई किलोमीटर पैदल चलकर शिव मंदिरों तक पहुंचाते हैं और भगवान शिव का अभिषेक करते हैं. पर क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra Kahan Se Kahan Tak Jati Hain) के दौरान सिर्फ एक ही नदी से नहीं, बल्कि देशभर की कई पवित्र नदियों से जल एकत्रित कर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है? जी हां, इस यात्रा में गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, सरयू और कई अन्य नदियों का जल भी शामिल होता है, ऐसे में आइए जानते हैं इसकी पूरी कहानी.

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गंगा जल है सबसे प्रमुख - Ganga Jal In Kanwar Yatra

कांवड़ यात्रा की सबसे अहम खासियत होती है गंगाजल. हरिद्वार, ऋषिकेश, गंगोत्री जैसे स्थानों से लाखों श्रद्धालु गंगा जल भरते हैं. कहा जाता है कि गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक करने से जीवन के सारे पाप धुल जाते हैं. हरिद्वार में तो कांवड़ियों का मेला सा लग जाता है.

अब दूसरी नदियों का जल भी होने लगा है शामिल

हाल के वर्षों में यह परंपरा और भी व्यापक हो गई है. अब कांवड़िए गंगा के अलावा यमुना, नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, ताप्ती, ब्रह्मपुत्र, सरयू जैसी नदियों से भी जल भरकर लाते हैं. इसका मुख्य कारण है कि हर क्षेत्र के भक्तों के लिए उनकी

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स्थानीय नदियां भी उतनी ही पवित्र हैं जितनी गंगा. जैसे मध्य प्रदेश और गुजरात में नर्मदा जल को बेहद पवित्र माना जाता है. वहां के भक्त नर्मदा के तट से जल लेकर शिव मंदिरों में अभिषेक करते हैं.

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दक्षिण भारत में गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों से जल लाकर शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है. यूपी और बिहार में यमुना और सरयू का जल भी महत्वपूर्ण होता है.

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जल एकत्र करने की सुंदर परंपरा

कांवड़ यात्रा में जल भरने की भी खास विधि होती है. कांवड़िए नदी किनारे जाकर विधिपूर्वक जल भरते हैं. इसके बाद उस जल को कांवड़ (एक तरह का झूला जिसमें दोनों ओर बर्तन टंगे होते हैं) में बांधते हैं.

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जल भरने के बाद यात्रा शुरू होती है. इस दौरान कांवड़िए नियमों का पालन करते हैं. वे शराब, मांस, झूठ और गलत बोलने से दूर रहते हैं. अधिकतर कांवड़िए नंगे पांव चलते हैं और शिव के भजन गाते हुए यात्रा पूरी करते हैं.

शिवलिंग का अभिषेक

जब कांवड़िए अपने गंतव्य तक पहुंचते हैं, तो मंदिरों में भव्य पूजा होती है. सबसे पहले वे शिवलिंग का स्नान कराते हैं. जल अर्पित करते समय पूरा मंदिर 'बोल बम' के नारों से गूंज उठता है. यह पल बहुत पवित्र माना जाता है. कहते हैं, इस जल अभिषेक से भगवान शिव तुरंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं.

आस्था का अद्वितीय संगम

इस तरह कांवड़ यात्रा सिर्फ गंगा जल तक सीमित नहीं रही, बल्कि अब यह नदियों के पवित्र संगम का प्रतीक बन चुकी है. इससे न केवल धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं, बल्कि यह हमारे देश की सांस्कृतिक एकता और जल संरक्षण का संदेश भी देती है.
हर साल करोड़ों लोग इस यात्रा में शामिल होते हैं. यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, धैर्य, प्रेम और संयम का सबसे बड़ा उत्सव बन चुकी है.

इस बार भी कांवड़ यात्रा में देशभर की पवित्र नदियों का जल भगवान शिव के चरणों में अर्पित कर भक्तजन पुण्य लाभ अर्जित कर रहे हैं. 'हर हर महादेव' के जयकारों से गूंजती यह यात्रा सच में अनोखी है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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