khatu shyam birthday: आखिर खाटू श्याम को क्यों कहते हैं हारे का सहारा, जानें कैसे बने खाटू श्याम भगवान

khatu shyam birthday 2022: कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि खाटू श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाता है. आइए जानते हैं कि खाटू श्याम कौन हैं और इन्हें हारे का सहारा क्यों कहा जाता है.

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khatu shyam birthday 2022: खाटू श्याम का जन्मोत्सव आज मनाया जा रहा है.

khatu shyam birthday Day 2022: कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देवउठनी एकादशी के दिन खाटू श्याम का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस साल खाटू श्याम जी का जन्मोत्सव आज यानी 4 नवंबर 2022 को मनाया जा रहा है. इस दिन भगवान खाटू श्याम की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है. राजस्थान के सीकर में खाटू श्याम का मंदिर देश में सबसे अधिक प्रसिद्धि  है. मान्यता है कि जो कोई यहां खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए  आता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. हिंदू धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक खाटू श्याम कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण के अवतार हैं. आइए जानते हैं कि आखिर खाटू श्याम को हारे का सहारा क्यों कहा जाता है. 

कौन हैं खाटू श्याम | Who is Khatu Shyam

पौराणिक मान्यता के अनुसार, खाटू-श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है. कहा जाता है कि ये पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे. कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण ने खाटू श्याम की क्षमता से प्रभावित होकर उन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था. 

खाटू श्याम की कहानी | Khatu Shyam Story

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार जब पांडव अपनी जान बचाते हुए जंगल में भटक रहे थे, तब भीम का सामना हिडिम्बा से हुआ. हिडिम्बा ने भीम से एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम घटोत्कच था. घटोत्कच से बर्बरीक पुत्र हुआ. इन दोनों को अपनी वीरता और शक्तियों के लिए जाना जाता था. जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध होना था, तब बर्बरीक ने युद्ध देखने का निर्णय लिया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा कि वे युद्ध में किसकी तरह हैं, तो उन्होंने कहा कि जो हारेगा वो उसी की तरफ से लड़ेंगे.

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श्रीकृष्ण युद्ध का अंतिम परिणाम जानते थे और उन्हें डर था कि कहीं पांडवों के लिए उल्टा न पड़ जाए. ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को रोकने के लिए दान की मांग की. दान में उन्होंने उनसे शीश मांग लिया. दान में बर्बरीक ने अपना शीश दे दिया, मगर आखिर तक उन्होंने युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने उसकी इच्छा स्वीकार करते हुए उनका सिर युद्ध वाली जगह पर एक पहाड़ी पर रख दिया.

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युद्ध के बाद पांडव लड़ने लगे कि युद्ध की जीत का श्रेय किसे दिया जाए. तब बर्बरीक ने कहा कि उन्हें जीत भगवान श्रीकृष्ण की वजह से मिली है. भगवान श्रीकृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न हुए और कलियुग में श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया. यही वजह है कि आज भी लोग खाटू श्यमा को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप मानकर उनकी पूजा करते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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