दशहरे के दिन कानपूर में बने 103 साल पुराने इस मंदिर में होती है रावण की पूजा

कानपुर 103 साल पुराने मंदिर के पट सिर्फ दशहरे के दिन खोले जाते हैं. इस शिवाला परिसर मंदिर में रावण की विशेष पूजा की जाती है.

विज्ञापन
Read Time: 21 mins
वर्तमान की बात करें तो छिन्नमस्तिका मां के मंदिर को सार्वजनिक दर्शन के लिए बंद कर दिया गया है.

Ravan Mandir In India: असत्य पर सत्य की जीत का सबसे बड़ा त्यौहार दशहरा (Dussehra 2023) पूरे देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है.  इस साल विजयदशमी का त्योहार 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा. वैसे तो बुराई पर अच्छाई की जीत के इस दिन को मनाने के लिए आप हर साल रावण के पुतले का दहन (Ravan Dahan) होते हुए जरूर देखते होंगे.  पर आज हम आपको बताने जा रहे हैं कानपुर के एक ऐसे मंदिर के बारे में जहां 103 साल से दशहरा रावण पूजा (Ravan Mandir) का पर्व बना हुआ है. इस मंदिर के पट सिर्फ दशहरे के दिन खोले जाते हैं. इस शिवाला परिसर मंदिर में रावण की विशेष पूजा की जाती है और सुबह से लेकर शाम तक लोग रावण के दर्शन करने पहुंचते हैं. यहां पर मन्नतें मानने के लिए सरसों के तेल के दिए भी जलाए जाते हैं. 

Shardiya Navratri 2023: नवरात्रि के बाद कलश, नारियल और चावल का मान्यतानुसार क्या करना चाहिए, जानिए यहां

इस मंदिर में होती है रावण की पूजा 

शिवाला परिसर देश का ऐसा इकलौता मंदिर है जिसे दशानन मंदिर के नाम से भी लोग जानते हैं. दशहरे के दिन रावण की पूजा करने हजारों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं. सिर्फ दशहरे के दिन ही इस मंदिर को खोला जाता है. बताया जाता है कि ये मंदिर 103 सालों से ज्यादा पुराना है. कई सारे महत्व और विशेषताओं को अपने अंदर समेटे इस मंदिर में दर्शन करने केवल कानपुर से ही नहीं बल्कि देश भर से यहां तक की विदेश से भी लोग आते हैं.

सिर्फ दशहरे के दिन खुलता है मंदिर 

दशहरे के दिन मंदिर के पट को पूरे विधि-विधान से खोला जाता है. यहां सबसे पहले रावण की स्थापित प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है. पूजा और आरती विधि-विधान से करने के बाद मंदिर में भक्तों को प्रवेश दिया जाता है. रावण को शक्ति के प्रतीक के रूप में लोग यहां पूजते हैं. तेल के दीए जलाकर मन्नत मांगते हैं और बुद्धि, बल और आरोग्य का वरदान मांगा जाता है.

Advertisement

103 साल पहले हुआ था मंदिर का निर्माण 

मंदिर के इतिहास पर नजर डालें तो कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 103 साल या फिर उससे पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था. इस मंदिर को बनाने के पीछे कई धार्मिक तर्क भी हैं. कहते हैं कि रावण बहुत विद्वान था और भगवान शिव का परम भक्त भी. भोले बाबा को खुश करने के लिए मां छिन्नमस्तिका देवी की रावण आराधना करता था. मां ने पूजा से प्रसन्न होकर रावण को यह वरदान दिया था कि उनकी पूजा सफल तभी होगी जब श्रद्धालु रावण की पहले पूजा करेंगे. कहते हैं शिवाला में 1868 में किसी राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था. यहां रावण की एक मूर्ति भी प्रहरी के रूप में स्थापित की गई थी. रावण का यह मंदिर शारदीय नवरात्रि में सप्तमी से लेकर नवमी तक खुला रहता है.

Advertisement

 इसलिए की जाती है दशानन की पूजा

वर्तमान की बात करें तो छिन्नमस्तिका मां के मंदिर को सार्वजनिक दर्शन के लिए बंद कर दिया गया है. इसके बराबर में बना दशानन का मंदिर दशहरे की सुबह दर्शन के लिए खोला जाता है और शाम को पट बंद कर दिए जाते हैं. सालों से यह मंदिर इसी दिन खोला जाता है. आपको बता दें कि ये देश का अकेला दशानन मंदिर है, जहां पर तरोई के फूल चढ़ाकर भक्त रावण की पूजा करते हैं. 

Advertisement

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

Featured Video Of The Day
Mirapur By-Election Clash: SHO ने क्यों तानी Pistol । Viral Video की Inside Story
Topics mentioned in this article