कालाष्टमी पर भगवान शिव के काल भैरव स्वरूप की होती है पूजा, पढ़ें कालाष्टमी व्रत से जुड़ी कथा

हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखकर भगवान शिव के उग्र स्वरूप काल भैरव की पूजा की जाती है. यह तंत्र-मंत्र साधने वालों के लिए बहुत खास व्रत माना जाता है.

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ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 30 मई को दिन पड़ रही है.

Kalashtami 2024: भगवान शिव की कई रूपों में पूजा की जाती है. इसमें एक रूप काल भैरव (Kaal bhairav) का है. हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखकर भगवान शिव के उग्र स्वरूप काल भैरव की पूजा की जाती है. यह तंत्र-मंत्र साधने वालों के लिए बहुत खास व्रत माना जाता है. मान्यता है कि कालाष्टमी को भगवान शिव के काल भैरव स्वरूप की पूजा से भक्तों को सभी प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है. ज्येष्ठ माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 30 मई के दिन पड़ रही है और इसी दिन कालाष्टमी का व्रत रखा जाएगा. आइए जानते हैं कालाटष्मी से जुड़ी कथा. 

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कालाष्टमी व्रत की कथा | Kalashtami Vrat Katha

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव (Lord Shiva) में कौन सबसे श्रेष्ठ हैं, इस पर बहस हो रही थी. बहस इतनी ज्यादा बढ़ गई कि सभी देवताओं को बुलाकर एक बैठक की गई. देवताओं की मौजूदगी में सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा, लेकिन उस बात का समर्थन भगवान शिव शंकर और भगवान विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्मा जी ने भगवान शिव के लिए बुरा कह दिया. इससे महादेव को क्रोध आ गया. भगवान शिव के क्रोधित होने के कारण उनके काल भैरव स्वरूप का जन्म हुआ. भगवान शिव के इस रूप को देखकर सभी देवी-देवताओं में भय की लहर दौड़ गई.

क्रोधित काल भैरव ने भगवान ब्रह्मा के पांच मस्तक में से एक मस्तक को काट दिया, इसके कारण ब्रह्माजी के पास चार मस्तक ही रह गए. ब्रह्माजी का मस्तक काटने के कारण काल भैरव पर ब्रह्महत्या का पाप चढ़ गया था. हालांकि, क्रोध शांत होने पर काल भैरव ने भगवान ब्रह्मा से माफी मांगी, तब जाकर भगवान भोलेनाथ अपने असली रूप में आए.

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इसके बाद काल भैरव को उनके पापों के कारण दंड भी मिला और प्राश्चित करने के लिए लंबे समय तक वाराणसी में रहना पड़ा. इसके बाद से ही कालाष्टमी का व्रत रखा जाने लगा और पूजा होने लगी. काल भैरव स्वरूप में भगवान का वाहन काला कुत्ता माना जाता है .उनके एक हाथ में छड़ी है. इस अवतार को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है और उन्हें दंडाधिपति भी कहा जाता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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