मीरा के कृष्ण प्रेम पर आधारित इस प्रस्तुति के साथ मनाएं जन्माष्टमी, साउंड्स ऑफ ईशा ने की रचना

आज कृष्ण जन्माष्टमी पर मीरा की शाश्वत भक्ति को साउंड्स ऑफ ईशा द्वारा रचित भावपूर्ण रचना "मीरा" एक नए आयाम में ले जाती है.

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यह गीत उनकी भक्ति की मधुरता और पीड़ा को श्रोताओं तक पहुंचाता है.
नई दिल्ली:

भगवान कृष्ण का नाम लेते ही मीरा बाई की कथा जीवंत हो उठती है. राजस्थान की 16वीं शताब्दी की यह संत कवयित्री, कृष्ण को दूर बैठे देवता के रूप में नहीं, बल्कि अपने शाश्वत प्रेमी के रूप में देखती थीं. उनका प्रेम महलों की दीवारों, समाज के नियमों और राजसी कर्तव्यों के बोझ से परे था. राजघराने में जन्मी मीरा को दुनिया की सभी सुख-सुविधाएं मिलीं. फिर भी उनका हृदय उसके लिए समर्पित था जिसे अपने साथ किसी सिंहासन की आवश्यकता नहीं थी. कहा जाता है, बचपन से ही मीरा कृष्ण से मित्र की तरह बातें करतीं, प्रियतम की तरह हंसतीं, और ऐसे साथी की तरह मन की बातें कहतीं जिसे केवल वे ही देख पातीं.

इस कृष्ण जन्माष्टमी पर, उनकी शाश्वत भक्ति को साउंड्स ऑफ ईशा द्वारा रचित भावपूर्ण रचना "मीरा" एक नए आयाम में ले जाती है. यह गीत उनकी भक्ति की मधुरता और पीड़ा को श्रोताओं तक पहुंचाता है. यह स्मरण दिलाता है कि उनका गाया प्रेम गीत केवल उन्ही तक सीमित नहीं हो सकता, यह हर उस व्यक्ति का है जिसका हृदय ईश्वर के लिए धड़कता है.

गीत की पंक्तियां वियोग की पीड़ा से भरी हैं जिसमें मीरा अपनी तुलना एक मछली से करती हैं जो पानी के बिना नहीं रह सकती. सबसे मार्मिक पंक्तियों में से एक में मीरा कहती हैं कि कोई वैद्य उनके दर्द को नहीं समझ सकता क्योंकि यह शरीर का रोग नहीं, बल्कि आत्मा की वेदना है, अपने प्रिय कृष्ण के दर्शन की तड़प है.

अपने शांत संगीत संयोजन और हृदयस्पर्शी स्वरों के साथ “मीरा” श्रोताओं को उस विरह और समर्पण की भावभूमि में ले जाता है, एक ऐसे भक्त की आंतरिक दुनिया की झलक देता है जिसके प्रेम की कोई सीमा नहीं.

इस जन्माष्टमी पर, जब आप दीप जलाएं और प्रार्थना करें, मीरा की आवाज को अपना साथी बनाएं, जो सदियां पार करके वही भक्ति लाती है, जो कभी मंदिरों के प्रांगणों में और चांदनी से जगमगाते महलों में समाई थी. आंखें मूंदिए और सुनिए, तो शायद आपको भी लगे कि जिस प्रेमी के लिए वे गाती थीं, वह आपसे दूर नहीं है.

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