Rath Yatra 2025: कौन थीं जगन्नाथ प्रभु की देवदासियां ‘महारी’? जो रथ यात्रा में करती थीं नृत्य, जानिए ज्योतिषाचार्य से इसकी रोचक कथा

आपको बता दें कि देवदासियां कुंवारी कन्या होती थी. ऐसे में वो किसी को गोद लेती थीं.  मगर किसी कारण वश शशिमणि किसी भी कन्या को गोद नहीं ले पाई थी, इसलिए यह प्रथा आगे नहीं बढ़ पाई.

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महारी नृत्य परंपरा को ब्रिटिश शासन काल में सामाजिक सुधार आंदोलनों के दौरान अशुद्ध मानकर रोक दिया गया था.

Mahari katha :  हर साल की तरह इस बार भी आषाढ़ माह में उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकली जाएगी. जिसकी तारीख 27 जून है. इसको लेकर भक्तों में काफी उत्साह बना हुआ है. सभी इस यात्रा में शामिल होने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि यह दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक है. यही कारण है देश-विदेश से सनातन धर्म में आस्था रखने वाले इस रथ यात्रा में शामिल होते हैं. आपको बता दें कि इस यात्रा और जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी कई रोचक कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें से एक है 'महारी' नृत्य. जिसको लेकर हमारी बातचीत आगरा के ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से हुई, आखिर इसमें क्या होता है और इस यात्रा में इस नृत्य का क्या महत्व है. 

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जिसके बारे में पंडित अरविंद मिश्र ने बताया कि भगवान की भक्ति का अर्थ है ईश्वर के प्रति प्रेम समर्पण और श्रद्धा. भारतीय संतों और शास्त्रों में भक्ति को कई भागों में विभाजित किया गया है. जिनका उद्देश्य भक्त और भगवान के बीच भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करना है. शास्त्रों एवं पुराणों में नौ प्रकार की भक्ति बताई गई है. जिसको 'नवधा' भक्ति कहा जाता है. नवधा भक्ति के बारे में रामचरित मानस में भगवान राम ने माता शबरी को विस्तार से बताया है, जो इस प्रकार है-

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पहली श्रवण भक्ति - इसमें भगवान की कथा, नाम और लीलाओं को श्रद्धा से सुनना है.

दूसरी कीर्तन भक्ति - इसमे भगवान के नाम और गुणों का गान करना एवं भक्ति में नृत्य करना- इसका उदाहरण मीरा बाई , नारद मुनि आदि हैं.

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तीसरी स्मरण भक्ति - निरंतर भगवान को स्मरण करना अर्थात याद करना- जैसे सुदामा, भक्त प्रहलाद आदि. 

चौथी भक्ति पाद सेवन - इसके अंतर्गत भगवान के चरणों की सेवा करना. यह सेवा का भाव दर्शाता है.

पांचवीं भक्ति है अर्चन - भगवान की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करना, फूल, दीपक भोग आदि द्वारा भगवान की आराधना करना.

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छठी भक्ति है वंदन - इसके अंतर्गत भगवान को नमस्कार करना, प्रार्थना करना, जैसे- माता कुंती, द्रौपदी, माता सीता आदि.

सातवीं भक्ति है दासत्व -  स्वयं को भगवान दास अथवा सेवक मानकर सेवा करना, जैसे - श्री हनुमान जी.

आठवीं भक्ति साख्य - भगवान को अपना मित्र मानना- जैसे अर्जुन, सुदामा आदि.

नौवीं भक्ति है आत्म निवेदन - अपना सब कुछ भगवान को समर्पित कर देना, जैसे राजा बलि, पुंडलिक आदि. 

भगवान जगन्नाथ की भक्ति में प्रमुख रूप से  कीर्तन भक्ति का दर्शन दिखता है. इसके अंतर्गत स्त्री एवं पुरुष भाव विभोर होकर नृत्य करते हैं उछलते-कूदते हैं. 

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रथ यात्रा में हर जाति धर्म के लोग होते हैं शामिल

मिश्र जी आगे कहते हैं कि सभी को विदित है की विश्व की सबसे बड़ी और पवित्र जगन्नाथ रथ यात्रा मानी जाती है. यह हिंदू नहीं बल्कि हर धर्म के लोगों के लिए निकाली जाने वाली यात्रा होती है. दरअसल, भगवान जगन्नाथ का पुरी धाम कुछ धर्म और जातियों के लिए प्रतिबंधित है. ऐसे में रथ यात्रा इकलौता समय होता है जब हर कोई इनके दर्शन कर सकता है. इनके रथ को अपने हाथों से छू सकता है और खींच सकता है.

2020 में यह परंपरा हो गई खत्म

दरअसल, महारी उड़ीसा का एक नृत्य है, यहां की कुंआरी लड़कियां, जो खुद को भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर देती है, वे महारी देवदासियां कहलाती है.जिसका अर्थ है महान नारियां. इन्हें एक खास रस्म साड़ी बंधन के जरिए भगवान जगन्नाथ की पत्नी का दर्जा दिया जाता है. यह जीवन भर भगवान जगन्नाथ की दुल्हन के रूप में रहती हैं और ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं. हालांकि, अब यह देवदासी की प्रथा अब पूरी तरह से समाप्त हो गई है. क्योंकि अंतिम देवदासी  की साल 2020 में मृत्यु हो गई थी.

वेद पुराणों में इनका इतिहास महारी देवदासियों के रूप में मिलता है, जो नवमी व दशमी शताब्दी से चला आ रहा है. इनका नृत्य भगवान के मंदिर के रोजमर्रा के अनुष्ठानों में एक खास भूमिका अदा करता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक प्रसाद देते समय, खास पर्वों एवं अनुष्ठान  एकादशी या अन्य धार्मिक अवसर पर यह नृत्य करती थी. रथ यात्रा में भी प्रभु के रथ के आगे यह नृत्य करती थीं. 

यह प्रभु के प्रति अपना प्रेम, समर्पण और निष्ठा को दर्शाना ही उनकी सेवा होती थी. इस सेवा को भी धार्मिक सेवा में गिना जाता था, जो उत्साह उमंग भक्ति से भरा होता है. कहते हैं देवदासियां भक्तिमय में होकर नृत्य करती हैं तो प्रभु प्रसन्न होते हैं. देवदासियां का नृत्य हर शुभ कार्यक्रम एवं उत्सव में शामिल किया जाता है. रोजाना जगन्नाथ मंदिर में तीनों समय प्रभु को जब भोग लगता था महारी नृत्य किया जाता था.

यह परंपरा पौराणिक कथाओं के अनुसार सैकड़ों वर्षों पहले पद्मावती जो पहली देवदासी थी और जयदेव गोस्वामी थे. जो एक संस्कृत महाकवि थे. दोनों ही मंदिर में अपनी सेवाएं देते थे. इन दोनों ने प्रभु की इच्छा से विवाह किया था. जयदेव ने "गीतों गोविंदो" नाम से श्लोक को लिखा और गाया जिस पर पर देवदासी मनमोहक नृत्य करती थी. 

माना जाता है कि रात को निद्रा अवस्था में जाने से पहले प्रभु इनका नृत्य जरूर देखते थे.यह नृत्य उन्हें राधा कृष्ण की लीलाओं के भांति लगता था और वे उन भावों को याद किया करते थे. आपको बता दें कि आखिरी देवदासी ने 92 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली जिनका नाम शशिमणि देवी था.

आपको बता दें कि देवदासियां कुंवारी कन्या होती थी. ऐसे में वो किसी को गोद लेती थीं.  मगर किसी कारण वश शशिमणि किसी भी कन्या को गोद नहीं ले पाई थी, इसलिए यह प्रथा आगे नहीं बढ़ पाई.

भक्ति, नारी शक्ति, संस्कृति और कलात्मकता का प्रतीक

महारी नृत्य परंपरा को ब्रिटिश शासन काल में सामाजिक सुधार आंदोलनों के दौरान अशुद्ध मानकर रोक दिया गया था. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों और समाज सुधार के चलते सन् 1947 में प्रतिबंधित कर दी गई थी.लेकिन उड़ीसा के कुछ सांस्कृतिक केंद्रों ने इस कला को बचाए रखा था. आज भी यह ओडिसी नृत्य का एक आधार मानी जाती है.महारी नृत्य परंपरा कीर्तन भक्ति, नारी शक्ति, संस्कृति और कलात्मकता का प्रतीक है. श्री जगन्नाथ जी रथ यात्रा पुरी के दौरान महारी नृत्य परंपरा पवित्र रश्म थी. जिसमें देव दासियां अपने संपूर्ण जीवन को ईश्वर को समर्पित कर नृत्य के माध्यम से उनकी भक्ति में लीन हो जाती थी.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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