Jagannath Puri Rath Yatra 2025: भारत में धर्म और सांस्कृति से जुड़ी अनेकों विविधताएं हैं. जिनमें कई पर्व और यात्राएं ऐसी हैं जो जनमानस की आस्था का प्रतीक बन चुकी हैं. ऐसी ही यात्राओं में से एक यात्रा है – जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra Ka Itihaas). जो हर वर्ष ओडिशा के पुरी नगर में भव्य रूप से आयोजित की जाती है. आम लोगों के लिए ये एक साधारण रथ यात्रा हो सकती है. लेकिन भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए ये भगवान के साक्षात दर्शन होने जैसा दुर्लभ क्षण होता है. हर साल निकलने वाली ये रथ यात्रा इस साल 27 जून (Puri rath yatra 2025 date) से शुरू होगी. इस अवसर पर एनडीटीवी की रिपोर्टर मनुज्ञा लोइवाल ने स्थानीय सांसद संबित पात्रा से खास बातचीत की. इस चर्चा में संबित पात्रा ने जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व भी बताया.
हर वर्ष क्यों निकलती है रथ यात्रा?
स्थानीय सांसद संबित पात्रा कहते हैं कि इस यात्रा में एक लोकतंत्र का भाव छिपा है. उनका कहना है, “ आप सूक्ष्म भाव से देखें तो यह लोकतंत्र की जननी है. ओडिशा के राजाधिराज खुद महाप्रभु जगन्नाथ हैं. वो रत्न सिंहासन को छोड़कर रथ पर बैठते हैं और जनता के बीच आते हैं. गजपति महाराज स्वयं झाड़ू लेकर रथ के आगे का मार्ग साफ करते हैं. यह संदेश देता है कि परमेश्वर के सामने सभी समान हैं.” संबित पात्रा का कहना है कि कोई जाति, राजा या बड़ा नहीं होता. यही इस यात्रा के जरिए जगन्नाथ महाप्रभु का संदेश होता है कि वो जनता के सुख-दुख में भाग लेने खुद उनके बीच आ रहे हैं.
यात्रा से क्या सीख मिलती है
भगवान जगन्नाथ की इस यात्रा का एक उद्देश्य लोकतंत्र और समभाव का संदेश देना है तो एक संदेश महिला सशक्तिकरण से भी जुड़ा है. इस बारे में संबित पात्रा यात्रा से जुड़ी किंवदंती भी सुनाते हैं. उन्होंने बताया, “महाप्रभु गृहस्थ जीवन जीते हैं. रथ यात्रा के दौरान वो अपनी पत्नी लक्ष्मी जी को मंदिर में छोड़ जाते हैं. इस पर लक्ष्मी जी को अच्छा नहीं लगता और हिरा पंचमी के दिन वो उनसे मिलने जाती हैं और उन्हें आदेश देती हैं कि वे लौट आएं. भगवान उन्हें एक आज्ञा मान पत्र देते हैं, जिसमें कहते हैं कि वो लौटेंगे”. संबित पात्रा आगे कहते हैं, “लेकिन पत्नी तो पत्नी होती है. वो अपनी सेविका से कहती हैं कि जाकर भगवान के रथ को थोड़ा डैमेज कर दो. जब महाप्रभु लौटते हैं तो नीलाद्री विजय के समय मंदिर में प्रवेश करने से पहले उन्हें लक्ष्मी जी को रसगुल्ला देकर मनाना पड़ता है. ये नारी सशक्तिकरण का प्रतीक है. भगवान भी बिना पत्नी की अनुमति के घर में प्रवेश नहीं कर सकते.”