Guru Purnima 2025 : भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान देवता से भी ऊपर माना गया है. क्योंकि गुरु ज्ञान द्वारा हमारे मन एवं बुद्धि पर पड़े अज्ञान के आवरण को हटाने का काम करते हैं. वे हमारी प्रेरणा का स्रोत होते हैं. गुरु हमें सही और गलत के बीच का अंतर बताते हैं, जीवन की चुनौतियों का सामना करना सिखाते हैं, और सही दिशा में आगे बढ़ाने में मदद करते हैं. ताकि हम जीवन में सही निर्णय ले सकें. यही नहीं गुरु हमें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं और कठिन समय में भी आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करते हैं. ऐसे में आप साल में एक बार आने वाली गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु का पांव छूकर आशीर्वाद जरूर लीजिए. इससे आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा आइए जानते हैं ज्योतिर्विद डॉ. अरविंद मिश्र से..
Guru purnima 2025 : गुरु पूर्णिमा के दिन है भद्रा का साया, यहां जानिए स्नान दान का मुहूर्त
गुरु से आशीर्वाद लेने से क्या मिलता है फल
डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि गुरु का स्थान हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. वे न केवल शिक्षक होते हैं, बल्कि एक मार्गदर्शक, प्रेरणास्रोत और पथप्रदर्शक भी होते हैं. गुरु हमें सही और गलत के बीच का अंतर बताते हैं. ताकि हम सही रास्ते पर चलें और जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकें. गुरु हमारे आत्म-विकास में मदद करते हैं और एक बेहतर इंसान बनने में सहायक होते हैं. वो हमें अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं.
गुरु के महत्व के बारे में एक बेहद सुन्दर कथा प्रचलित है, जिसे पढ़ने के बाद आपको जीवन में गुरु क्यों जरूरी है, इस बात को समझने में आसानी होगी.
एक बार देव ऋषि नारद जी भगवान श्री विष्णु जी के पास गए. नारद ने विष्णु जी से पूछा कि भगवान ये 84 लाख योनियां कैसी होती हैं, इनके बारे में जानना चाहता हूं. भगवान विष्णु ने कहा कि नारद तुम क्यों 84 लाख योनियां के बारे में जानना चाहते हो और जानकर क्या करोगे. लेकिन नारद नहीं माने और जिद करने लगे. तब विष्णु जी ने कहा कि तुम ऐसे नहीं जान सकते हो, तुम्हें उन्हें भोगना पड़ेगा.
नारद बोले ठीक है प्रभु. तब भगवान श्री विष्णु ने कहा कि ठीक है जाओ अब तुम 84 लाख योनियों में भटको और उनके बारे में जानो. लेकिन जब नारद को भान हुआ कि ये मैंने क्या मांग लिया, फिर उन्हें पछतावा हुआ और भगवान श्री विष्णु जी क्षमा याचना मांगने लगे. विष्णु जी ने कहा कि नारद अब मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता हूं. लेकिन नारद ने भगवान से बहुत अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि इससे छुटकारे का कोई तो उपाय होगा. तब भगवान श्री विष्णु जी ने कहा कि नारद इसका एक ही उपाय है कि तुम पृथ्वी लोक पर जाओ वहां सबसे पहले जो व्यक्ति दिखे उसे अपना गुरु मान लेना.
नारद ठहरे देव ऋषि और महा ज्ञानी लेकिन भगवान ने कहा है तो करना ही पड़ेगा. जब नारद पृथ्वी पर आए तो सबसे पहले एक धोबी अपने गधे चाराते हुए दिखा. नारद ने सोचा ये धोबी क्या मार्ग बताएगा और कैसा मार्ग बताएगा. लेकिन पहले यही मिला है, तो अब इन्हें ही अपना गुरु मानना पड़ेगा. नारद ने धोबी को प्रणाम कर अपना पूरा वृतांत सुनाया. तब धोबी रूपी गुरु ने कहा नारद जी आप एक सफेद कागज पर लाल रंग के पेन से 84 लाख योनियां के नाम लिख लाओ. नारद नाम लिख लाए. फिर धोबी ने कहा कि इस कागज को धरती पर बिछाओ और इसपर जैसे मेरा गधा लोट मारता है ऐसे तुम भी करो. नारद जी ने ऐसा ही किया. तब धोबी रूपी गुरु ने कहा कि नारद अब तुम 84 लाख योनियां भोग चुके हो. अब तुम जाओ 84 लाख योनियां के चक्र से मुक्त हुए. तब नारद अपने गुरु जी को प्रणाम कर भगवान श्री विष्णु जी पास पहुंचे. भगवान ने कहा आज नारद तुम अपने गुरु के आशीर्वाद एवं मार्ग दर्शन से 84 लाख योनियां के चक्र से मुक्त हुए.
इस कहानी से हमें ये प्रेरणा मिलती है कि गुरू किसी भी जाति का और कैसा भी हो सकता है. गुरु अमीर भी हो सकता है और गरीब भी हो सकता है. लेकिन हमें उनकी इन बातों पर ध्यान न दे कर उनकी शरणागत रहना चाहिए. गुरु यदि एकलव्य की मिट्टी का भी हो लेकिन हमारी उनके प्रति निष्ठा और श्रद्धा एवं भक्ति अटल हो तो एकलव्य अर्जुन से भी श्रेष्ठ हो सकता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)