Guru Nanak Jayanti 2021: आज है गुरु नानक जयंती? जानिये गुरु नानक से जुड़ी दिलचस्प बातें

Guru Nanak Jayanti 2021: कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाई जाती है तो वहीं उसके पंद्रह दिनों बाद यानी कि कार्तिक की पूर्णिमा पर गुरु नानक जयंती मनाई जाती है. इस मौके पर बड़े पैमाने पर कार्यक्रम होते हैं, जिसके लिए महीनेभर पहले से तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं

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नई दिल्ली:

Guru Nanak Jayanti 2021: हिंदू धर्म में जिस तरह कार्तिक मास में आने वाली दिवाली सबसे बड़ा त्योहार है वैसे ही सिख धर्म के लिए कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली गुरु नानक जयंती सबसे बड़ा पर्व है. इसे प्रकाश पर्व या फिर गुरु पर्व भी कहते हैं. इसी दिन सिख धर्म के सबसे प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था. इस दिन सिख धर्म को मानने वाले भजन कीर्तन करते हैं और वाहेगुरु का जाप करते हैं. बता दें कि इस साल आगामी 19 नवंबर यानि आज गुरु नानक जयंती है.

कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली मनाई जाती है और उसके पंद्रह दिनों बाद यानी कि कार्तिक की पूर्णिमा पर गुरु नानक जयंती मनाई जाती है. इसके साथ ही बड़े पैमाने पर कार्यक्रम होते हैं, जिसके लिए महीने भर पहले से तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं. ढोल मंजीरों के साथ प्रभातफेरी निकाली जाती है. सिख समाज के लिए अपनी श्रद्धानुसार गुरुद्वारों में सेवा करते हैं.

इतिहास

1469 ई. में सिख धर्म के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था. उनका जन्म भोई की तलवंडी (राय भोई दी तलवंडी) नाम के स्थान पर हुआ था, ये जगह अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मौजूद ननकाना साहिब में है. इस जगह का नाम नानक देव के नाम से रखा गया. यहां देश विदेश में चर्चित गुरुद्वारा ननकाना साहिब (Gurdwara Nankana Sahib) है. शेर-ए पंजाब के नाम से पहचाने जाने वाले सिख साम्राज्य के राजा, महाराजा रणजीत सिंह (Maharaja Ranjit Singh) ने गुरुद्वारा ननकाना साहिब बनवाया था. 

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गुरु नानक जी कौन थे?

गुरु नानक जी सिख समुदाय के पहले गुरु थे और इस धर्म के संस्थापक भी. कहा जाता है कि उन्होंने ने ही सिख समाज की नींव रखी थी. उनको मानने वाले उन्हें नानक देव और बाबा नानक के साथ ही नानकशाह भी कहते हैं.  लद्दाख और तिब्बत के क्षेत्र में उन्हें नानक लामा भी कहते है. गुरु नानक देव ने अपनी जिंदगी मानव समाज के कल्याण में लगा दी थी. केवल मात्र भारत ही नहीं इसके बाहर जाकर अफगानिस्तान, ईरान और अरब देशों में भी उन्होंने उपदेश दिए. 16 साल की आयु में ही उन्होंने सुलक्खनी नाम की युवती से शादी की और बाद में दो बेटों श्रीचंद और लखमीदास के पिता बने.  1539 ई. में करतारपुर (जो अब पाकिस्तान में है) में उनकी मृत्यु हुई. अपनी मृत्यु से पहले ही उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने शिष्य भाई लहना के नाम की घोषणा की, जो बाद में  गुरु अंगद देव नाम से जाने गए. यही गुरु अंगद देव सिख धर्म के दूसरे गुरु बन थे.

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