Govardhan Puja 2025: कौन हैं गोवर्धन महाराज और कैसे पहुंचे मथुरा, जानें इससे जुड़ी कथा 

Govardhan Parvat Story: कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को जिस गोवर्धन महाराज की पूजा अत्यधिक शुभ और फलदायी मानी गई है, वो आखिर ब्रजमंडल में कैसे पहुंचे? आखिर कलयुग में उनकी पूजा का इतना महत्व क्यों है? इससे जुड़ी कथा जानने के लिए पढ़ें ये लेख. 

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Govardhan Parvat ki Katha: गोवर्धन महाराज की कथा
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Govardhan ki katha: सनातन परंपरा में दिवाली के दूसरे दिन कार्तिक मास की प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है. इस साल यह तिथि वृद्धि के कारण एक दिन बाद मनाया जा रहा है. हिंदू मान्यता के अनुसार कलयुग में गोवर्धन महाराज की पूजा सभी कष्टों को दूर करके कामनाओं को पूरा करने वाली मानी गई है क्योंकि इसकी शुरुआत स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने की थी, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर गोवर्धन महाराज कौन हैं और कैसे ब्रजमंडल में पहुचे. आइए इससे जुड़ी कथा जानते हैं. 

गोवर्धन महाराज की कथा 

हिंदू मान्यता के अनुसार एक बार पुलस्त्य ऋषि ऋषि तीर्थ यात्रा करते हुए गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे तो उसकी मनोरम छवि को देखकर अभिभूत हो गये. इसके बाद उन्होंने उसे अपने साथ ले जाने की ठान ली. फिर वे गोवर्धन पर्वत के पिता द्रोणांचल पर्वत के पास पहुंचे और उनसे गोवर्धन पर्वत को अपने साथ ले जानी की स्वीकृति मांगी.

यह सुनते हुए द्रोणांचल पर्व दुखी हो गये लेकिन गोवर्धन महाराज ने उन्हें इसके लिए मना लिया. गोवर्धन महाराज पुलस्त्य ऋषि के साथ चलने को तैयार तो हो गये लेकिन उन्होंने एक शर्त लगा दी कि आप जहां रास्ते में उन्हें रख देंगे वो वहीं जम जाएंगे. पुलस्त्य ऋषि इस पर राजी हो गये और उन्हें अपनी हथेली पर रखकर चल दिये. 

तब गोवर्धन ने अपना भार बढ़ा दिया

मान्यता है कि जब वे ब्रजमंडल से गुजर रहे थे तो गोवर्धन को ध्यान आया कि भगवान विष्णु के पूर्णावतार भगवान श्रीकृष्ण अधर्म का नाश करने के लिए शीघ्र ही इसी पावन भूमि पर अवतार लेने वाले हैं, और अगर वो वहीं जम जाएं तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी. ऐसा सोचते ही उन्होंने अपना वजन बढ़ा लिया. जिसके बाद पुलस्त्य ऋषि को थकान हुई और उन्होंने वहीं ब्रजभूमि में गोवर्धन पर्वत को जमीन पर रख दिया और आराम करने लगे. 

गोवर्धन महाराज को मिला है पुलस्त्य ऋषि का श्राप

इसके बाद जब पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन को चलने को कहा तो उन्होने अपनी शर्त दोहरा दी. इसके बाद पुलस्त्य ऋषि से नाराज होकर उन्हें श्राप दिया कि मुट्ठी भर घटते रहेंगे और एक दिन पूरी तरह से पृथ्‍वी में समा जाएंगे. मान्यता है कि तब से आज तक गोवर्धन महाराज ब्रज भूमि पर विराजमान हैं और प्रतिदिन उनका क्षरण हो रहा है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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