Dussehra 2025 Ravan incomplete dreams: लंकापति रावण हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथ रामायण का एक प्रमुख पात्र है, जिसके बारे में मान्यता है कि वह प्रकांड पंडित और कुशल राजनीतिज्ञ था. दशानन कहलाने वाले रावण को न सिर्फ चारों वेद बल्कि ज्योति समेत तमाम शास्त्रों का ज्ञान था. शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने वाले रावण की पहचान भगवान शिव के परम भक्त के रूप में भी होती है, जिसने अपनी तपस्या से महादेव को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किए थे. जिस रावण की विद्वता को भगवान श्री राम ने भी माना था, उसकी कई ऐसी कामनाएं थीं जो वह अपने जीवनकाल में नहीं पूरा कर सका. आइए रावण के अधूरे ख्वाब के बारे में जानते हैं.
1. सोने में सुगंध
सोने की लंका में रहने वाले रावण को स्वर्ण धातु से बहुत ज्यादा प्रेम था. उसकी कामना थी कि सोने में सुगंध भी आनी चाहिए लेकिन ताकि लोगों को उसके आस.पास होने का भान हो सके, लेकिन वह अपने जीवनकाल में इस काम को नहीं कर पाया.
2. स्वर्ग तक सीढ़ी
रावण की इच्छा थी कि इंसान स्वर्ग तक बगैर किसी बाधा के आसानी से पहुंच सके और इसके लिए उसे तरसना न पड़े. अपनी इस कामना को पूरा करने के लिए वह स्वर्ग जाने के लिए एक सीढ़ी का निर्माण करना चाहता था, लेकिन उसकी यह कामना भी अधूरी ही रही.
3. समुद्र के जल को मीठा बनाना
दशानन रावण की सोने की लंका समुद्र के किनारे बसी थी, जिसका जल खारा होता है. ऐसे में रावण की ख्वाहिश थी कि वह समुद्र के खारे जल को मीठे पानी में तब्दील कर सके, ताकि लोगों को पानी के लिए तरसना न पड़े, लेकिन यह कार्य भी वह अपनी मृत्यु से पहले नहीं कर पाया.
4. रक्त को सफेद बनाना
रावण ने अपने जीवन काल में कई निर्दोष लोगों का खून बहाया था. वह नहीं चाहता था कि उसके दोष बहते हुए लाल रंग के खून में नजर आएं. ऐसे में वह खून के रंग को सफेद करना चाहता था.
5. रंगभेद को दूर करना
रावण नहीं चाहता था कि कोई रंगभेद का शिकार हो. खास तौर पर राक्षसों को लेकर उसकी कामना थी कि उनका काला रंग गोरा हो सके. हिंदू मान्यता के अनुसार रावण भी श्याम वर्ण का था. रावण को लोगों को गोरा बनाने की ख्वाहिश भी अधूरी रह गई.
6. लंका में ज्योतिर्लिंग
रावण भगवान शिव को अपने साथ लंका ले जाना चाहता था. इसके लिए उसने कठिन तप करके महादेव को राजी भी कर लिया, लेकिन उन्होंने शर्त रख दी कि वह उनके शिवलिंग को रास्ते में जहां रख देगा वहीं वे स्थापित हो जाएंगे. मान्यता है कि भगवान विष्णु की लीला के चलते उसे रास्ते में जोर से लघुशंका आ गई और वह बालक के वेश में भगवान विष्णु को शिवलिंग थमाकर लघुशंका करने चला गया. इसके बाद भगवान विष्णु के उस स्थान पर शिवलिंग रखते ही स्थापित हो गया. आज यह स्थान वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है.
7. मंदिरा को गंधहीन बनाना
रावण तामसिक प्रवृत्ति का था. उसकी ख्वाहिश थी कि वह मदिरा को गंधहीन बना सके, ताकि उसे पीने पर किसी भी प्रकार की बदबू न आए और लोग उसका आसानी से आनंद ले सकें, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)