Durga Visarjan 2025 Sindoor Khela: सनातन परंपरा में महानवमी तिथि को ‘दुर्गा बलिदान' (Durga Balidan) के नाम से भी जाना जाता है. शक्ति की साधना से जुड़ी दुर्गा पूजा में इसे बेहद खास दिन माना गया है. हिंदू मान्यता के अनुसार देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच जब युद्ध चल रहा था तो महिषासुर कभी भैंसे का कभी हाथी का तो कभी शेर का रूप धारण कर लेता था. मान्यता है कि महानवमी के दिन जब महिषासुर में भैंसे का रूप धरा तो देवी दुर्गा ने अपने त्रिशूल से उसका वध कर दिया. था. देवी द्वारा महिषासुर वध को आज भी प्रतीकात्मक रूप से पूजा के माध्यम से भक्तगण मानाते हैं, जिसमें कोहड़े या ककड़ी आदि की बलि दी जाती है.
सिंदूर खेला
दुर्गा पूजा के आखिरी दिन विजर्सन से पहले सिंदूर खेला (Sindoor Khela)की रस्म निभाई जाती है. इसमें महिलाएं देवी दुर्गा को सिंदूर अर्पित करने के बाद एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. दुर्गा पूजा की इस परंपरा को वैवाहिक सुख और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. इस परंपरा को सुहागिन महिलाएं ही निभाती हैं.
कल होगा दुर्गा विसर्जन
दुर्गा पूजा का महापर्व कल दशमी तिथि पर सिंदूर खेला के साथ दुर्गा विसर्जन हो जाएगा. कल विद्या की देवी सरस्वती की प्रतिमा विसर्जन के साथ ही सरस्वती पूजा भी पूर्ण हो जाएगी. हिंदू मान्यता के अनुसार गुरुवार के दिन देवी मां पालकी पर सवार होकर अपने धाम को वापस लौटती हैं, जिसका संकेत शुभ माना जाता है. मान्यता है कि मां जब डोली पर सवार होकर जाती हैं तो सुख-समृद्धि बनी रहती हैं.
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दुर्गा विसर्जन का शुभ मुहूर्त
हिंदू मान्यता के अनुसार देवी दुर्गा का आवाहन हो या फिर उनकी विदाई हमेशा शुभ मुहूर्त में ही की जाती है. दुर्गा विसर्जन (Durga Visarjan) की परंपरा हमेशा दशमी तिथि के रहते हुए दोपहर या सुबह के समय किया जताा है. पंचांग के अनुसार दशमी तिथि 01 अक्टूबर 2025 की शाम 07:01 बजे से लेकर 02 अक्टूबर को 09:13 बजे तक रहेगी. पंचांग के अनुसार दुर्गा विसर्जन के लिए कल सबसे उत्तम मुहूर्त प्रात:काल 06:15 से लेकर 08:37 बजे तक रहेगा.
कैसे करें कलश और मूर्ति का विसर्जन
कल देवी दुर्गा की मूर्ति विसर्जन के साथ नवरात्रि की साधना के लिए स्थापित किये गये कलश का विसर्जन भी होगा. कलश या देवी की मूर्ति को घर से ले जाने से पहले उसका विधि-विधान से पूजन करें और पूजा में हुई भूलचूक के लिए क्षमाचायना करें. कलश को घर से लेकर निकलने से पहले उसके जल को पूरे घर में छिड़कें और उसके बाद मां का जयकारा लगाते हुए घर या पंडाल से निकलें. इसके बाद उसे किसी पवित्र जल स्रोत या नदी में में आदर के साथ धीरे से विसर्जित करें. विसर्जित करने से पहले कलश से नारियल निकालकर उसे प्रसाद के रूप में बांट दें तथा दुर्गा जी की मूर्ति से चुनरी और श्रृंगार की सामग्री आदि निकालकर अपने पूजा घर में रखें या फिर किसी जरूरतमंद को दे दें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)