आज है देवशयनी एकादशी, मान्यतानुसार इस कथा को पढ़ना माना जाता है बेहद शुभ

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं और यह बहुत महत्वपूर्ण एकादशी व्रत है. इस व्रत को बेहद कल्याणकारी माना जाता है.

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देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं.

Devshayani Ekadashi: हिंदू धर्म में कलयुग में मानवों के कल्याण व उद्धार के लिए एकादशी व्रत को सभी व्रतों में उत्तम बताया गया है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं और यह बहुत महत्वपूर्ण एकादशी व्रत है. इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) चार माह की योगनिद्रा में चले जाते हैं. इसे पद्मा एकादशी भी कहा जाता है. इस वर्ष 17 जुलाई बुधवार को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. मान्यता है कि देवशयनी एकादशी का व्रत रखने से न केवल व्रत रखने वाले बल्कि पूरे जगत का भला होता है. इससे प्राकृतिक आपदाएं टल जाती हैं. इस व्रत को करने वाले को मान्यतानुसार भगवान विष्णु के बैकुंठ धाम में स्थान मिलता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी का महत्व बताने वाली कथा.

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देवशयनी एकादशी की कथा | Devshayani Ekadashi Katha

प्राचीन काल में मान्धाता नाम का एक सूर्यवंशी राजा था. वह महान तपस्वी, चक्रवर्ती और प्रजा का पालन करने वाला राजा था. एक बार उसके राज्य में अकाल पड़ा. चारों ओर हाहाकार मच गया. लोग भूखे मरने लगे. इस परेशानी का उपाय खोजने के लिए राजा मान्धाता अपने साथ कुछ विशिष्ट लोगों को लेकर ब्रह्मा जी के मानस पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उनसे पूछा कि मैं धर्मानुसार राज्य करता हूं फिर भी मेरे राज्य में तीन साल से अकाल क्यों पड़ रहा है? अंगिरा ऋषि ने बताया कि इस युग में तप करने का अधिकार केवल ब्राह्मणों को है लेकिन तुम्हारे राज्य में एक शूद्र तप कर रहा है. तुम उसका वध कर दो. इससे अकाल समाप्त हो जाएगा. राजा ने कहा, मै एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या नहीं करूंगा. आप कोई दूसरा उपाय बताएं.  ऋषि अंगिरा ने राजा मान्धाता को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी. राजा ने विधि-विधान से देवशयनी एकादशी का व्रत (Devshayani Ekadashi Vrat) रखा. इससे उसके राज्य में खुलहाली लौट आई.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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