10 Interesting Facts About Christmas: दुनिया भर में आज क्रिसमस का पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है. मौजूदा दौर में जब अधिकांश पर्व ग्लोबल हो गए हैं, उसमें क्रिसमस की धूम भारत के कोने-कोने में देखने को मिल रही है. हर साल 25 दिसंबर आने से पहले ही छोटे बाजार से लेकर तमाम बड़े माल तक और घर से लेकर तमाम आफिसों में क्रिसमस को लेकर लोगों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. कहने का मतलब ये है कि अब क्रिसमस की लोकप्रियता सिर्फ ईसाई धर्म से जुड़े लोगों तक सीमित नहीं है.
ऐसे में यदि आप भी आज क्रिसमस को किसी भी रूप में सेलिब्रेट करने का प्लान बना रहे हैं तो आपको इस पर्व से जुड़े धार्मिक कारण और इसे मनाए जाने के तरीके को जरूर जानना चाहिए. आइए कोलकाता के हाल आफ फेथ चर्च के फादर गौरव सिंह रे के माध्यम से क्रिसमस से जुड़ी 10 बड़ी बातों को जानते हैं.
- क्रिसमस का पर्व प्रभु ईसा मसीह के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. फादर गौरव के अनुसार यीशु मसीह ने पशु बलि की परंपरा को खत्म करके स्वयं का बलिदान देने के लिए पृथ्वी पर ईश्वर की संतान के रूप में जन्म लिया था. 25 दिसंबर का उत्सव रोमन राजा के यहां सामान्य रूप से हुआ करता था, इसके बाद इस दिन को ईसा मसीह के जन्म दिन के उपलक्ष्य मे मनाने का निर्णय लिया गया.
- क्रिसमस के पर्व पर लोग नये कपड़े खरीदते हैं और अपने घर में केक बनाते हैं. इस पर्व की सबसे खास बात यह कि इस दिन लोग एक दूसरे के यहां तोहफे देकर अपनी खुशियां शेयर करते हैं. इस दिन प्रत्येक व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा हो वह अपने सामर्थ्य के अनुसार अपनों को तोहफा जरूर देता है.
- ईसाई धर्म में दिसंबर महीने को सीजन आफ एडवेंट बोला जाता है. इस महीने में इस पर्व की शुरुआत लोग कैरलिंग (Carolling) से शुरु करते हैं. इसमें लोग दल बनाकर ईसाई घरों में जाकर ईसा मसीह के जन्म से जुड़े पारंपरिक क्रिसमस गीत गाते हैं. ये कैरलिंग खुशी, शांति और प्रभु यीशु के आगमन का प्रतीक होती है.
Photo Credit: Rev. Fr. Gourav Singha Ray
- 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस के पर्व को मनाने के लिए एक दिन पहले से चर्च को सजाने और प्रभु यीशु मसीह की प्रार्थना करने का क्रम शुरू हो जाता है. 24 दिसंबर की रात को तकरीबन 11 बजे मिडनाइट क्रिसमस की प्रार्थना सभा होती है.
- ईसाई धर्म में तीन संप्रदाय है - रोमन कैथोलिक (Catholic), प्रोटेस्टेंट (Protestant), और ऑर्थोडॉक्स (Orthodox). इनके अलावा भारत में एक सीएनआई (Church of North India) भी है. ये सभी अपनी परंपरा के अनुसार प्रभु यीशु मसीह का जन्म उत्सव 24 दिसंबर की आधी रात को या फिर 25 दिसंबर की सुबह मनाते हैं.
- 25 दिसंबर के दिन प्रोटेस्टेंट (Protestant) समुदाय से जुड़े लोग सुबह के समय चर्च में जाकर विशेष प्रार्थना करते हैं, जबकि रोमन कैथलिक समुदाय के लोग जो मध्य रात्रि को प्रार्थना सभा कर चुके होते हैं, वे 25 तारीख को चर्च तो जाते हैं, लेकिन इस दिन वे मुख्य रूप से अपने परिवार के साथ इस उत्सव को मनाते हैं.
Photo Credit: Rev. Fr. Gourav Singha Ray
- 25 दिसंबर के दिन देश के तमाम चर्च में यीशु मसीह के जन्म की कहानी को नाटक आदि के जरिए दिखाया जाता है. बच्चों के लिए तमाम कार्यक्रम होते हैं. जिसमें लोग परिवार के साथ शामिल होकर खुशियां मनाते हैं और बाद में क्रिसमस लंच के लिए जाते हैं.
- ईसाई धर्म से जुड़े लोगों की मान्यता है कि प्रभु यीशु मसीह के जन्म के पहले फरिश्ते पृथ्वी पर आए और उन्होनें लोगों को बताया कि तुम्हारे शहर में आज एक मसीहा पैदा होंगे. फिर उन्होंने बताया कि आसमान में जहां एक तारा चमकेगा, ठीक उसी के नीचे प्रभु यीशु मसीह का जन्म होगा. जिसके बाद लोगों ने उसी तारे जरिए दिशा का बोध करके प्रभु यीशु का पता लगाया था. उसी तारे को प्रतीक स्वरूप लोग अपने घरों में क्रिसमस के दौरान आज भी लटकाते हैं.
- जिस सेंटा क्लॉज के बगैर क्रिसमस का पर्व अधूरा माना जाता है, वह एक पादरी थे, जिन्हें संत निकोलस के नाम से जाना जाता है, वे बच्चों से प्यार करते थे और अक्सर लोगों की मदद करने या फिर कहें खुशियां बांटने के लिए एक बड़े से झोले में तोहफे लेकर निकला करते थे.
- क्रिसमस पर जिस पौधे को सजाया जाता है, उसका संबंध जर्मनी से है. क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा जर्मनी में शुरु हुई. यह डगलस या फिर कहें फर का पौधा होता है, जिस पर लोग सेब, घंटी, बिजली की लड़ी आदि लटकाकर सजाते हैं. त्रिकोण आकृति के इस पेड़ को ईसाई धर्म के पवित्र माने जाने वाले क्रास चिन्ह से भी जोड़कर देखा जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)














