वाराणसी: मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच खेली गई भस्म से होली, जानिए इसके पीछे की प्रचलित मान्यताएं

चिता की भस्म से होली खेलने के पीछे एक प्राचीन मान्यता है कि वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर रंग भरी एकादशी के दूसरी के दिन भगवान शंकर यहां चिता भस्म की होली खेलने आते थे.

Advertisement
Read Time: 5 mins

भारत के मुख्य त्योहारों में शुमार होली का जश्न शुरू हो गया है. देशभर में होली का त्योहार बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. हालांकि, होली मनाने के तरीके और परपंराएं देश के अधिकतर हिस्सों में काफी अलग-अलग होती हैं. होली कहीं रंगों से, कहीं फूलों से तो कहीं जलती चिताओं के बीच चिता की भस्म से खेलने का रिवाज है. वहीं, काशी में होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से ही हो जाती है.

गुरुवार को वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के बीच भस्म से होली खेली गई. वीडियो में आप देख सकते हैं कि लोग बेहद जोश में चिता भस्म से होली खेलते हुए नज़र आ रहे हैं.

क्यों खेली जाती है चिता भस्म से होली?

चिता की भस्म से होली खेलने के पीछे एक प्राचीन मान्यता है कि वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर रंग भरी एकादशी के दूसरी के दिन भगवान शंकर यहां चिता भस्म की होली खेलने आते थे.

माना जाता है कि बसंत पंचमी को जब भगवान शंकर का तिलक होता है तो इसके बाद से ही बनारस में होली का उत्सव शुरू हो जाता है. इसके बाद शिवरात्रि के दिन उनका विवाह होता है. मान्यता है कि जब भगवान विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने देवता, यक्ष आदि लोगों के साथ मिलकर होली खेली थी, लेकिन वो अपने प्रिय गण जैसे भूत, प्रेत और पिशाच के  साथ होली नहीं खेल पाए थे. इसलिए वे दूसरे दिन श्मशान घाट पर आते हैं और जमकर होली खेलते हैं.

इसी मान्यता के अनुसार, बनारस के लोग मणिकर्णिका घाट आकर चिता भस्म की होली खेलते हैं. इसे मसाने की होली भी कहा जाता है. 

Featured Video Of The Day
Pitru Paksha में कौए को क्यों खिलाया जाता है चावल, जानें पंडित जी से इसका महत्व | NDTV India
Topics mentioned in this article