Chhath Puja 2021: छठ पूजा उत्तर भारत का एक बेहद महत्वपूर्ण त्योहार है. खासतौर पर उत्तरप्रदेश और बिहार के लिए छठ पर्व दिवाली जितना ही महत्वपूर्ण माना जा सकता है. इस त्योहार का श्रद्धालुओं को पूरी शिद्दत से इंतजार होता है. पर्व के दिन नजदीक आने के साथ ही तैयारियां भी तेजी से शुरू हो जाती हैं. इसके बाद पूरे उत्साह से होती है छठी मैया की पूजा. वैसे इस पर्व से भी ढेरों मान्यताएं जुड़ी हैं. अच्छी फसल, परिवार की सुख-समृद्धि और सुहाग व संतान की लंबी उम्र की कामना के साथ छठ का व्रत रखा जाता है.
छठ से जुड़ी कथा
पौराणिक मान्यता ये भी है कि श्रीकृष्ण ने उत्तरा को ये व्रत रखने और पूजन करने का सुझाव दिया था. महाभारत युद्ध के बाद जब गर्भ में ही अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र का वध कर दिया गया था. तब उस जान को बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने उत्तरा का षष्ठी व्रत करने के लिए कहा. इसलिए इस व्रत को संतान की लंबी आयु की कामना के लिए भी माना जाता है.
छठ पूजन का दिन और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की षष्ठी से ये पर्व शुरू हो जाता है. चार दिन चलने वाला ये पर्व इस साल यानि 2021 में 8 नवंबर यानि आज से शुरू हो चुका है. 8 नवंबर यानि आज से नहाय-खाय से पर्व पर पूजा पाठ शुरू होगा. अगले दिन खरना फिर सूर्य को अर्घ देने का दिन और फिर आखिरी दिन सुबह सुबह उगते सूरज को अर्घ्य देकर पर्व का समापन होगा.
पूजन विधि
छठ पूजन पर विशेषतौर से महिलाएं व्रत रखती हैं और पूजा पाठ में सख्त नियमों का पालन किया जाता है. गोबर से लीप कर पूजा स्थल की साफ सफाई होती है. बलराम की पूजा के लिए हल की आकृति बनाई जाती है. इसके लिए भूसे और घास का उपयोग होता है. दिनों के अनुसार खास पूजा होती है.
नहाय खाय- छठ के पहले दिन सफाई सफाई और स्नान के बाद सूर्य देव को साक्षी मानकर व्रत का संकल्प लेना होता है. व्रत रखने वाले इस दिन चने की सब्जी, चावल और साग का सेवन करते हैं.
खरना- ये छठ का दूसरा दिन होता है. जब पूरे ही दिन व्रत रखा जाता है. शाम के लिए खासतौर से गुड़ की खीर बनाई जाती है. मिट्टी के चूल्हे पर ही ये खीर बनाने की परंपरा है. सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत रखने वाली महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती हैं और फिर पूरे 36 घंटे बिना कुछ खाए पिए व्रत रखा जाता है.
तीसरा दिन- तीसरे दिन महिलाएं शाम के समय किसी तालाब या नदी के पास जाकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं.
अंतिम दिन- चौथे दिन सुबह सुबह व्रती महिलाएं नदी या तालाब में उतरकर भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं. प्रार्थना करती हैं और फिर व्रत का समापन करती हैं.