Pradosh vrat katha : भौम प्रदोष व्रत के दिन की जाती है मंगलदेव की पूजा, जानिए इसकी संपूर्ण कथा पंडित जी से

आपको बता दें कि इस व्रत में भगवान मंगलदेव की पूजा की जाती है. जिसकी रोचक कथा आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से....

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यह व्रत संतान की कामना और उसकी रक्षा के लिए किया जाता है.

Bhaum pradosh vrat katha 2025 : 'प्रदोष' का अर्थ है रात्रि का शुभारंभ. इस व्रत का पूजन रात के समय होता है. यही कारण है इसे प्रदोष व्रत कहते हैं. यह व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है. इस बार भौम प्रदोष व्रत 8 जुलाई को है. यह व्रत संतान की कामना और उसकी रक्षा के लिए किया जाता है. इस व्रत को स्त्री पुरुष दोनों ही कर सकते हैं. आपको बता दें कि इस व्रत में भगवान मंगलदेव की पूजा की जाती है. जिसकी रोचक कथा आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से....

Bhaum Pradosh Vrat 2025: जुलाई में किस तारीख को रखा जाएगा भौम प्रदोष, जानिए यहां

भौम प्रदोष की कथा - Bhaum pradosh vrat katha hindi

एक बुढ़िया थी, वह भौम देवता (मंगल देवता) को अपना इष्ट देवता मानकर सदैव मंगल का व्रत रखती और मंगलदेव का पूजन किया करती थी. उसका एक पुत्र था जो मंगलवार को  हुआ था. इस कारण उसको मंगलिया के नाम से बोला करती थी. मंगलवार के दिन न तो घर को लीपती और न ही पृथ्वी खोदा करती थी.

एक दिन मंगल देवता उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने के लिये उसके घर में साधु का रूप बनाकर आये और द्वार पर आवाज दी. बुढ़िया ने कहा महाराज क्या आज्ञा है ? साधु कहने लगा कि बहुत भूख लगी है, भोजन बनाना है. इसके लिए तू थोड़ी-सी पृथ्वी लीप दे तो तेरा पुण्य होगा. यह सुनकर बुढ़िया ने कहा महाराज आज मंगलवार की व्रती हूं. इसलिये मैं चौका नहीं लगा सकती कहो तो जल का छिड़काव कर दूं. उस पर भोजन बना लें.

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साधु कहने लगा कि मैं गोबर से ही लिपे चौके पर खाना बनाता हूं. बुढ़िया ने कहा पृथ्वी लीपने के सिवाय और कोई सेवा हो तो बताएं वह सब कुछ कर दूंगी. तब साधु ने कहा कि सोच समझकर उत्तर दो जो कुछ भी मैं कहूं सब तुमको करना होगा. बुढ़िया कहने लगी कि महाराज पृथ्वी लीपने के अलावा जो भी आज्ञा करेंगे उसका पालन अवश्य करूंगी. बुढ़िया ने ऐसे तीन बार वचन दे दिया.

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तब साधु कहने लगा कि तू अपने लड़के को बुलाकर आंधा लिटा दे मैं उसकी पीठ पर भोजन बनाऊंगा. साधु की बात सुनकर बुढ़िया चुप हो गई. तब साधु ने कहा- "बुला ले लड़के को, अब सोच-विचार क्या करती है ?" बुढ़िया मंगलिया, मंगलिया कहकर पुकारने लगी. थोड़ी देर बाद लड़का आ गया. बुढ़िया ने कहा- "जा बेटे तुझको बाबाजी बुलाते हैं." लड़के ने बाबाजी से जाकर पूछा- "क्या आज्ञा है महाराज ?" बाबाजी ने कहा कि जाओ अपनी माताजी को बुला लाओ. तब माता आ गई तो साधु ने कहा कि तू ही इसको लिटा दे. बुढ़िया ने मंगल देवता का स्मरण करते हुए लड़के को औंधा लिटा दिया और उसकी पीठ पर अंगीठी रख दी और कहने लगी कि महाराज अब जो कुछ आपको करना है कीजिए, मैं जाकर अपना काम करती हूं. 

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साधु ने लड़के की पीठ पर रखी हुई अंगीठी में आग जलाई और उस पर भोजन बनाया. जब भोजन बन चुका तो साधु ने बुढ़िया से कहा कि अब अपने लड़के को बुलाओ वह भी आकर भोग ले जाये. बुढ़िया कहने लगी कि यह कैसे आश्चर्य की बात है कि उसकी पीठ पर आपने आग जलाई और उसी को प्रसाद के लिये बुलाते हैं. क्या यह सम्भव है कि अब भी आप उसको जीवित समझते हैं. आप कृपा करके उसका स्मरण भी मुझको न कराइए और भोग लगाकर जहां जाना हो जाइये. 

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साधु के बहुत आग्रह करने पर बुढ़िया ने ज्यों ही मंगलिया कहकर आवाज लगाई त्यों ही एक ओर से दौड़ता हुआ वह आ गया. साधु ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा कि माई तेरा व्रत सफल हो गया. तेरे हृदय में दया है और अपने इष्ट देव में अटल श्रद्धा है. इसके कारण तुमको कभी कोई कष्ट नहीं पहुंचेगा.

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