शनिवार के दिन करें भगवान शनि देव की यह आरती, बन सकते हैं बिगड़े काम

सूर्यपुत्र शनिदेव भक्तों के हितकारी और कर्म फल के दाता हैं. मान्यता है कि शनि की अगर शुभ दृष्टि हो तो रंक भी राजा बन जाता है. शनिवार के दिन विधि-विधान से शनि का देव का पूजन व व्रत किया जाता है. पूजा के दौरान शनि देव की आरती करना शुभ माना जाता है.

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शनिवार के दिन करें भगवान शनि देव की आरती
नई दिल्ली:

शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि देव (Shani Dev) को समर्पित होता है. सूर्यपुत्र शनिदेव भक्तों के हितकारी और कर्म फल के दाता हैं. शनि देव जितने कठोर भगवान के तौर पर देखें जाते हैं, उतने ही वे दयालु भी हैं. शास्त्रों के अनुसार, शनि एक मात्र ऐसे देव हैं जो संतुलन स्थापित करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के शनि कर्म फल दाता हैं और कर्मों के हिसाब से ही व्यक्ति को फल देते हैं. मान्यता है कि शनि देव के प्रभाव से मनुष्य क्या देवता और असुर भी नहीं बच सकते. हिन्दू मान्यता है कि शनि की अगर शुभ दृष्टि हो तो रंक भी राजा बन जाता है. शनिवार के दिन विधि-विधान से शनि का देव का पूजन व व्रत किया जाता है. पूजा के दौरान शनि देव की आरती करना शुभ माना जाता है.

शनि देव की आरती

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय जय श्री शनि…

श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी।

नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय जय श्री शनि…

क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।

मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय जय श्री शनि…

मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी।

लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय जय श्री शनि देव…

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।

विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥

जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।

दशरथकृत शनि स्तोत्र

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।

नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।

एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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