Explainer: तकनीक से ताकत तक रेयर अर्थ मिनरल्स की लड़ाई, चीन के आगे भारत कहां खड़ा है? पढ़ें 360 डिग्री विश्‍लेषण

All About Rare Earth Metals: भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन उत्पादन में बहुत पीछे हैं. 2024 में भारत में सिर्फ 2900 टन ही उत्पादन हुआ जबकि चीन ने 2.7 लाख टन. इसे देखते हुए भारत सरकार ने 'नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन' शुरू किया है.

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  • रेयर अर्थ मेटल्स वे 17 एलिमेंट हैं, जिनकी विशेष चुंबकीय और भौतिक गुणों के कारण हाई-टेक उपकरणों में अत्यंत आवश्यक भूमिका है.
  • चीन के पास दुनिया के कुल 9 करोड़ टन रेयर अर्थ मिनरल्स में से लगभग 4.4 करोड़ टन भंडार है और वह प्रोसेसिंग तकनीक में भी अग्रणी है.
  • अप्रैल 2025 से चीन ने रेयर अर्थ मैग्नेट्स के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया, जिससे वैश्विक ऑटो, ग्रीन एनर्जी और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग प्रभावित हुए हैं.
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नई दिल्‍ली:

Rare Earth Metals Explained: संसाधनों पर हक की लड़ाई हमेशा से रही है और अगर ये संसाधन बहुत ही रेयर यानी बिरले हो तो उन पर कब्जे की लड़ाई और भी गंभीर हो जाती है. दुनिया में इन दिनों एक संघर्ष कुछ ऐसे ही एलिमेंट्स यानी तत्वों को लेकर चल रहा है जिन्हें रेयर अर्थ मिनरल्स या रेयर अर्थ मेटल्स कहा जाता है. दुनिया में रेयर अर्थ मिनरल्स का सबसे बड़ा भंडार चीन में है और चीन इसे लेकर आंख दिखाता रहा है. दबाव बनाता रहा है जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है. 

कुछ लोग हैरान होंगे कि अगर यह रेयर अर्थ मेटल्स ना हो तो आपके स्मार्टफोन से लेकर आपके कंप्यूटर और तमाम इलेक्ट्रॉनिक सामान, सेमीकंडक्टर्स, बिजली से चलने वाली कारें, विमानों के इंजन, इलाज के उपकरण, तेल की रिफाइनिंग यानी और यहां तक कि युद्ध में इस्तेमाल होने वाली मिसाइल्स और रडार सिस्टम तक नहीं बन पाएंगे.

आइए रेयर अर्थ मेटल्‍स के बारे में विस्‍तार से समझते हैं. 

सवाल: रेयर अर्थ मेटल्‍स होते क्या हैं और ये इतने जरूरी क्यों हैं?

रेयर अर्थ मेटल्‍स वे 17 रासायनिक तत्व हैं जो लैंथेनाइड्स समूह में आते हैं और अत्यंत दुर्लभ होते हैं. ये दिखने में चांदी जैसे चमकदार और हल्के होते हैं. इनमें नियोडाइमियम, समेरियम, लैंथेनम, यूरोपियम जैसे तत्व शामिल हैं. इनकी खास भौतिक और चुंबकीय (magnetic) प्रॉपर्टीज के कारण यह हाई-टेक तकनीकों में अपरिहार्य हो गए हैं. मोबाइल फोन, विंड टर्बाइन, MRI मशीन, लड़ाकू विमान, इलेक्ट्रिक गाड़ियां- इन सभी में इनका उपयोग होता है.

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सवाल: दुनिया में इनका भंडार कहां-कहां है और चीन का वर्चस्व क्यों है?

यूएस जियोलॉजिकल सर्वे (जनवरी 2025) के अनुसार, दुनिया में 9 करोड़ टन REEs हैं. इनमें से 4.4 करोड़ टन चीन के पास हैं. इसके बाद ब्राजील (2.1 करोड़ टन), भारत (69 लाख टन), ऑस्ट्रेलिया, रूस, वियतनाम और अमेरिका जैसे देश आते हैं. पर चीन केवल खनन ही नहीं करता, बल्कि प्रोसेसिंग तकनीक में भी सबसे आगे है, इसलिए वैश्विक सप्लाई चेन पर उसका दबदबा है. वह इन मिनरल्स के जरिए राजनीतिक और आर्थिक दबाव बनाता है.

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सवाल: RE मैग्नेट्स पर चीन की पाबंदी का असर क्या पड़ा?

चीन ने अप्रैल 2025 से Rare Earth Magnets के निर्यात पर पाबंदी लगा दी, जिससे ऑटो सेक्टर, ग्रीन एनर्जी और इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री पर असर पड़ा है. भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल और डिफेंस उपकरणों की सप्लाई चेन बाधित हुई है. इन मैग्नेट्स की वैश्विक सप्लाई का 90% हिस्सा चीन के हाथ में है, जिससे वह किसी भी देश की टेक्नोलॉजी ग्रोथ को प्रभावित कर सकता है.

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सवाल: अब दुनियाभर के देश क्या कर रहे हैं?

दुनिया भर के देश चीन पर निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं. अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान जैसे देश खुद का उत्पादन बढ़ाने में जुटे हैं. भारत को भी न केवल खनन बढ़ाना होगा, बल्कि प्रोसेसिंग तकनीक में आत्मनिर्भरता लानी होगी. इसके लिए विदेशी साझेदारियों, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देना जरूरी है.

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सवाल: भारत की क्या स्थिति है और क्‍या रणनीति है?

भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन उत्पादन में हम बहुत पीछे हैं. 2024 में भारत ने सिर्फ 2900 टन ही उत्पादन किया जबकि चीन ने 2.7 लाख टन. इस अंतर को देखते हुए भारत सरकार ने 'नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन' शुरू किया है. इसके तहत 2031 तक 1200 जगहों पर सर्वे कर 30 प्रमुख खनिज भंडारों की पहचान की जाएगी. इसके अलावा "सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑन क्रिटिकल मिनरल्स" बनाने की योजना भी है.

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