Explainer : तुर्की में हंगामा क्यों बरपा? क्या है पैगंबर मोहम्मद की तस्वीरों से जुड़ी ये गुत्थी

इसकी शुरुआत हुई 2005 में डेनमार्क के एक अखबार Jyllands-Posten द्वारा प्रकाशित कार्टूनों की एक सीरीज में पैगंबर मोहम्मद भी शामिल था. दुनिया भर में मुस्लिमों ने इसका विरोध शुरू किया. पश्चिम एशिया में विरोध प्रदर्शन काफ़ी तेज हो गए. जनवरी 2006 में इस कार्टून सीरीज को नॉर्वे के एक अखबार Magazinet ने रिप्रिंट कर दिया.

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  • तुर्की में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून को लेकर हंगामा बढ़ा
  • चार लोगों को कार्टून बनाने के आरोप में तुर्की में गिरफ्तार किया गया
  • LeMan मैगज़ीन ने कार्टून को मुस्लिम व्यक्ति का पोर्ट्रेट बताया है
  • इस्लाम में पैगंबर की तस्वीर बनाना निषिद्ध है, विवाद नया नहीं है
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 नई दिल्ली:

पैगंबर मोहम्मद के कार्टून बनाने को लेकर एक बार फिर हंगामा हो गया है और इस बार इस्लामिक देश तुर्की में ही माहौल गर्मा गया है. पैगंबर मोहम्मद का कथित कार्टून बनाने के आरोप में तुर्की में चार लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. LeMan मैगजीन में ये कार्टून प्रकाशित किया गया जिसके बाद इस्तांबुल में मैगज़ीन के दफ़्तर के बाहर भारी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. सोमवार को एक बयान में मैगजीन ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि ये मोहम्मद नाम के एक मुस्लिम व्यक्ति का पोर्ट्रेट था जो मुस्लिम लोगों की मुश्किलों को दिखाने के लिए बनाया गया था. पूरा तुर्की इससे नाराज है.

वैसे पैगंबर मोहम्मद के कार्टून बनाने को लेकर विवाद पहले भी आते रहे हैं जिनका असर पूरी दुनिया में दिखा है. इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद की तस्वीर बनाने की इजाजत नहीं है लेकिन बीते 20 साल से दुनिया के कई अखबारों में पैगंबर मोहम्मद के कथित कार्टूनों के प्रकाशन को लेकर मुस्लिम जगत में नाराजगी रही है और इसे ईशनिंदा बताया गया है. इनमें सबसे बड़ा विवाद जिन कार्टूनों को लेकर रहा वो आज तक थमा नहीं है.

इसकी शुरुआत हुई 2005 में डेनमार्क के एक अखबार Jyllands-Posten द्वारा प्रकाशित कार्टूनों की एक सीरीज में पैगंबर मोहम्मद भी शामिल था. दुनिया भर में मुस्लिमों ने इसका विरोध शुरू किया. पश्चिम एशिया में विरोध प्रदर्शन काफ़ी तेज हो गए. जनवरी 2006 में इस कार्टून सीरीज को नॉर्वे के एक अखबार Magazinet ने रिप्रिंट कर दिया. इसके कुछ दिन बाद गाजा में यूरोपियन यूनियन के दफ़्तर में एक बंदूकधारी पहुंचा और कार्टूनों को लेकर माफी की मांग की. अगले दिन डेनमार्क के अखबार ने कार्टूनों के लिए माफी मांग ली.

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लेकिन इस पर विरोध जताने के लिए 1 फरवरी को फ्रांस, जर्मनी, इटली और स्पेन के कई अखबारों ने इन कार्टूनों को फिर छाप दिया. इस पर गुस्सा और तेज हो गया. पश्चिम एशिया में डेनमार्क और नॉर्वे के दूतावासों पर हमले हो गए. मामला तब और बढ़ गया जब 8 फरवरी 2006 को फ्रांस में व्यंग्य से जुड़ी एक मैगज़ीन शार्ली हैब्डो ने इस कार्टून सीरीज को फिर छाप दिया. यही नहीं इस पर फ्रंट पेज भी बना दिया. इसके बाद तो विरोध की आग और तेज हो गई. कई मुस्लिम संगठनों ने इस्लाम का अपमान करने के लिए शार्ली हेब्डो के ख़िलाफ केस दायर कर दिए.

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उधर फ्रांस के अखबार लिब्रेशन ने इन कार्टूनों को फिर से प्रिंट कर दिया. इस बीच कार्टूनों को छापने पर लगे नस्लीय अपमान के आरोपों से शार्ली हेब्डो को कोर्ट में मुक्ति मिल गई लेकिन मामला थमा नहीं. फरवरी में ही Jyllands-Posten समेत डेनमार्क के कई अखबारों ने फिर एक विवादित कार्टून छाप दिया. इसके अगले महीने 19 मार्च को इस मुद्दे पर अल क़ायदा के आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन ने यूरोपियन यूनियन को धमकी दे दी लादेन ने दावा किया कि पोप की अगुवाई में इस्लाम के ख़िलाफ ये new Crusade यानी नया धर्मयुद्ध है.

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नवंबर 2011 में शार्ली हेब्डो अख़बार ने पैगंबर मोहम्मद को व्यंग्य करते हुए एडिटर इन चीफ के तौर पर दिखाया जिसके अगले दिन पेरिस में शार्ली हेब्डो के दफ़्तरों में आगज़नी हो गई. आगज़नी के एक साल बाद सितंबर 2012 में शार्ली हेब्डो ने फिर पैगंबर मोहम्मद के दो आपत्तिजनक कार्टून छाप दिए. जनवरी 2015 में शार्ली हेब्डो ने काल्पनिक कहानी प्रकाशित की जिसमें दिखाया गया कि 2022 में फ्रांस इस्लामिक शासन के तहत आ जाएगा. आलोचकों ने कहा कि ये इस्लाम का डर पैदा करने की साज़िश है. 

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इसके बाद शार्ली हेब्डो के पेरिस के दफ़्तरों पर हथियारबंद बंदूकधारियों ने हमला कर दिया जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई. हमलों में शार्ली हेब्डो के एक एडिटर, चार कार्टूनिस्ट, दो कॉलमनिस्ट और एक कॉपी एडिटर समेत बारह लोग मारे गए. हमले के दोनों आरोपियों को मुठभेड़ में मार गिराया गया. इसके हफ़्ते भर बाद शार्ली हेब्डो ने 30 लाख कॉपियां छाप दीं जिनमें फ्रेंच में लिखा था I am Charlie. ये शार्ली हेब्डो के साथ एकजुटता दिखाने और प्रेस और बोलने की आज़ादी को लेकर एक वैश्विक स्लोगन बन गया. 2015 में बारह लोगों की हत्या करने वालों की मदद करने के 14 आरोपियों पर केस शुरू हुआ. दिसंबर 2020 में उन्हें दोषी पाया गया लेकिन इससे पहले सितंबर 2020 में शार्ली हेब्डो ने फिर आपत्तिजनक कार्टून छाप दिए. कुल मिलाकर ये मामला ख़त्म नहीं हुआ एक ओर प्रेस की आजादी की दलील दी जाती रही और दूसरी ओर इस्लाम के अपमान और ईशनिंदा का आरोप लगता रहा.

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