दिल्ली के प्रगति मैदान में चल रहा अंतरराष्ट्रीय ट्रेड फेयर बुधवार को अपने आख़िरी दिन में पहुं रहा है. राजधानी में हवा ‘गंभीर' श्रेणी में बनी रही, डॉक्टरों ने लगातार बाहर निकलने से बचने की सलाह दी, लेकिन दिल्लीवालों की रफ्तार पर न तो स्मॉग की परत असर डाल पाई और न ही लगातार बिगड़ता AQI. भीड़ वही रही,उत्साह वही रहा.
शुरुआती पाँच दिन बिज़नेस विज़िटर्स के नाम रहे और 19 नवंबर से मेले ने आम लोगों के लिए दरवाज़े खोल दिए. और फिर क्या राज्यों की हस्तकलाओं से लेकर विदेशी स्टॉल्स की चमक तक सबकुछ देखने के लिए लोग दूर–दराज से यहां पहुंचने लगे. इस बार थाईलैंड, अफ़ग़ानिस्तान, तुर्की समेत लगभग 11–12 देशों ने हिस्सा लिया. हॉल नंबर 1 से 5 के बीच सबसे ज़्यादा रौनक दिखी—महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, नागालैंड, असम, हर राज्य अपने रंग में रंगा हुआ.
थाईलैंड के आर्टिफ़िशियल ज्वेलरी काउंटर पर महिलाओं की भीड़ लगी थी, तो तुर्की के रंगबिरंगे लैंप्स और मोरक्कन-स्टाइल लाइट्स लोगों का ध्यान खींचते रहे. अफ़ग़ानिस्तान के स्टॉल पर ड्राई फ्रूट्स का टेस्ट कर लोग मेवों की क्वालिटी पर चर्चा करते दिखे. खाने–पीने से लेकर पहनने–ओढ़ने और घर सजाने तक की शॉपिंग, डेलीवाले सबमें बराबर व्यस्त थे, मानो कुछ घंटों के लिए स्मॉग शहर की हकीकत ही न हो.
लेकिन दिल्ली की पहचान ही यही है, दिल्ली न रुकी है, न रुकती है. लाल क़िले पर धमाके के कुछ दिनों बाद ही चांदनी चौक और लाल क़िला वापस भीड़ से गुलज़ार हो उठे. सरकार ने भी रेड फोर्ट पर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब के 350वें शहीदी दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किया. प्रदूषण हो, मुश्किलें हों या डर दिल्ली अपने ज़ख़्मों के साथ भी आगे बढ़ने का हौसला रखती है. शायद यही इस शहर की सबसे बड़ी खूबसूरती है.
मेले में छोटे बच्चों की मस्ती भी खूब दिखी. ओखला से आई दसवीं की छात्राओं का एक ग्रुप फव्वारे के पास फोटो खिंचवाता नज़र आया, तो झज्जर से आए लड़कों का ग्रुप पूरे हॉल में घूमता देखा गया. वहीं, अफ़ग़ानिस्तान से आए कारोबारियों ने कहा कि इस बार उनकी उम्मीद के मुताबिक बिक्री हुई है. लेकिन तस्वीर सबके लिए एक जैसी नहीं थी. महाराष्ट्र के कोल्हापुर से आए सूर्यकांत, जो हर साल कोल्हापुरी चप्पल का स्टॉल लगाते हैं, इस बार निराश दिखाई दिए. उनकी शिकायत थी कि MSME स्टॉल्स को हॉल नंबर 6 में रखा गया, जहाँ भीड़ कम पहुँची. पिछले साल जहाँ 5 लाख का सामान बिका था, इस बार आख़िरी दिन से ठीक पहले तक सिर्फ़ डेढ़ लाख की बिक्री हुई. उनका कहना था कि ‘हॉल 3 में बैठे हमारे जानकार की अच्छी कमाई हो रही है. लोग आते हैं, घूमते हैं लेकिन खरीददारी कम कर रहे हैं.'
उधर, नागालैंड के कारीगरों के पास बेचने के लिए बहुत कम स्टॉक बचा था, उनकी सारी शॉल और स्टोल शुरुआती दिनों में ही बिक चुके थे. भीड़, रफ्तार और रंगों से भरा ये मेला एक बार फिर याद दिला गया कि दिल्ली की धड़कनें कभी धीमी नहीं होतीं है.इसलिए ही तो कहते हैं, दिल्ली आख़िर दिलवालों की है.














