- दिल्ली के लाल किले के पास हुए आतंकी हमले में 15 लोगों की जान गई और 20 से अधिक घायल हुए थे
- सुसाइड बॉम्बर एक पढ़ा लिखा डॉक्टर था, जो आतंकवादी साजिश से जुड़ा पाया गया है
- रिटायर्ड मेजर समर पाल तूर ने बताया कि आरोपियों को बचपन से कट्टरपंथी विचारधारा में इंडॉक्ट्रिनेट किया गया था
दिल्ली के लाल किले के पास हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर दिया. इस हमले में 15 लोगों की जान गई, वहीं 20 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. इस आतंकी साजिश के तार पाकिस्तान से जुड़े हुए हैं और मामले में लगातार नए खुलासे हो रहे हैं. सुसाइड बॉम्बर बन दिल्ली में धमाका कर लोगों की जान लेना वाला कोई आम शख्स नहीं था बल्कि पढ़ा लिखा इंसान था वो भी पेशेवर डॉक्टर. अब तक देखा जाता था कि आतंकी कम पढ़े लिखे लोगों का ब्रेन वॉश कर अपने नापाक इरादों को अंजाम देने की फिराक में रहते थे लेकिन डॉक्टर जैसे पढ़े लोग क्यों आतंक की राह पर चल रहे हैं. इसी बारे में एनडीटीवी से बातचीत में रिटायर्ड मेजर समर पाल तूर ने आंतकी साजिश और आरोपियों की मानसिकता पर कई अहम बातें साझा कीं.
कम उम्र से ही इंडॉक्ट्रिनेशन
मेजर तूर ने कहा कि इन आरोपियों को बचपन से ही कट्टरपंथी विचारधारा में ढाला गया था. उन्होंने बताया कि इनका साइकोलॉजिकल माइंडसेट समझना जरूरी है. इन्हें बहुत कम उम्र से इंडॉक्ट्रिनेट किया गया था. यही वजह है कि आखिरी दम तक ये फिदायीन हमले के लिए तैयार रहे. उन्होंने चेतावनी दी कि जो वीडियो सामने आया है, उसे ऑडियो के बिना दिखाया जाए क्योंकि यह टेरर ग्रुप्स के लिए टेम्पलेट बन सकता है.
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ड्रोन अटैक की साजिश पर खुलासा
मेजर तूर ने बताया कि ड्रोन से हमला करना आसान नहीं है. ड्रोन में जियो-फेंसिंग होती है, जिससे रेड ज़ोन में उड़ान असंभव होती है. इसे हटाने के लिए कोड ब्रेकिंग और सॉफ्टवेयर मॉडिफिकेशन की जरूरत होती है. इसके लिए टेक्निकल टीम चाहिए, साथ ही ड्रोन की कैपेसिटी सीमित होती है, ज्यादा विस्फोटक नहीं ले जा सकता. उन्होंने कहा कि ऐसे हमलों के लिए बड़ी तैयारी, ओपन स्पेस और मेनपावर की जरूरत होती है.
पढ़े-लिखे युवाओं को कैसे बरगलाया जाता है?
मेजर तूर ने बताया कि आतंकी संगठन पढ़े-लिखे युवाओं को अलग-थलग कर देते हैं. इनको एक ही ग्रुप में रखा जाता है, बाहर की दुनिया से काट दिया जाता है. 24 घंटे इन्हें फिदायीन बनने की बात समझाई जाती है. यही वजह है कि ये आखिरी पल तक बम डिटोनेट करने में सफल रहे. उन्होंने यह भी बताया कि डॉक्टर और प्रोफेशनल्स को कैसे टारगेट किया जाता है. नमाज़ के बाद छोटी-छोटी बैठकों में कट्टरपंथी बातें की जाती हैं. जो लोग इन विचारों से सहमत होते हैं, उन्हें धीरे-धीरे रिक्रूट किया जाता है.
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