WI vs IND 2nd Test: टैक्सी ड्राइवर के बेटे मुकेश कुमार ने किया टेस्ट करियर का आगाज, जानें पेसर की 5 अहम बातें

West Indies vs India, 2nd Test: बिहार के गोपालगंज जैसे छोटे जिले से आकर टीम इंडिया तक पहुंचना बताने के लिए काफी है कि मुकेश कुमार ने कितना ज्यादा संघर्ष किया है

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West Indies vs India, 2nd Test: भारतीय टेस्ट के नए सदस्य मुकेश कुमार
नई दिल्ली:

विंडीज के साथ वीरवार को त्रिनिडाड एंड टोबैगो में शुरू हुए दूसरे टेस्ट (Wi vs Ind 2nd Test) में भारतीय मैनेजमेंट ने बंगाल के लिए खेलने वाले 29 साल के पेसर मुकेश कुमार (Mukesh Kumar) को इलेवन में जगह दी, तो एक वर्ग ने फिर से वही सवाल किया, जो विंडीज दौरे में टीम के चयन के समय किया था. कौन है यह मुकेश कुमार? ये  निश्चित रूप से वो लोग हैं, जो घरेलू रणजी ट्रॉफी पर बारीक नजर नहीं रखते. और सिर्फ आईपीएल या टीम इंडिया के मुकाबले देखते हैं. अगर वह घरेलू क्रिकेट फॉलो करते, तो इस तरह बातें मुकेश कुमार को लेकर नहीं ही हो रही होतीं. चलिए मुकेश कुमार के बारे में पांच अहम बातें जान लीजिए. 

पिता की जिद पर छोड़ा गोपालगंज, लेकिन...
मुकेश कुमार बिहार के गोपालगंज जिले से आते हैं. शुरुआत से ही क्रिकेट में रुचि रखने वाले मुकेश दो बार सीआरपीएफ की परीक्षा पास नहीं कर सके. वहीं, बिहार की अंडर-19 टीम का प्रतिनिधित्व करने के बाद उनका क्रिकेट करियर भी आगे नहीं बढ़ रहा था. ऐसे में पिता ने नौकरी के लिए जोर देने पर मुकेश ने बंगाल (कोलकाता) का रुख  कर लिया. कोलकाता में टैक्सी चलाने वाले पिता चाहते थे कि मुकेश नौकरी करके उनका सहारा बनें, लेकिन मुकेश ने यहां क्रिकेट में भी कोशिश करना जारी रखा. 

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पूर्व क्रिकेटर राणादेब बोस ने की मदद
एक चयन ट्रॉयल में भारत के लिए खेल चुके राणादेब बोस ने मुकेश की प्रतिभा को पहचाना. राणा ने बढ़िया जूतों से लेकर मुकेश की रहने की व्यवस्था सुनिश्चित कराने के लिए कैब तत्कालीन कैब सचिव और भारतीय पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को राजी किया. और एक समय जब मुकेश कुपोषण से जूझ रहे थे, तो ऐसे समय में उनके चिकित्सीय खर्चें की व्यवस्था बंगाल एसोसिएशन ने कराई. मुकेश का प्रदर्शन निखरा, तो फिर उन्हें गांगुली, मनोज तिवारी सहित कैब से पूरा समर्थन और सहयोग मिला. 

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घरेलू क्रिकेट में दिखाया दम

मुकेश कुमार ने साल 2015-16 में बंगाल के लिए रणजी करियर का आगाज किया. और यहां से उन्होंने अपने प्रदर्शन में शानदार नियमितता दिखाई. और यह उनके पिछले करीब सात साल के घरेलू क्रिकेट के आंकड़ों से साफ देख जा जा सकता है. मुकेश कुमार ने अभी तक बंगाल के लिए खेले 39 रणजी ट्रॉफी मैचों में 149 विकेट लिए हैं. मतलब हर पारी में लगभग दो विकेट. और यही निमयितता और सटीक यॉर्कर फेंकनी की कला ने उन्हें सेलेक्टरों की नजरों में चढ़ा दिया.

आईपीएल नीलामी में मिला प्रदर्शन का इनाम

छह भाई-बहनों में सबसे छोटे मुकेश कुमार के पिता काशीनाथ का पिछले साल निधन हो गया, लेकिन मुकेश की कोशिशें इससे प्रभावित नहीं हुईं. आखिरकार इस साल हुए आईपीएल के लिए पिछले साल के आखिरी में हुई नीलामी में मुकेश कुमार को उनकी वह कीमत मिल ही गई, जिसके वह हकदार थे. दिल्ली कैपिटल्स ने बंगाल के लिए दाएं हत्था पेसर को 5.50 करोड़ रुपये में खरीदा

...पर करना होगा अभी खासा काम
दिल्ली के लिए मुकेश ने इस साल 10 मैच खेले और इन मैचों में वह सिर्फ 7 ही विकेट ले सके. साफ है कि मैनेजमेंट की उम्मीदों पर मुकेश खरे नहीं उतरे. समस्या मुकेश का इकॉनमी रन-रेट भी रहा. फेंके कुल 31 ओवरों में उनका इकॉ-रेट 10.52 का रहा, जो उन्हें बहुत ही अच्छी तरह से बता गया कि अगर उन्हें फटाफट या व्हाइट-बॉल क्रिकेट में खुद को जमाना है, तो उन्हें बहुत ज्यादा काम अपनी बॉलिंग पर करना होगा. 

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