कहानी U19 क्रिकेट टीम की: वैभव सूर्यवंशी को सफलता को सिर पर चढ़ने देने से बचना होगा

U19 Asia Cup 2025, Vaibhav Suryavanshi: हमेशा से कहा जाता है कि भारत पाकिस्तान का मुकाबला मैदान पर गेंद और बल्ले के बजाए दिमाग से खेला जाता है. जिस टीम ने अपने आप पर नियंत्रण रख लिया और दबाव को हावी नहीं होने दिया वो टीम जीतती रही है.

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Vaibhav Suryavanshi: वैभव सूर्यवंशी को सफलता को सिर पर चढ़ने देने से बचना होगा

अंडर 19 एशिया कप का फाइनल भारत हार गया, कोई बात नहीं ,  भारत बुरी तरह हारा केवल 191 रन से, कोई बात नहीं, खेल में हार जीत होती रहती है. मगर भारतीय खिलाड़ियों का मैदान पर अकड़ देखिए. हमेशा से कहा जाता है कि भारत पाकिस्तान का मुकाबला मैदान पर गेंद और बल्ले के बजाए दिमाग से खेला जाता है. जिस टीम ने अपने आप पर नियंत्रण रख लिया और दबाव को हावी नहीं होने दिया वो टीम जीतती रही है. यही वजह है कि हमने केवल एक ICC टूर्नामेंट को छोड़ कर, हर बार जब पाकिस्तान से मुकाबला हुआ है, पाकिस्तान को हराया है. 

मगर मौजूदा टीम के इन 19 साल के बच्चों का मैदान पर अकड़ तो देखिए, खासकर एक 14 साल का बच्चा जो अपनी आईपीएल की एक सेंचुरी का अभी तक खा रहा है. उसके आईपीएल के 7 मैच में 36 के औसत से 252 रन है. जिसमें 101 रन की सेंचुरी है. यही 14 साल का बच्चा पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में 26 रन बना कर आउट होता है तो विपक्षी खिलाड़ी को जूते नोक पर रखने जैसे इशारा करता है. बहुतों को यह अच्छा लगा होगा मगर एक खेल प्रेमी होने के नाते किसी को बहुत बुरा लगा होगा. यदि भारत ये एशिया कप जीत जाता, तब भी यदि इस खिलाड़ी ने ऐसा किया होता तो भी उसे बुरा ही कहा जाता. 

वंडर वॉय वैभव का मौजूदा टूर्नामेंट का स्कोर देखते हैं. संयुक्त अरब अमीरात के खिलाफ 171 उसके बाद 5, 50, 9, 26 यानी सफलता इसके सिर चढ़कर बोलने लगती है. इस 14 साल के खिलाड़ी की प्रतिभा पर किसी को कोई शक नहीं है. मगर हर कोई सचिन नहीं होता. इस खिलाड़ी को सीखना पड़ेगा कि सफलता को कैसे अपने उपर हावी नहीं होने देना हैं. प्रतिभा का सही तरह उपयोग करना उसको सही दिशा में ले जाने का काम टीम मैनेजमेंट का है. 

पिछली अंडर-19 टीम ने जब 2018 का वर्ल्ड कप जीता था, तब राहुल द्रविड़ कोच थे फिर उन्होंने सीनियर टीम के साथ टी 20 का वर्ल्ड कप भी जीता. मगर राहुल द्रविड़ जैसा शख्स ही इन बच्चों को काबू में और अनुशासन में रख सकता है. यह अनुशासन मैदान के अंदर ज्यादा जरूरी है. छोटी उमर के बच्चों का कोच बनाना मुश्किल होता है. शायद ह्रषिकेश कानितकर और सुनील जोशी भी यही सोच रहे होंगे. 

टीम का कोच होने के नाते उनकी ज़िम्मेदारी बनती है क्योंकि किसी टीम से बेहतर प्रदर्शन करवाना कोच का काम है. साथ ही टीम को सही मनोदशा में रखना इन्हें का काम है. वैसे फाइनल में हारने के कई कारण थे लेकिन सबसे महत्वपूर्ण था भारतीय बल्लेबाजों का ग़ैरज़िम्मेदाराना शॉट खेलना.  सूर्यवंशी, कप्तान आयुष महात्रे,आरोन जार्ज और कुंडू का बेवजह अपना विकेट फेंकना. फाइनल में म्हात्रे ने 2, जार्ज ने 16, कुंडू ने 13 रन बनाए. 

इससे पहले भारत ने खराब बोलिंग करके 347 रन बनाने दिए और जब हमारे बल्लेबाज खलने आए तो 50 ओवर के मैच के बजाए लगा कि टी 20 खेल रहे हैं. भारतीय टीम 26.2 ओवर में 156 रन बना कर ऑल आउट हो गई. यदि इन खिलाड़ियों को मानसिक रूप से मजबूत नहीं बनाया गया तो बहुतों का करियर शायद ही लंबा चले. 

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हमने बहुत-बहुत प्रतिभा वाले विनोद कांबली, विश्व कप विजेता कप्तान उन्मुक्त चंद और पृथ्वी शॉ जैसों को गुमनाम होते देखा है. वैभव सूर्यवंशी और कप्तान आयुष  मह्रात्रे आईपीएल में राजस्थान और चेन्नई के लिए भी खेलते हैं. उम्मीद करते हैं कि एशिया कप को भूला कर वो आईपीएल में अच्छा प्रदर्शन करेंगे. यही नहीं खिलाड़ियों को खेल का सम्मान करना सीखना पड़ेगा और खेल भावना का भी यानि मैदान के अंदर अच्छा खेलना और अपने विपक्षी टीम के खिलाड़ियों का भी सम्मान करना.

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