सहवाग ने World Cup 2023 के लिए द्रविड़ को दी "कर्स्टन शैली" से खिलाड़ियों को तैयार करने की सलाह

सहवाग ने कहा कि हाल ही में WTC Final में मिली हार के बाद राहुल द्रविड़ पहले से ही आलोचना के घेर में आ चुके हैं. उन्होंने कहा कि हम दो बार WTC के फाइनल में पहुंचे, लेकिन कोई भी लगातार दो बार फाइनल में पहुंचने की बात नहीं करता

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वीरेंद्र सहवाग ने द्रविड़ को अहम सलाह दी है
नई दिल्ली:

साल 2011 विश्व कप टीम का हिस्सा रहे आतिशी वीरेंद्र सहवाग (Virender Sehwag) ने उम्मीद जताते हुए कहा है कि वर्तमान हेड कोच राहुल द्रविड़ ( Rahul Dravid) पूर्व कोच गैरी कर्स्टन के तरीके पर चलते हुए निजी तौर पर खिलाड़ियों की तैयारी पर और मेगा इवेंट से पहले बचे करीब दर्जन भर मैचों पर ध्यान केंद्रित करेंगे. कर्स्टन ने साल 2008 में बतौर हेड कोच टीम इंडिया से जुड़े थे और वह इस पद पर 2011 विश्व कप तक बने रहे. 

सहवाग ने मंगलवार को भारत में होने वाले World Cup 2023 से ठीक सौ दिन पहले ट्रॉफी के अनावरण पर कहा कि इन तीन साल हमने हर मैच को एक नॉकआउट मैच के रूप में लिया. यहां से टीम इंडिया को हर मैच को एक नॉकआउट मैच के रूप में लेना चाहिए. इससे टीम की राह आसान होगी क्योंकि पहले से ही टीम की मनोदशा कुछ ऐसी हो चुकी है.

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उन्होंने कहा कि हमारे समय में कर्स्टन ने हर खिलाड़ी को उसके अपने तरीके से अभ्यास करने की इजाजत दी. इसके तहत इस बात की जरूरत नहीं थी कि सहवाग सचिन की तरह दो सौ-तीन सौ गेंद खेलें. अगर मैं बीस गेंद खेल सकता था और अच्छा खेल रहा था, तो यह काफी था. पूर्व ओपनर ने कहा कि राहुल द्रविड़ को यह जानना चाहिए कि खिलाड़ी विशेष से उसका सर्वश्रेष्ठ हासिल करने के लिए उसे कितना अभ्यास करना चाहिए. जब एक बार खिलाड़ी मैदान पर कदम रखता है, तो खिलाड़ी का प्रदर्शन कोच का भी आंकलन करता है. अगर खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करता है, तो कोच की भी प्रशंसा होती है. इसके उलट कोच को खासी आलोचना झेलनी पड़ती है. 

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सहवाग ने कहा कि हाल ही में WTC Final में मिली हार के बाद राहुल द्रविड़ पहले से ही आलोचना के घेर में आ चुके हैं. उन्होंने कहा कि हम दो बार WTC के फाइनल में पहुंचे, लेकिन कोई भी लगातार दो बार फाइनल में पहुंचने की बात नहीं करता, जो कि अपने आप में बड़ी उपलब्धि है. हर कोई हार के बारे में बात कर रहा है. और द्रविड़ को खराब कोच करार दे रहा है. वीरू ने कहा कि द्रविड़ एक अच्छे कोच और खिलाड़ी हैं, लेकिन यहां पहली बात खिलाड़ियों का बेहतर करना है. कोई भी स्कूल टीजरों से नहीं, बल्कि इससे आने वाले छात्रों से जाना जाता है. 

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