Sachin Tendulkar reunites with childhood friend Vinod Kambli: द टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक खबर के मुताबिक 1983 वर्ल्ड कप विजेता टीम के खिलाड़ी पूर्व टेस्ट क्रिकेटर विनोद कांबली के मेडिकल (Vinod Kambli's Health Update) का खर्चा उठाने को तैयार है, अगर विनोद कांबली रिहैब सेंटर में जाने को तैयार होते हैं. ये कहानी इस अंजाम तक सोशल मीडिया पर एक वायरल वीडियो की वजह से ज़रूर पहुंची, लेकिन इस कहानी की शुरुआत बेहद अलग ऐसी नहीं थी..
कहानी सचिन और विनोद के बचपन की है (Sachin Tendulkar and Vinod Kambli)
बात सचिन और विनोद के बचपन की है. तब सचिन और कांबली सात-आठ साल के रहे होंगे, जब 1980 में अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे सुपरस्टार्स की फ़िल्म 'दोस्ताना' आई थी. इस फिल्म का एक गाना बहुत मशहूर हुआ था.. 'मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया'... मुंबई के शिवाजी पार्क में विनोद कांबली और सचिन तेंदुलकर की एक स्टेज पर हुई मुलाकात ने इस गाने की यादें ताजा कर दी दीं. सचिन शोहरत की जिस बुलंदी पर पहुंच चुके हैं, लगभग उतनी ही सफल शुरुआत कभी विनोद कांबली की भी रही. विनोद कांबली ने सचिन की तरह ही तेज रफ्तार पकड़ी, मगर उनकी गाड़ी उस रफ़्तार पर कायम नहीं रह सकी. जबकि, मेहनत लगन और शायद सख्त अनुशासन ने सचिन को लंबी रेस का घोड़ा साबित किया जबकि कांबली एक ऐसे हीरो बनकर रह गए जिनकी कहानी शायद कुछ और हो सकती थी.
बात 1988 की है. मुंबई के आजाद मैदान पर सासानियन क्रिकेट क्लब में गुरु रमाकांत आचरेकर के दो चेले खिलाड़ी रनों अंबार लगा रहे थे. शारदाश्रम विद्यामंदिर के लिए दोनों ने मिलकर 664 रनों का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया. कोच इशारा कर उन्हें बुलाने की कोशिश करते रहे. मगर, दोनों दोस्त हैरिश शील्ड टूर्नामेंट में सेंट जेवियर के गेंदबाजों की धुनाई करते रहे. इस मैच में सचिन ने 324 रन बनाए जबकि विनोद कांबली ने नाबाद 349 रन.
उम्र में सचिन से करीब सवा साल बड़े विनोद कांबली का करियर शुरुआत से ही कुलाँचे मारने लगा.
1994 के पेप्सी ऑस्ट्रेलिया एशिया कप के सेमी फाइनल में विनोद कांबली क्रीज़ से बाहर निकाल कर ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज शेन वार्न को छक्के-चौके जड़ते रहे और एक ओवर में 22 रन बना डाले. शेन वार्न के खौफ को तोड़ने की हिम्मत उसे वक्त जो कांबली ने दिखाई, वो रातों-रात शोहरत की बुलंदियां छूने लगे.क्रिकेट की दुनिया के दिग्गज उस वक्त सचिन तेंदुलकर और ब्रायन लारा के साथ विनोद कांबली की भी करने लगे. पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर भी इन तीनों बल्लेबाजों को एक ही कतार में देखते थे, देखना चाहते थे.
हालांकि विनोद कांबली का अंतरराष्ट्रीय करियर सिर्फ 9 साल लम्बा रहा और वह 17 टेस्ट और 104 वनडे ही खेल सके. लेकिन यह जानकर आपको हैरानी हो सकती है कि टेस्ट और फर्स्ट क्लास में विनोद कांबली का औसत सचिन से कहीं ज्यादा रहा. टेस्ट मैचों में कांबली का औसत 54.20 रहा जबकि सचिन का 53.78. इसी तरह फर्स्ट क्लास में विनोद कांबली का औसत 59.57 रहा तो सचिन का औसत 57.84.
वैसे, इन दोनों दिग्गजों की तुलना शायद यहीं खत्म हो जानी चाहिए. सचिन की महानता के अनगिनत किस्से हैं. उनके नाम 100 अंतरराष्ट्रीय शतक और बेशुमार रन हैं जबकि विनोद कांबली ने अपने करियर में छह अंतरराष्ट्रीय शतक लगाए एक शूटिंग स्टार, उल्का पिंड की तरह चमके, रोशनी की तरह गुम हो गए.
इन सबके लिए विनोद कांबली खुद भी कहीं ना कहीं जरूर जिम्मेदार रहे. किस्मत ने भी उनके साथ नहीं दिया. 2013 में जब सचिन ने अपना आखिरी टेस्ट मैच खेला (200 टेस्ट और 463 वनडे) उसी साल विनोद कांबली (17 टेस्ट, 104 वनडे) को दिल का दौरा भी पड़ चुका था. शराब और अनुशासनहीनता ने उन्हें पाई-पाई का मोहताज कर दिया. उन्हें रिहैब सेंटर तक जाने की जरूरत पड़ गई. इसे कुदरत का खेल नहीं तो और क्या कहेंगे एक बार ये कहानी फिर वही पहुंच गई है.
बीमार विनोद कांबली का अपने दोस्त का भावुक होकर हाथ जकड़ना क्रिकेट फैंस के लिए दिल को छू लेने का लम्हा बन गया. मुंबई के आजाद मैदान शानदार कहानी करीब 36 साल बाद शिवाजी पार्क पहुंचकर दर्द भरी और मार्मिक बन गई.