'लोन भरना था, इसलिए पूरी सब्जी भी बेची...', तेंदुलकर और कोहली के साथी खिलाड़ी ने अपने संघर्ष के दिनों को याद कर हुए इमोशनल

Manoj Tiwary on his struggle, पूर्व क्रिकेटर मनोज तिवारी ने अपने संघर्ष के दिनों को याद किया है और बताया है कि कैसे वो लोन को पूरा करने के लिए पूरी -सब्जी तक बेचा करते थे.

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Manoj Tiwary big statement on his struggle

Manoj Tiwary recalls hardships days:  भारत के पूर्व क्रिकेटर मनोज तिवारी (Manoj Tiwary) ने अपने संघर्ष के दिनों को याद किया है और खुलासा किया है कि जब वो 14 साल के थे तो वो अपने मां के साथ लोन खत्म करने के लिए पूरी सब्जी बेचा करते थे. हाल ही में लल्लनटॉप के साथ इंटरव्यू के दौरान मनोज तिवारी ने अपने संघर्ष के दिनों को याद किया है. बता दें कि तिवारी ने 12 वनडे और तीन टी-20 इंटरनेशनल मैच खेलने में सफल रहे थे. मनोज तिवारी ने इंटरव्यू के दौरान अपने संघर्ष को लेकर बात की और कहा, "जिम्मेदारी के कारण मैंने समय से पहले रिटायरमेंट नहीं लिया..वो मुश्किल समय था. एक बात हमेशा मेरे दिमाग में रहती थी कि मुझे लोन चुकाना है. कोलकाता में मंगला हाट है, वहां मैं पूरी सब्जी बेचता था, मेरी मां पूरी बनाती थीं.  कई बार लोग खाने के पैसे भी नहीं देते थे."

पूर्व भारतीय खिलाड़ी ने अपनी बात आगे ले जाते हुए कहा, "मैंने नट और बोल्ट की फैक्ट्री में काम किया.. ये तब की बात है जब मैं करीब 14 साल का था. जब मैं अंडर-16  खेलता था तो मुझे हर मैच के लिए 1200 रुपये मिलते थे. इसलिए मैंने गणित लगाया और सुनिश्चित किया कि मैं क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करूं ताकि हमेशा पैसे मिलते रहें. मैं फैक्ट्री से भाग गया.  ये बहुत व्यस्तता वाला समय था.  फैक्ट्री मालिक हमसे काम करवाता था."

इसके अलावा इंटरव्यू में मनोज तिवारी ने धोनी (Manoj Tiwary on MS Dhoni) को लेकर भी बात की और कहा कि, साल 2011 में चेन्नई में वेस्टइंडीज के खिलाफ मैंने अपना पहला वनडे शतक लगाया, लेकिन उस मैच के बाद कई महीनों तक मुझे बेंच पर बैठना पड़ा,  उस समय एमएस धोनी टीम के कप्तान थे."

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इस बारे में पूर्व भारतीय क्रिकेटर ने कहा, "धोनी कप्तान थे, टीम इंडिया कप्तान की योजना के अनुसार चलती है. राज्य की टीमों में चीजें अलग होती हैं, लेकिन टीम इंडिया में सब कुछ कप्तान पर निर्भर करता है. अगर आप देखें, कपिल देव के समय में वह ही टीम चलाते थे, सुनील गावस्कर के कार्यकाल में भी उनका फैसला था, मोहम्मद अजहरुद्दीन के कार्यकाल में भी यही हुआ. उसके बाद दादा और इसी तरह आगे भी. यह तब तक चलता रहेगा जब तक कोई सख्त प्रशासक आकर कोई नियम नहीं बनाता."

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