पिछले एक दशक में दुनिया की क्रिकेट और खेलने के तरीके पर काफी कुछ बदला है! टी20 ने थोड़े और 'पैर' पसारे, तो इसका टेस्ट पर भी असर पड़ा. मॉडर्न एरा में महंगे (टीम इंडिया के स्तर पर करीब डेढ़ से दो लाख रुपये) होते, अति गुणवत्ता वाले शानदार बल्ले और टी20 में छोटी बाउंड्री (टेस्ट से तुलना पर) के साथ रिवर्स स्कूप, रिवर्स स्वीप सहित और कई बातों के साथ बहुत ज्यादा हद तक टी20 ने पारंपिक टेस्ट क्रिकेट में भी सेंधमारी कर ही दी! टी20 में 'विशेष टाइप ऑफ ब्रांड क्रिकेट', 'बल्लेबाज विशेष का रोल','बल्लेबाज विशेष इसी तरह खेलता है", जैसी शब्दावाली से टी20 का स्तर और ऊंचा हुआ, तो सिर्फ तीन घंटे में चौकों- छक्कों की झमाझम बारिश के मजे से अभिभूत बड़ी संख्या में प्रशंसकों का ध्रुवीकरण इस फॉर्मेट की ओर हो गया.
वहीं, इंग्लैंड ने टेस्ट में बैजबॉल का तड़का लगाया, तो दुनिया के बाकी देशों पर भी टेस्ट खेलने के तरीके में बदलाव का दबाव पड़ा. मिला-जुला नतीजा यह रहा कि इसका असर बल्लेबाजों की मनोदशा पर भी पड़ा! टेस्ट क्रिकेट की 'रंगत' बहुत हद तक बदल गई. परिणाम भी साढ़े तीन-चार दिनों में आने लगे, लेकिन इस पैदा हुए 'सिस्टम' में तकनीक, पारंपरिक शैली, थोड़े जरूरत से ज्यादा टर्निंग ट्रैक, थोड़ी दोहरे उछाल और इन सबसे ऊपर टी20 में बल्लेबाजों पर नियमित रूप से स्ट्राइक-रेट बढ़ाने का दबाव ने उस "जरूरी धैर्य" और कौशल (तकनीक+फुटवर्क+नरम हाथों से खेलना, आदि) को लगभग खत्म कर दिया, जो अक्सर थोड़े 'आड़े-तिरछे' विकेट पर एक साधारण स्पिनर को भी खेलने के लिए जरूरी होता है.
हम यहां शेन वॉर्न, मुरलीधरन जैसे स्पिनरों की बात एक बार को छोड़ देते हैं. नवजोत सिद्धू, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण ने इसी ईडन गाॉर्डन की इससे भी ज्यादा घुमाव और दोहरे उछाल भरी पिचों पर खेल के महान दिग्गजों के खिलाफ एक से बढ़कर एक पारियां खेली हैं. इससे अलग चेतेश्वर पुजारा जैसे तकनीकी 'अड़ियल' बल्लेबाज भारतीय क्रिकेट में और कहां हैं? पुजारा के जाने के बाद से टीम इंडिया नंबर-3 पर खूंटा गाड़कर बल्लेबाजी करने वाले को अभी भी तलाश रहा है. अंतर किस बात का है? बल्लेबाजों के स्तर और उनके कौशल का तो अंतर है ही, लेकिन टी-20 फॉर्मेट भी एक अनिवार्य कारक है.
महान दिग्गजों की तुलना को एक बार छोड़ देते हैं, लेकिन पिछले करीब एक दशक ने तो जरूर टी20 ने टर्निंग ट्रैक पर स्पिनरों के खिलाफ खेलने के कौशल (तकनीक+फुटवर्क+नरम हाथों से खेलना, शॉट चयन.. आदि) पर बड़ा असर डाला ही डाला है. और यह कइयों में से एक बड़ा कारक रहा कि पिछले साल न्यूजीलैंड ने साधारण से स्पिनरों के दम पर उस भारतीय टीम को उसी के घर में 3-0 से हरा दिया, जिसे कभी 'घर के शेर'का तमगा वैश्विक मीडिया ने दिया था जिसके बारे में कहा जाता था कि स्पिन खेलने का कौशल भारतीय बल्लेबाजों के डीएनए में है! क्या बीसीसीआई ने कीवियों से मिले दर्द को महसूस किया? जमीन या घरेलू क्रिकेट या प्लानिंग में तो यह नहीं ही दिखा! वही भारतीय बललेबाज अपने घर में 'कागजी शेर' बन कर रह गए, तो साधारण स्पिनरों के खिलाफ भी खेलने का कौशल न जाने कहां हवा-हवाई हो गया!
करीब एक साल पहले कीवी टीम ने स्तरीय स्पिनरों के दम पर 'घर के शेर' तमगे पर प्रचंड और असहनीय वार किया, तो अब दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले टेस्ट में मामला इस स्तर तक पहुंच गया कि ईडेन गॉर्डन में जीत के लिए सिर्फ 124 भर का लक्ष्य मिला, तो टीम इंडिया जीत से 31 रन दूर रहते हुए मैच गंवा बैठी. कभी स्पिनर खेलने के लिए कभी दुनिया में मिसाल बने देश के बल्लेबाजों का अपने ही घर में स्पिनिंग ट्रैक पर कौशल कहां खड़ा है, यह देखा और समझा जा सकता है. और अगर यहां से बीसीसीआई गंभीर नहीं हुआ, तो विश्वास कीजिए कि अगर भविष्य में टीम इंडिया 93 से और कम स्कोर पर सिमटती दिखाई देती है, तो चौंकिएगा बिल्कुल मत!














