मोदी सरकार का एक फैसला केजरीवाल सरकार के लिए बना राहत का कारण, जानिए क्या है मामला?

एसीबी इस मामले की जांच करेगी कि दिल्ली में सरकारी स्कूलों में क्लास रूम बनवाने में कोई भ्रष्टाचार हुआ है या नहीं

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केजरीवाल सरकार के खिलाफ उसकी इजाजत के बिना एसीबी जांच नहीं कर सकती.
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दिल्ली सरकार के खिलाफ जांच के लिए उसी से लेनी होगी इजाजत
पिछले साल भ्रष्टाचार निरोधक कानून में हुए बदलाव में की गई व्यवस्था
शुरुआती इन्क्वारी करने के लिए भी राज्य सरकार की अनुमति जरूरी
नई दिल्ली:

दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ने दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाया था कि उसने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में क्लास रूमों के निर्माण में दो हजार करोड़ रुपये का घोटाला किया है. बीजेपी के नेताओं ने इस बारे में दिल्ली पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवाई थी. अब दिल्ली पुलिस कमिश्नर की जारत से दिल्ली पुलिस ने इस मामले को एंटी करप्शन ब्रांच यानी एसीबी को भेज दिया है. यानी अब एसीबी भी इस मामले की जांच करेगी कि दिल्ली में सरकारी स्कूलों में क्लास रूम बनवाने में कोई भ्रष्टाचार हुआ है या नहीं.

लेकिन क्या यह जांच हो पाएगी इस पर संदेह है? और संदेह होने का सबसे बड़ा कारण मोदी सरकार का पिछले साल लिया गया फैसला.

क्या था मोदी सरकार फैसला?
दरअसल पिछले साल मोदी सरकार पार्ट-1 में भ्रष्टाचार निरोधक कानून में एक अहम बदलाव किया गया था. इस बदलाव के तहत यह तो हुआ था कि अब किसी भी मामले में भ्रष्टाचार की जांच के लिए केंद्र सरकार के मंत्रियों अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार से मंजूरी लेनी अनिवार्य होगी. ठीक इसी तरह राज्य सरकार के मंत्रियों अधिकारियों और कर्मचारियों के ऊपर लगे आरोपों की जांच के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेनी जरूरी होगी.

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साफ शब्दों में कहें तो दिल्ली पुलिस ने एंटी करप्शन राज को मामला भेज तो दिया है लेकिन एंटी करप्शन ब्रांच को इस मामले में जांच करने के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार से ही अनुमति लेनी होगी. इसलिए यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या केजरीवाल सरकार अपने ही खिलाफ जांच की इजाजत देगी?

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क्या कहते हैं जानकार?
दिल्ली में भ्रष्टाचार से जुड़े कई तरह के मुकदमे लड़ने वाले वकील विजय अग्रवाल के मुताबिक ' प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट यानी भ्रष्टाचार निरोधक कानून में बीते साल जो बदलाव किया गया उसके बाद FIR दर्ज करके जांच तो बाद की बात है बल्कि उससे पहले जो शुरुआती इन्क्वारी होती है राज्य सरकार की अनुमति के बिना वह भी नहीं की जा सकती. अगर मामला राज्य के मंत्री अधिकारी और कर्मचारी से जुड़ा है.'

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