गाजीपुर बार्डर पर अब यूपी और उत्तराखंड के किसानों की तादाद बढ़ने लगी

गाजीपुर बार्डर पर रुके बच्चों के लिए खासतौर पर अस्थाई लाइब्रेरी तैयार की गई, किसान और उनके साथ हमदर्दी रखने वाले वाले लोग अलग-अलग तरीके से मदद कर रहे

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प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:

दिल्ली-यूपी की गाजीपुर बार्डर (Ghazipur border) पर किसानों ( Farmers) की तादाद बढ़ रही है. अब यहां यूपी (UP) और उत्तराखंड (Uttrakhand) के हजारों किसानों ने डेरा डाल दिया है. यूपी के पीलीभीत जिले से 12 साल के गुरकीरत सिंह अपनी गुल्लक का पैसा देने के लिए गाजीपुर बार्डर पहुंचे हैं. सिंधु और टिकरी बार्डर की तर्ज पर अब गाजीपुर बार्डर पर भी चंदा देने वालों की कतार लगी है. बच्चों से लेकर बड़े तक अपनी क्षमता के हिसाब से पैसे दे रहे हैं.

गुरकीरत सिंह ने कहा कि हम किसानों को समर्थन देने के लिए पैसे लाए हैं क्योंकि हम भी किसान हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने महिला बुजुर्ग और बच्चों को प्रदर्शन से दूर रहने की अपील की है लेकिन गाजीपुर बार्डर पर रुके बच्चों के लिए खासतौर पर अस्थाई लाइब्रेरी तैयार की गई है. एनएच 9 पर एक लाइब्रेरी बनाई गई है जहां किताबों के साथ पेंटिंग बनाने का सामान बच्चों को दिया जा रहा है.

गाजीपुर बार्डर से खोड़ा तक तक टेंट और अस्थाई तंबू लगे हैं. इनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है. ठंड और वक्त बढ़ने से किसानों के प्रति लोगों की संवेदनाएं बढ़ रही हैं. उत्तराखंड के रुद्रपुर से आए शाहिद मुफ्त में किसानों के बाल और दाढ़ी काट रहे हैं. वे कहते हैं कि जब लॉकडाउन में हम छह महीने घर पर बैठ सकते हैं तो किसानों की दाढ़ी मुफ्त में क्यों नहीं बना सकते.

किसान और उनके साथ हमदर्दी रखने वाले वाले लोग अलग-अलग तरीके से मदद करते हुए यहां मिल जाएंगे. इन सबके बीच सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी से किसान नेताओं में एक नया जोश पैदा हो गया है. किसान नेता जगतार बाजवा ने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं कि उन्होंने किसानों की समस्याओं को समझा है और सरकार की आलोचना की है.

गाजीपुर बार्डर पर अब यूपी और उत्तराखंड के किसानों की भागीदारी बढ़ने से सरकार के माथे पर बल पड़ा है क्योंकि अब तक इस किसान आंदोलन को केवल पंजाब का ही बताया जा रहा था.

पंद्रह दिन पहले तक यहां महज कुछ ट्रैक्टर ट्रालियां और दो से तीन सौ किसान दिखते थे, वहीं दिन बढ़ने के साथ किसानों की तादाद बढ़ रही है. ऐसे में सरकार की टाइम बाय करने वाली रणनीति किसान आंदोलन पर कारगर होती नहीं दिख रही है.

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