
प्रतीकात्मक फोटो
- भारत में सबसे ज्यादा हैं मूक बधिर
- देश के साथ-साथ देश के बाहर भी है बेहतर जॉब
- कुछ महीने का कोर्स आपको करा सकती है मोटी कमाई
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साइन लैंग्वेज सीखने वाले का काम
साइन लैंग्वेज इंटरप्रेटर का काम सामने वाले के शब्दों को तय संकेतों में ढालकर दूसरे को इशारे में समझाना होता है. भाषा संकेत अंग्रेजी में सबसे ज्यादा प्रचलित माने जाते हैं. आज कल स्कूल-कॉलेजों में मूक-बधिर छात्रों के साथ-साथ सामान्य छात्र भी सांकेतिक भाषा सीख रहे हैं. इस विषय में स्नातक करने वाले छात्र शिक्षा के क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं.
बढ़ रही हैं मांग
आपको भले ही यह सुनने में अजीब लगे लेकिन बीते कुछ वर्षों में साइन लैंग्वेज सीखे लोगों की मांग बढ़ रही है. इसकी एक वजह यह है कि भारत में मूक-बधिर लोगों की संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है. साइन लैंग्वेज उनकी प्राकृतिक भाषा है. ऐसे में इन छात्रों को भी प्रशिक्षण देने के लिए साइन लैंग्वेज शिक्षकों की मांग बढ़ी है.
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मिलता है बेहतर सैलरी ऑफर
इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों के पास अच्छी आमदनी का भी मौका होता है. खासकर यदि आप विदेशी एनजीओ या मेडिकल क्षेत्र से जुड़ते हैं तो शुरुआती स्तर पर बीस से पच्चीस हजार रुपये तक आसानी से कमाया जा सकता है. जैसे जैसे आप अनुभव पाते हैं वैसे ही आपको मिलने वाले पैकेज में तेजी से बदलाव होता है.
रोजगार के ढेरों अवसर
साइन लैंग्वेज सीखने के बाद आपको शिक्षा, समाज सेवा क्षेत्र, सरकारी संस्थानों और बिजनेस से लेकर परफॉर्मिंग आर्ट्स, मेंटल हेल्थ, मेडिकल और कानून सहित बहुत से क्षेत्रों में काम बेहतर विकल्प मौजूद हैं. स्वयंसेवी संस्थाओं में भी काम करने के काफी अवसर हैं. इस लैंग्वेज को सीखने वाले लोगों का तो कई बार पढ़ाई करते हुए अलग-अलग संस्थाओं में नौकरी लग जाती है.
कैसे होती है पढ़ाई
मूक-बधिर छात्रों को पढ़ाने के दो अहम तरीके हैं. पहला मौखिक संवाद और दूसरा इंडियन साइन लैंग्वेज. देश के लगभग 500 स्कूलों से ज्यादा स्कूलों में दूसरे तरीके से ही छात्रों को पढ़ाया जाता है. साइन लैंग्वेज में तीन से चार महीने के कोर्स के अलावा शारीरिक अशक्तता से ग्रस्त बच्चों के शिक्षण के लिए कई अन्य कोर्स भी हैं, जिन्हें पूरा करने के बाद अच्छे रोजगार प्राप्त किए जा सकते हैं.
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प्रतीकों की हो जानकारी
बेहतर प्रोफेशनल बनने के लिए आपको बेहतर प्रतीकों को समझना आना चाहिए. इसके लिए उनके इस्तेमाल की विधि बताई जाती है. सभी कोर्स दो से चार महीने के लिए कराए जाते हैं. कोर्स के तहत बेसिक से लेकर एडवांस लेवल की जानकारी अलग-अलग चरणों में दी जाती है. साथ ही उन्हें विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ने के लिए भी संकेतों के माध्यम से गहन अध्ययन कराया जाता है। इस माध्यम में छात्रों को पढ़ाई के दौरान आवश्यक अध्ययन सामग्री भी उपलब्ध कराई जाती है.
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