बसंत पंचमी (Basant Panchami) का बड़ा देश भर में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. बसंत पंचमी (Basant Panchami) हिंदूओं के बड़े त्योहार में से एक है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विद्या की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था. बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. साथ ही इसी दिन से ऋतुराज बसंत प्रारंभ होता है. आज का दिन दिल्ली पर शासन करने वाले अंतिम हिंदू शासक पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) के शौर्य और पराक्रम के लिए भी याद किया जाता है. बता दें कि अंतिम हिन्दूराजा के रूप में प्रसिद्ध पृथ्वीराज पंद्रह वर्ष की आयु में राज्य सिंहासन पर आरूढ़ हुए. पृथ्वीराज की तेरह रानियां थी. 1192 ईसवीं में बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने आंखें न होने के बावजूद अपने दुश्मन मोहम्मद ग़ोरी को मौत के घाट उतार दिया था. पृथ्वीराज चौहान ने जिस तरह मोहम्मद ग़ोरी का वध किया था वह वाकया भी बड़ा दिलचस्प और हैरतअंगेज है.
इतिहासकारों की मानें तो पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) और मोहम्मद ग़ोरी के बीच तराइन के मैदान में दो बार युद्ध हुआ था. पहले युद्ध में ग़ोरी को मुंह की खानी पड़ी. कहते हैं पृथ्वीराज चौहान उदार हृदय वाले थे और उन्होंने युद्ध में शिकस्त देने के बावजूद ग़ोरी को जिंदा छोड़ दिया. पर दूसरी बार तराइन के मैदान में जब युद्ध हुआ तब ग़ोरी जीत गया और उसने पृथ्वीराज को नहीं छोड़ा. वह पृथ्वीराज चौहान को अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और वहां उनकी आंखें फोड़ दीं. ग़ोरी का प्रतिशोध यही शांत नहीं हुआ और उसने उन्हें जान से मारने की ठान ली.
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पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) शब्दभेदी बाण चलाने के उस्ताद थे. वह आवाज सुनकर तीर चला सकते थे. ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पहले उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा. पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई ने ग़ोरी को ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत करने का परामर्श दिया. ग़ोरी मान गया और उसने ठीक वैसा ही किया जैसा कि चंदबरदाई ने कहा था. तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया:
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
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पृथ्वीराज चौहान अपने प्रिय मित्र चंदबरदाई का इशारा समझ गए और उन्होंने तनिक भी भूल नहीं की. उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगा लिया कि ग़ोरी कितनी दूरी और किस दिशा में बैठा है. फिर क्या था उन्होंने जो बाण मारा वह सीधे ग़ोरी के सीने में जा धंसा. इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे का वध कर आत्मबलिदान दे दिया. इतिहासकारों की माने तो 1192 ईसवीं की यह घटना भी बसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी.
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