भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता और विदेशी पूंजी की निरंतर निकासी से रुपया अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर चला गया. मंगलवार को शुरुआती कारोबार में रुपया 90.82 प्रति डॉलर पर पहुंच गया. रुपये की कीमत गिरकर 90.8275 प्रति अमेरिकी डॉलर हो गई, जो एक दिन पहले दर्ज किए गए अपने पिछले रिकॉर्ड निचले स्तर 90.7875 को पार कर गया. इससे पहले 12 दिसंबर को रुपये ने सर्वकालिक निचले स्तर (All TIme Low) को छुआ था, जो कि 90.55 था. शुक्रवार से अब तक रुपये में 27 पैसे की गिरावट है.
रुपये की गिरावट के पीछे क्या हैं वजहें?
- साल 2025 में अब तक रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 6% तक गिर चुका है, जिससे यह सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली उभरती बाजार मुद्राओं में से एक बन गया है. भारतीय निर्यात पर लगे कड़े अमेरिकी टैरिफ (शुल्क) ने व्यापार और विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह को नुकसान पहुंचाया है.
- इस साल विदेशी निवेशकों ने $18 बिलियन से अधिक के स्थानीय स्टॉक बेचे हैं, और वे अब तक के रिकॉर्ड निकासी (outflow) की ओर बढ़ रहे हैं. शुरुआती कारोबार में भारत के बेंचमार्क इक्विटी सूचकांक, बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी 50, दोनों में लगभग 0.4% की गिरावट दर्ज की गई.
- ट्रेडर्स के मुताबिक, गैर-सुपुर्दगी योग्य फॉरवर्ड्स मार्केट में पोजीशन की संभावित परिपक्वता ने रुपये पर दबाव डाला, लेकिन सरकारी बैंकों द्वारा डॉलर की बिक्री से इस गिरावट को रोकने में मदद मिली. डॉलर की ये बिक्री, संभवतः भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से की गई थी.
- एक्सपर्ट्स के मुताबिक, 'रुपये की कमजोरी मुख्य रूप से टैरिफ-संबंधी चिंताओं और विदेशी निवेशकों की बिकवाली से प्रेरित है, न कि इकोनॉमिक फंडामेंटल्स में गिरावट से. जब तक ये अल्पकालिक असंतुलन बने रहेंगे, दबाव जारी रह सकता है.'
- उन्होंने कहा कि बहुत निकट भविष्य में, ₹90.00–₹90.20 रुपये के लिए मजबूत समर्थन क्षेत्र बना हुआ है, जबकि ₹90.80–₹91.00 एक प्रमुख प्रतिरोध क्षेत्र के रूप में कार्य करता है.
कब और कैसे मजबूत होगा रुपया?
विश्लेषकों का कहना है कि जब तक अमेरिका-भारत व्यापार वार्ता में कोई सफलता नहीं मिलती, तब तक रुपये की स्थिति में बदलाव की संभावना कम है. ट्रेड सचिव ने सोमवार को चल रही बातचीत का जिक्र करते हुए कहा, 'आइए देखते हैं कि अगले कुछ महीनों में क्या होता है. भारत इस समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने के लिए अमेरिका के साथ जुड़ा हुआ है.'
जानकारों का मानना है कि पिछले महीने भारत के निर्यात में आई तेजी और लचीली आर्थिक ग्रोथ ने कड़े अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने में मदद की है, जिससे नई दिल्ली पर तुरंत ट्रेड डील करने का दबाव कम हुआ है. नवंबर में अमेरिका को भारत का निर्यात साल-दर-साल 21% बढ़ा, जिससे व्यापार घाटा पांच महीने के निचले स्तर $24.53 बिलियन पर आ गया.














