वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) 23 जुलाई को लोक सभा में मोदी सरकार (Modi Government) के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट पेश करेंगी. बजट को अंतिम रूप देने की कवायद जारी है.इस बार छोटे और लघु उद्योगों ने बजट में वित्त मंत्री से विशेष पैकेज की मांग की है. रोज़गार के दृष्टिकोण से ये सेक्टर बेहद महत्वपूर्ण है. देश में करीब 5-6 करोड़ छोटे-लघु उद्योग की इकाइयां हैं जिनमें करीब 12 करोड़ लोगों को रोज़गार मिलता है.
बजट को लेकर छोटे-लघु उद्योगों की उमीदों और आकांक्षाओं को समझने के लिए एनडीटीवी संवाददाता हिमांशु शेखर ने बुलंदशहर रोड इंडस्ट्रियल एरिया में AURIONPRO Toshi Automatic Limited की फैक्ट्री का दौरा किया और उसके मैनेजिंग डायरेक्टर संजीव सचदेव से विशेष बात की. इस प्रोडक्शन असेंबली लाइन पर सेंसर्स से चलने वाले आटोमेटिक गेट, मेट्रो स्टेशंस पर लगने वाले हाईटेक Automated Fare Collection Gates और दूसरे हाई टेक सामान बनते हैं. पढ़ें बजट पर हमारी ये विशेष ग्राउंड रिपोर्ट...
फंड्स की कमी एक बड़ी समस्या
संजीव सचदेव NDTV से बातचीत करते हुए कहा कि एमएसएमई की दो सबसे बड़ी प्रॉब्लम है ...जिसमें एक है अवेलेबिलिटी का फंड्स यानी कैश की शॉर्टेज. ऊपर से रॉ मटेरियल और टैक्सेशन इतनी हाई है कि आपको कैपिटल की जरूरत से ज्यादा जरूरत पड़ती है. बिजनेस में ग्रो करने के लिए इन्वेंटरी भी मैनेज करनी पड़ती है. इसके साथ-साथ मार्केट भी बहुत ज्यादा कॉम्पिटेटिव है.
स्किल्ड लेबर और रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब की कमी
उन्होंने बताया कि जितनी इंडस्ट्रियल ग्रोथ हो रही है उसे हिसाब से हमारे पास मैनपावर और रिसर्च एंड डेवलपमेंट लैब की शॉर्टेज है.यहां पर अगर आप प्रोडक्ट को डेवलप करना चाहे तो एमएसएमई के पास रिसोर्सेस नहीं है.उसके पास इंटेंट है पर रिसोर्स बहुत लिमिटेड है, जिसकी वजह से वह रोड में ज्यादा इन्वेस्ट नहीं कर पाता. गवर्नमेंट से कोई फंडिंग नहीं मिलती कोई सपोर्ट नहीं मिलता है जिससे वह काम कर सके और अपने प्रोडक्ट को इंटरनेशनल लेवल पर ले जा सके.
पेमेंट में देरी की समस्या से मिले राहत
कोरोना संकट के बाद लगातार इस बात की चर्चा होती रही है कि एमएसएमई जो सामान बनाकर प्राइवेट सेक्टर या एंटरप्राइजेज को भेजता है तो उसे पेमेंट में देरी होती है. इसपर उन्होंने कहा कि सरकार इस पर काम कर रही है लेकिन अभी भी जमानी स्तर पर चीजें नहीं आ रही हैं और पेमेंट की दिक्कत की वजह से हमारे ऊपर इंटरेस्ट की लायबिलिटी बहुत ज्यादा बढ़ती है. खासतौर से अगर आपका कस्टमर गवर्नमेंट सेक्टर से है तो आपको कई बार पेमेंट 6 महीने से 1 साल तक देर से मिलती है.
बैंक से आसान लोन की मांग
अब आप सोच सकते हैं कि एमएसएमई के लिए एक साल अगर पेमेंट नहीं आई तो उसका क्या असर हो सकता है. हम अपना कॉलेटरल देकर बैंक से फाइनेंस लेते हैं लेकिन हम जो किसी को क्रेडिट देते हैं उसकी कोई गारंटी नहीं है. उनका कहना था को एमएसएमई को बैंक से आसान लोन मिलना चाहिए.
संजीव सचदेव ने कहा कि आज अगर एमएसएमई को पेमेंट टाइम से मिल जाए तो इससे ज्यादा कॉम्पिटेटिव कोई नहीं है अगर हमारा पैसा टाइम से आ जाए तो हम 100 फीसदी चीन को पीछे छोड़ सकते हैं.