कमजोर ग्लोबल ग्रोथ के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था दिखा रही मजबूती: RBI

RBI के मुताबिक, अप्रैल महीने में इंडस्ट्री और सर्विस सेक्टर से जुड़े हाई-फ्रिक्वेंसी डेटा पॉजिटिव रहे. इसका मतलब है कि इन सेक्टर्स में अभी भी अच्छी ग्रोथ बनी हुई है.

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RBI बुलेटिन के मुताबिक, जुलाई 2019 के बाद से सीपीआई महंगाई लगातार कम हो रही है.
नई दिल्ली:

दुनियाभर की अर्थव्यवस्था इस समय चुनौतियों से गुजर रही है. ट्रेड टेंशन, नीतियों में अनिश्चितता और कमजोर कन्ज्यूमर सेंटिमेंट ने ग्लोबल ग्रोथ को धीमा कर दिया है. लेकिन इसी माहौल में भी भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती दिखा रही है. आरबीआई ने अपने ताजा बुलेटिन में यह बात कही है.

इंडस्ट्री और सर्विस सेक्टर में बनी रही रफ्तार

आरबीआई के मुताबिक, अप्रैल महीने में इंडस्ट्री और सर्विस सेक्टर से जुड़े हाई-फ्रिक्वेंसी डेटा पॉजिटिव रहे. इसका मतलब है कि इन सेक्टर्स में अभी भी अच्छी ग्रोथ बनी हुई है.

कृषि सेक्टर को सपोर्ट कर रहे हैं मानसून और फसल के ट्रेंड

इस साल रबी की अच्छी फसल हुई है और गर्मियों की फसलों के लिए भी ज्यादा जमीन पर खेती की जा रही है. साथ ही, 2025 के लिए मानसून का अनुमान भी अच्छा बताया गया है. ये सारे पॉजिटिव संकेत भारत के कृषि सेक्टर के लिए अच्छे माने जा रहे हैं.

महंगाई में मिली राहत

बुलेटिन के मुताबिक, जुलाई 2019 के बाद से हेडलाइन सीपीआई महंगाई लगातार कम हो रही है. इसकी सबसे बड़ी वजह है खाने-पीने की चीजों की कीमतों में कमी आना है. अप्रैल 2024 में कृषि और ग्रामीण मजदूरों के लिए महंगाई की दर पहले की तुलना में काफी कम हो गई. कृषि मजदूरों के लिए सीपीआई-एएल घटकर 3.48% और ग्रामीण मजदूरों के लिए सीपीआई-आरएल घटकर 3.53% हो गई, जो पिछले साल इसी महीने में 7% के करीब थी. इसका फायदा गरीब और ग्रामीण परिवारों को मिला.

फाइनेंशियल मार्केट्स में उतार-चढ़ाव के बाद रिकवरी

अप्रैल में भारत के फाइनेंशियल मार्केट्स में थोड़ा उतार-चढ़ाव रहा, लेकिन मई के तीसरे हफ्ते से सुधार दिखने लगा. अमेरिकी टैरिफ घोषणाओं की वजह से बाजार थोड़े समय के लिए गिरे थे, लेकिन कुछ बैंक और फाइनेंशियल कंपनियों की शानदार तिमाही रिपोर्ट आने के बाद बाजार में फिर से जान आ गई.

कैश के इस्तेमाल में गिरावट और डिजिटल ट्रेंड का असर

2014 से 2024 के बीच नोटों की सर्कुलेशन यानी एनआईसी की ग्रोथ रेट पहले के मुकाबले बहुत कम रही. 1994 से 2004 के बीच एनआईसी की ग्रोथ जीडीपी से ज्यादा थी, लेकिन अब ये अंतर कम हो गया है. 

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इसके साथ ही, बुलेटिन में बताया गया है कि नाइटलाइट डेटा और टैक्स कलेक्शन या जीडीपी के बीच अब भी पॉजिटिव रिश्ता बना हुआ है. इसका मतलब है कि अब ज्यादा लोग डिजिटल और औपचारिक तरीकों से लेनदेन कर रहे हैं, जिससे नकद लेनदेन कम हो रहा है

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