अगर आप शहर से गांव या हाईवे पर सफर करते हैं, तो पेट्रोल पंप आसानी से मिल जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारत में कुल कितने पेट्रोल पंप हैं और दुनिया के दूसरे बड़े देशों के मुकाबले भारत कहां खड़ा है. अब इस सवाल का जवाब सामने आ गया है. भारत ने पेट्रोल पंप की संख्या के मामले में एक बड़ा आंकड़ा पार कर लिया है, जो सीधे देश की बढ़ती गाड़ियों और बदलते ट्रैवल पैटर्न को दिखाता है.
भारत में पेट्रोल पंप की संख्या 1 लाख के पार
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, नवंबर के आखिर तक भारत में पेट्रोल पंप की संख्या बढ़कर 1 लाख 266 हो गई है. साल 2015 में यह संख्या करीब 50 हजार थी, यानी सिर्फ 10 साल में पेट्रोल पंप की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है. इस तेजी की सबसे बड़ी वजह देश में गाड़ियों की बढ़ती संख्या और हाईवे और गांवों तक फ्यूल की आसान पहुंच बनाना है.
दुनिया में भारत की रैंक क्या है?
पेट्रोल पंप नेटवर्क के मामले में भारत अब दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है. पहले नंबर पर अमेरिका है और दूसरे नंबर पर चीन. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका में करीब 1 लाख 96 हजार पेट्रोल पंप हैं, हालांकि कुछ पंप अब बंद भी हो चुके हो सकते हैं. चीन में पेट्रोल पंप की संख्या करीब 1 लाख 15 हजार के आसपास है. इस तुलना में देखें तो भारत तेजी से इन दोनों देशों के करीब पहुंच रहा है.
सरकारी कंपनियों का सबसे ज्यादा दबदबा
भारत के 90 फीसदी से ज्यादा पेट्रोल पंप सरकारी कंपनियों के पास हैं. इनमें इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन सबसे आगे है, जिसके पास 41 हजार 664 पेट्रोल पंप हैं. इसके बाद भारत पेट्रोलियम के 24 हजार 605 और हिंदुस्तान पेट्रोलियम के 24 हजार 418 पंप हैं. यही कंपनियां देश के ज्यादातर शहरों, गांवों और हाईवे पर फ्यूल सप्लाई संभालती हैं.
प्राइवेट कंपनियों की कितनी हिस्सेदारी?
प्राइवेट कंपनियों की हिस्सेदारी अभी भी सीमित है, लेकिन धीरे धीरे बढ़ रही है. रूस की कंपनी रोसनेफ्ट की मदद से चल रही नायरा एनर्जी के पास 6 हजार 921 पेट्रोल पंप हैं, जो प्राइवेट सेक्टर में सबसे ज्यादा हैं. रिलायंस और बीपी की जॉइंट कंपनी के पास 2 हजार 114 पंप हैं, जबकि शेल के 346 आउटलेट हैं. साल 2015 में प्राइवेट कंपनियों की हिस्सेदारी करीब 6 फीसदी थी, जो अब बढ़कर 9 फीसदी से ज्यादा हो चुकी है.
गांवों में भी तेजी से बढ़े पेट्रोल पंप
देश में पेट्रोल पंप सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं रहे हैं. गांवों में पेट्रोल पंप की हिस्सेदारी अब करीब 29 फीसदी हो गई है, जो 10 साल पहले 22 फीसदी थी. इससे गांवों में रहने वाले लोगों को भी अब फ्यूल के लिए दूर नहीं जाना पड़ता. साथ ही कई नए पेट्रोल पंप पर अब सीएनजी और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए चार्जिंग की सुविधा भी मिलने लगी है.
प्राइवेट सेक्टर क्यों पीछे है?
जानकारों के मुताबिक, भारत में पेट्रोल और डीजल के दामों पर सरकार का असर बना रहता है. भले ही दाम तय करने की आजादी पहले दी गई हो, लेकिन सरकारी कंपनियों के पास ज्यादातर हिस्सेदारी होने की वजह से प्राइवेट कंपनियों के लिए मुकाबला आसान नहीं होता. नवंबर 2021 से सरकारी कंपनियों ने रोजाना दाम बदलने की प्रक्रिया भी बंद कर दी थी, जिससे कई बार प्राइवेट कंपनियों को घाटा उठाना पड़ा.
ज्यादा पेट्रोल पंप और कम कमाई की चुनौती
पेट्रोल पंप की संख्या तेजी से बढ़ने का एक असर यह भी पड़ा है कि हर पंप पर बिक्री कम हो गई है. खासकर कम भीड़ वाले रास्तों पर बने पेट्रोल पंप को मुनाफा कमाना मुश्किल हो रहा है और कुछ जगहों पर नुकसान भी झेलना पड़ रहा है.














