हिंडनबर्ग जैसी रिपोर्ट पहले भी आई थी. उस रिपोर्ट की तहकीकात हुई. मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया. सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी एंगल देखें. उसमें कुछ भी ऐसा नहीं मिला, जो गलत हो. हिंडनबर्ग बिल्कुल एक गैर-जिम्मेदार कंपनी है. इस कंपनी का मकसद सिर्फ और सिर्फ अपना फायदा करना है. सिवाय इसके इनका कोई और इंटरेस्ट नहीं है.
बड़ी बात ये है कि हिंडनबर्ग कोई रजिस्टर्ड कंपनी नहीं है. कंपनी का ये मकसद नहीं है कि स्टॉक एक्सचेंज की डीलिंग को ठीक किया जाए. इस कंपनी का मकसद सिर्फ पैसा बनाना है. इंडियन मार्केट में अस्थिरता क्रिएट किया जाए. रिपोर्ट इसलिए आई, ताकि नफाखोरी का खेल चलाया जा सके. इसलिए मेरे हिसाब से इसे तवज्जो नहीं देना चाहिए.
हिंडनबर्ग कंपनी रजिस्टर्ड ही नहीं, उसकी बातों को क्या तूल देना- KRCSS के MD देवेंद्र चौकसे
एक बात विपक्ष के लिए भी है. विपक्ष इसे उछालकर सरकार के खिलाफ मुद्दा बना रही है. सरकार पर हमले के लिए ही JPC जांच की मांग की जा रही है. मेरे ख्याल से ये बिल्कुल अच्छी प्रैक्टिस नहीं है.
इस मामले में दोबारा सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए वहां के दरवाजे खुले हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ये पूछेगी कि इस केस में क्या कोई गुंजाइश है. कोई आधार है, जिसपर केस बनता हो. सारी दुनिया में रिपोर्टें आ रही हैं. लांछन लगाए जा रहे हैं. इसका मतलब ये कतई नहीं है कि एक ही मामले को दूसरी बार, तीसरी बार या चौथी बार देखा जाए.
इस मामले में दूसरा साइड भी देखना चाहिए. एक कंपनी का नाम खराब हो रहा है. SEBI के चीफ का नाम खराब हो रहा है. मामले में कोई ठोस आधार हो, तभी जांच होनी चाहिए. बेवजह मामले को तूल नहीं दिया जाना चाहिए.
(मुकुल रोहतगी जाने-माने वकील हैं. वो भारत के 12वें अटॉर्नी जनरल रह चुके हैं.)
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