
दीपिका पादुकोण द्वारा संदीप रेड्डी वांगा की फिल्म छोड़ने के बाद से फिल्म जगत में काम के घंटों और नई मां बनी अभिनेत्रियों के लिए सुविधाओं को लेकर बहस लगातार चल रही है. हाल ही में ‘ओह माय गॉड 2' के निर्देशक अमित राय ने इस पर कुछ अलग ही तर्क दिया. उनके मुताबिक, "नहीं, फिर तो बहुत सारा पिटारा खुलेगा, बहुत सारी बातें होंगी. पहली बात तो यह है कि मातृत्व के सम्मान की चर्चा होनी ही क्यों चाहिए? मातृत्व का सम्मान तो हमेशा से है- जब से सृष्टि बनी है तब से है, और जब तक सृष्टि रहेगी तब तक रहेगा. मातृत्व के सम्मान पर कोई बहस नहीं होनी चाहिए. जो उन्हें चाहिए, वो बिना बोले दे देना चाहिए"
उन्होंने कहा, "हां, इंडस्ट्री पर बात हो सकती है कि क्या वाकई फिल्म इंडस्ट्री को ‘इंडस्ट्री' का दर्जा मिला है? मेरे पापा मिल में काम करते थे, जो दत्ता सामंत की स्ट्राइक के बाद बंद हो गई थी. लेकिन मुझे याद है हमारी कपड़ा मिल इंडस्ट्री थी- हमें छुट्टियों में गम बूट मिलते थे, नोटबुक मिलती थी, कंपास मिलता था, आने-जाने का भत्ता मिलता था, महंगाई भत्ता मिलता था, रहने के लिए घर का इंतजाम था. मतलब अपने मिल वर्कर्स के लिए सब कुछ था, क्योंकि वो एक इंडस्ट्री का हिस्सा थे".
आगे कहा, "अगर हम पन्ना खोलकर देखेंगे तो पिटारा खुलेगा और बहुत सारी बातें सामने आएंगी. जो लाइटमैन हैं, जो स्पॉटबॉयज़ हैं, जो प्रोडक्शन वाले हैं, वो बेचारे 12 घंटे की शिफ्ट के लिए तीन घंटे पहले आते हैं और तीन घंटे बाद जाते हैं- यानी उनके लिए शिफ्ट 17 घंटे की हो जाती है. उनकी भी बात होनी चाहिए. तो केवल एक क्षेत्र की बात करने से कुछ नहीं होगा. आपको पूरा सिस्टम ठीक करना होगा. जब यह सब कुछ ठीक होगा, तो मातृत्व सम्मान की चर्चा अपने आप हो जाएगी".
उन्होंने यह भी कहा, "दूसरी बात, फिल्म लाइन एक ऐसी लाइन है जहां आप अपनी मर्ज़ी से आते हैं. आपकी कनपटी पर किसी ने बंदूक रख कर नहीं कहा कि आप एक्ट्रेस बनो, राइटर बनो या डायरेक्टर बनो. आप इस क्षेत्र में इसीलिए आते हैं क्योंकि आप अपने मन से काम करना चाहते हैं. हां, काम करने के लिए अनुकूल माहौल जरूरी है, लेकिन यहां कोई तयशुदा नियम नहीं हैं. कभी वॉटरफॉल में शूट करेंगे, कभी बर्फ़ में, कभी स्टूडियो में तो कभी सड़क पर और इस सबको मैनेज करना बेहद मुश्किल होता है. टाइम फैक्टर यहां कंट्रोल हो ही नहीं सकता".
अलग-अलग कलाकार इस मुद्दे पर अपनी राय रख चुके हैं
जहां एक तरफ अजय देवगन ने कहा, "ईमानदार फिल्मकार 8 घंटे काम कर रहे हैं", वहीं अभिनेता पंकज त्रिपाठी, निर्देशक मणिरत्नम और अभिनेता सैफ अली खान भी इस मुद्दे पर अपनी बात रख चुके हैं. नीरजा जैसी फ़िल्मों के निर्देशक राम माधवानी से जब पूंछा गया की क्या दीपिका की मांग गलत थी तो उन्होंने कहा, "नहीं, व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि हर किसी को एक तय घंटों तक काम करना चाहिए. अगर कोई पहले ही साफ कह दे कि मैं सिर्फ इतने ही घंटे दे सकता/सकती हूं,' तो यह बिल्कुल सही है. मैं चाहता हूं कि मेरी टीम समय पर घर जाए, उन्हें समय पर लंच ब्रेक मिले, समय पर डिनर मिले, और वे आराम से सो सकें".
उन्होंने आगे कहा, "अगर दिन 12 घंटे का है, तो वह 12 घंटे का ही होगा. अगर दिन 10 घंटे का है, तो वह 10 घंटे का ही रहेगा. अगर अभिनेत्री सिर्फ 8 घंटे के लिए उपलब्ध है, तो मुझे यह सुनिश्चित करना होगा कि मैं उन्हीं 8 घंटों में सारा काम पूरा करूं". फिल्म इंडस्ट्री इसी तरह की बहुत सी मुश्किल परिस्थितियों से जूझ रही है, जो गाय बगाय सामने आती रहती हैं और चर्चा का विषय बनती है पर फिल्म इंडस्ट्री पर बड़ा सवाल भी खड़ा कर जाती हैं.
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