नई दिल्ली:
भारत-पाकिस्तान का विभाजन हो गया था और एक परिवार कराची से भारत आया था. इस परिवार का मुखिया जमींदार था और खाता-पीता परिवार था. लेकिन सब कुछ पीछे छूट गया था. पहले यह परिवार दिल्ली आया, फिर बनारस, कलकत्ता और आखिर में मुंबई. इस परिवार में एक छह साल की बच्ची भी थी जिसने विभाजन की विभीषिका को देखा था. यह बच्ची बचपन से ही हीरोइन बनने के ख्वाब देखती थी और 1955 में राज कपूर की फिल्म 'श्री 420' में ‘मुड़ मुड़ के न देख’ गाने में कोरस में गाने का मौका भी मिला. जब यह लड़की 17 साल की हुई तो उसे एक सिंधी फिल्म 'अबाना' ऑफर हुई. इस फिल्म का पोस्टर जब फिल्मफेयर में छपा तो इस पर मशहूर प्रोड्यूसर शशाधर मुखर्जी की नजर पड़ी. इस तरह वे उनके एक्टिंग स्कूल से जुड़ गईं. इस स्कूल में जॉय मुखर्जी भी थे.
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फिल्म के हीरो-हीरोइन हो गए थे, शशाधर के बेटे आर.के. नायर (बाद में नायर और साधना ने शादी भी कर ली) इस फिल्म को डायरेक्ट करने जा रहे थे. इस तरह हिंदी सिनेमा को 1960 में ‘लव इन शिमला’ के जरिये साधना नाम की हीरोइन मिली, जिसने आगे चलकर 33 फिल्मों में काम किया और इसमें से उनकी 27 फिल्में सुपरहिट रहीं. 'वो कौन थी' (1963), 'मेरा साया' (1966), 'मेरे महबूब' (1963), 'वक्त' (1965), 'आरजू' (1965), 'एक फूल दो माली' (1969), 'राजकुमार' (1964) इत्यादि का शुमार उनकी हिट फिल्मों में होता है. आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें:
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इस तरह बना साधना कट
जब ‘लव इन शिमला’ पर काम चल रहा था तो फोटो में उनका माथा बहुत उभरकर आता था. उसे ढंकने के लिए काफी मेहनत की गई लेकिन कुछ नहीं हुआ. उन दिनों ऑड्रे हेपबर्न का हेयरस्टाइल काफी पॉपुलर था. तो साधना सीधे पार्लर गईं और यह कट बनवा के आ गईं. इस तरह यह स्टाइल साधना कट के नाम से मशहूर हो गया. कहा जाता है कि ‘मेरे महबूब’ में मुस्लिम लड़की का किरदार निभाने के लिए साधना ने अपने हेयर स्टाइल को सीधा करने की बात कही थी. डायरेक्टर एच.एस. रवेल ने ऐसा करने से उन्हें साफ मना किया था. उन्होंने कहा था कि हम प्रेम कहानी बना रहे हैं, ऐतिहासिक फिल्म नहीं.
750 रु. मासिक मिलता था वेतन
लव इन शिमला (1960) उनकी पहली फिल्म थी. उन्हें फिल्माल्या के साथ तीन साल का कॉन्ट्रेक्ट करना पड़ा था, और इसके लिए उन्हें 750 रु. मासिक मिलते थे. दूसरे साल उनके पैसे 1,500 रु. कर दिए गए और फिर तीसरे साल 3,000 रु. गए. हालांकि बाद में वे अपने दौर की सबसे ज्यादा पैसा लेने वाली हीरोइन भी रहीं.
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पसंद नहीं था मैयत पर जाना
वे अंतिम संस्कार में नहीं जाती थीं. जब यश चोपड़ा (उनकी फिल्म वक्त (1965) में काम किया था) का निधन हुआ तो वे उनकी पत्नी से बाद में जाकर मिली थीं, ऐसा ही उन्होंने राजेश खन्ना (1972 में उनके साथ दिल दौलत दुनिया की थी) के मामले में भी किया था.
थायराइड ने गुमनामी में जाने को किया मजबूर
साधना चाहती थीं कि जिस तरह लोग उन्हें परदे पर देखते हैं, और पसंद करते हैं. वे उसी तरह हमेशा याद की जाती रहें. उन्होंने संघर्ष फिल्म साइन की थी, जिसके बाद उनकी थायराइड की दिक्कत पैदा हो गई थी. कहते हैं मेरे महबूब के समय साधना बहुत व्यस्त थीं, और रवेल को लंबे समय तक उनका इंतजार करना पड़ा था. उन्होंने ऐसा ही कुछ संघर्ष के लिए भी कहा था. लेकिन इस वादे के कुछ दिन बाद ही न्यूजपेपर में उन्हें अपनी जगह वैजयंतीमाला नजर आईं तो उनका दिल टूट गया और उन्होंने फिर कभी एच.एस.रवेल से बात नहीं की.
बेहतरीन कुक थीं साधना
नायर को खाने का बहुत शौक था, इसलिए साधना तरह-तरह का देसी-विदेशी खाना बनाना सीखा, और उनके खाने की बहुत तारीफ की जाती थी. बाद में उन्हें गार्डनिंग का शौक भी पैदा हो गया था .
यूं जुड़ा कपूर खानदान से रिश्ता
साधना और बबीता दोनों कजिन थीं. साधना के पिता और बबीता के पिता दोनों भाई थे. इस तरह अपने समय की टॉप एक्ट्रेस उनकी रिश्तेदार थी, और यह रिश्ता कपूर खान से जाकर जुड़ा.
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इस तरह बना साधना कट
जब ‘लव इन शिमला’ पर काम चल रहा था तो फोटो में उनका माथा बहुत उभरकर आता था. उसे ढंकने के लिए काफी मेहनत की गई लेकिन कुछ नहीं हुआ. उन दिनों ऑड्रे हेपबर्न का हेयरस्टाइल काफी पॉपुलर था. तो साधना सीधे पार्लर गईं और यह कट बनवा के आ गईं. इस तरह यह स्टाइल साधना कट के नाम से मशहूर हो गया. कहा जाता है कि ‘मेरे महबूब’ में मुस्लिम लड़की का किरदार निभाने के लिए साधना ने अपने हेयर स्टाइल को सीधा करने की बात कही थी. डायरेक्टर एच.एस. रवेल ने ऐसा करने से उन्हें साफ मना किया था. उन्होंने कहा था कि हम प्रेम कहानी बना रहे हैं, ऐतिहासिक फिल्म नहीं.
750 रु. मासिक मिलता था वेतन
लव इन शिमला (1960) उनकी पहली फिल्म थी. उन्हें फिल्माल्या के साथ तीन साल का कॉन्ट्रेक्ट करना पड़ा था, और इसके लिए उन्हें 750 रु. मासिक मिलते थे. दूसरे साल उनके पैसे 1,500 रु. कर दिए गए और फिर तीसरे साल 3,000 रु. गए. हालांकि बाद में वे अपने दौर की सबसे ज्यादा पैसा लेने वाली हीरोइन भी रहीं.
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पसंद नहीं था मैयत पर जाना
वे अंतिम संस्कार में नहीं जाती थीं. जब यश चोपड़ा (उनकी फिल्म वक्त (1965) में काम किया था) का निधन हुआ तो वे उनकी पत्नी से बाद में जाकर मिली थीं, ऐसा ही उन्होंने राजेश खन्ना (1972 में उनके साथ दिल दौलत दुनिया की थी) के मामले में भी किया था.
थायराइड ने गुमनामी में जाने को किया मजबूर
साधना चाहती थीं कि जिस तरह लोग उन्हें परदे पर देखते हैं, और पसंद करते हैं. वे उसी तरह हमेशा याद की जाती रहें. उन्होंने संघर्ष फिल्म साइन की थी, जिसके बाद उनकी थायराइड की दिक्कत पैदा हो गई थी. कहते हैं मेरे महबूब के समय साधना बहुत व्यस्त थीं, और रवेल को लंबे समय तक उनका इंतजार करना पड़ा था. उन्होंने ऐसा ही कुछ संघर्ष के लिए भी कहा था. लेकिन इस वादे के कुछ दिन बाद ही न्यूजपेपर में उन्हें अपनी जगह वैजयंतीमाला नजर आईं तो उनका दिल टूट गया और उन्होंने फिर कभी एच.एस.रवेल से बात नहीं की.
बेहतरीन कुक थीं साधना
नायर को खाने का बहुत शौक था, इसलिए साधना तरह-तरह का देसी-विदेशी खाना बनाना सीखा, और उनके खाने की बहुत तारीफ की जाती थी. बाद में उन्हें गार्डनिंग का शौक भी पैदा हो गया था .
यूं जुड़ा कपूर खानदान से रिश्ता
साधना और बबीता दोनों कजिन थीं. साधना के पिता और बबीता के पिता दोनों भाई थे. इस तरह अपने समय की टॉप एक्ट्रेस उनकी रिश्तेदार थी, और यह रिश्ता कपूर खान से जाकर जुड़ा.
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