नमस्कार मैं रवीश कुमार, उत्तर प्रदेश में फर्जी भीड़ बेनाम असली भीड़ की लड़ाई छिड़ गई है. हम उस लड़ाई पर आएंगे लेकिन पूरे देश में एक और लड़ाई चल रही है पहले उस पर आते हैं . भारत में अमृतकाल चल रहा हो और सीन में बाबा की एंट्री न हो तो उस अमृतकाल का कोई मतलब नहीं रह जाता. कहीं आप इस चिन्ता में तो नहीं डूबे हैं कि 7 मार्च के बाद पेट्रोल और डीज़ल कितना महंगा होगा, इतनी चिन्ता मत कीजिए, 100 रुपया लीटर पेट्रोल खरीदने का अभ्यास आप पिछले साल ही कर चुके हैं, इस साल तकलीफ नहीं होगी, टीवी पर हिजाब का डिबेट देखते हुए 110 रुपया लीटर पेट्रोल देने का दर्द पता भी नहीं चलेगा.अभी भी आप 95 से 100 रुपया लीटर पेट्रोल खरीद ही रहे हैं. ऐसी चिन्ताओं से आप अपने मन की टंकी न भरें. ख़ाली करें.उस बाबा पर ध्यान केंद्रित कीजिए जो निराकार है लेकिन उसका एक ईमेल है.ई-मेल युक्त यह संसार का पहला निराकार बाबा है.
डिजिटल इंडिया का यह पहला डिडिटल बाबा है जिसका शरीर नहीं है मगर ईमेल है. बिल्कुल क्रिप्टो करेंसी की तरह. जो पर्स में नहीं है मगर है कहीं इस अनंत जगत में.अमृत काल में प्राइम टाइम अगरबत्ती जलाकर, मगर दिमाग की बत्ती बुझाकर देखा कीजिए. निराकार बाबा ने तीनों वेदों के नाम से ई मेल आई डी बनाई है. रिग्याजुरसामा@outlook.com मतलब इस बाबा का कोई शारीरिक रुप नहीं है, लेकिन इसके पास ई-मेल है. कहानी ग़ज़ब की है. चूंकि बाबा की कहानी है तो भूमिका लंबी हो सकती है और यहां से वहां भटक सकती है. भूगोल का भी एक प्रश्न बीच में आ जाता है. क्या इस तरह के बाबा केवल हिमालय पर्वतमाला में ही पाए जाते हैं?
मतलब ये आल्प्स पर्वतमाला है, बर्फ की कमी नहीं है, ख़ूबसूरत भी बहुत है. गुफा भी होगा ही, लेकिन इतने सालों में इस रेंज से दुनिया को एक भी बाबा नहीं मिला जो लोगों को ठग भी सके और नेशनल स्टाक एक्सचेंज भी चला सके. ठीक है कि हम अपने हिमालय और बाबाओं को नहीं कोस सकते, आस्था को चोट पहुंच सकती है लेकिन आठ-आठ देशों में 1200 किलोमीटर तक फालतू में फैली इस पर्वतमाला को तो कोस ही सकते हैं. फ्रांस और जर्मनी वालों को क्या पता चलेगा कि हम आल्प्स को हिन्दी में कोस रहे हैं. कि इसने दुनिया को ठगने वाला एक भी बाबा नहीं दिया. बेकार है आल्प्स है. इसकी रेंज में फ्रांस है, जर्मनी है, इटली है, स्विट्ज़रलैंड है, मोनाको है, स्लोवानिया है, लिख-टेन-श्टाइन है. इन देशों के लोग करते क्या हैं, क्या इनमें से कोई भी बाबा नहीं बनता है. लगता है अरावली को नष्ट करने वाले ठेकेदारों को भेजना पड़ेगा तभी वहां के लोगों को आल्प्स का महत्व समझ आएगा.
यह कहानी उस अज्ञात और निराकार बाबा की है जिसके ई-मेल पर नेशनल स्टाक एक्सचेंज की हर जानकारी जाती है औऱ जिसके बारे में जांच एजेंसियां छह साल की जांच के बाद भी पता नहीं लगा पाती हैं. ऐसा नहीं है कि कोरपोरेट और बाबाओं के संपर्क की यह पहली कहानी है लेकिन स्टाक एक्सचेंज चलाने वाला यह बाबा सामने तो आना ही चाहिए. यह बाबा इंग्लिश बोलने वाले उन बाबाओं से अलग लगता है जो कारपोरेट के कर्मचारियों को आध्यात्मक का लेक्चर देते हैं.जो कंपनियां कम पैसा देती हैं, खटा खटा कर लोगों को अधमरा कर देती हैं वहां इन दिनों आध्यात्म की महीमा चल पड़ी है. अर्थ की कमी से निराश कर्मचारियों के जीवन में आध्यात्म का अर्थ ठेला जा रहा है.अब तो आध्यात्म का पैकेज बेचते बेचते बहुत सारे बाबा अपने आप में कंपनी बन गए हैं. नेशनल स्टाक एक्सचेंज की चित्रा रामाकृष्णा ने स्टाक मार्केट पर नज़र रखने वाली संस्था सेबी को बताया है कि सीनियर लीडर अनौपचारिक तौर पर इंडस्ट्री के लोगों से, कोच या मेंटर से सलाह तो लेेते ही हैं. मुझे लगा कि इस तरह के गाइडेंस से मैं अपना रोल ठीक से निभा पाऊंगी. ये कहानी उस गाइडेंस की है जो एक अज्ञात बाबा नेशनल स्टाक एक्सचेंज की सीईओ को देता है.
जिस नेशनल स्टाक एक्सचेंड से कई सौ लाख करोड़ की कारोबार होता हो, उस एक्सचेंज की सीईओ एक निराकार बाबा के प्रभाव में फैसले ले रही थीं. देश की बाकी जनता को भी उस बाबा का लाभ मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए. ऐसे गुरुओं से भरे भारत को अगर विश्व गुरु का खिताब नहीं मिलेगा तो किसे मिलेगा. साकार बाबा के बारे में सुना है लेकिन ई-मेल करने वाला, नेशनल स्टाक एक्सजेंच की रिपोर्ट पढ़ने वाला निराकार बाबा पहली बार सुना है.इंस्टाग्राम पर काफी विज्ञापन आते हैं कि स्टाक में पैसा डालें और अमीर बनें. क्या पता यह बाबा खुद अमीर बन कर निराकार से साकार हो गया हो और जिनिवा में टंडेली कर रहा हो.ऐश कर रहा हो.कांग्रेस के प्रवक्ता ने कई सवाल उठाए हैं.
ये बात तो और भी कमाल है.सरकार की हिस्सेदारी इसमें एनएसई का लाभांश 70 फीसदी है और इसे बाबा चला रहे हैं. लेकिन कांग्रेस प्रवक्ताओं को किसी बाबा के सरकारी संस्थान चलाने से क्या दिक्कत है. वे सरकार भले न चला रहे हों लेकिन सरकार के आस-पास तो चलते फिरते नज़र आ ही जाते हैं.
जब बाबा कोरोनिल की दवा बेच सकते हैं और बाद में मुकर सकते हैं, ऐसे बाबा की दवा के लांच के समय मोदी सरकार के दिग्गज मंत्री तो जाते ही हैं.जिसे लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिशन ने एतराज़ किया था.जब बाबा के कोरोनिल से कोरोना भाग रहा था तब प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के तहत कोरोनिल का प्रचार क्यों नहीं किया? कम से कम स्टाक एक्सचेंज वाले बाबा को वित्त मंत्री तो बनाया ही जा सकता है. मैं बिल्कुल अपने विषय से नहीं भटक रहा हूं. बल्कि विषय ही ऐसा है जिससे पता चलता है कि देश कितना भटक गया है. भांति भांति के बाबा आ गए हैं. जिनका धर्म से कम राजनीति और कारोबार से ज्यादा हो गया है. यह तस्वीर साक्षात नेशनल स्टाक एक्सचेंज की है, जो मुंबई में है.हमारे पास भी उस निराकार बाबा की तस्वीर नहीं है इसलिए स्टाक एक्सचेंज की तस्वीर दिखा रहे हैं.
इसी एक्सचेंज की एक पूर्व सीईओ चित्रा रामाकृष्णा और सलाहकार आनंद सुब्रमण्यन पर नियामक संस्था सेबी ने तीन करोड़ और दो करोड़ का जुर्माना लगाया है.आरोप है कि सीईओ के पद पर रहते हुए चित्रा रामाकृष्णा किसी निराकार बाबा के असर में फैसले लेती थीं, उसे एक्सचेंज की सारी जानकारी देती थीं. बाबा कौन है पता नहीं चला है केवल बाबा का ईमेल मिला है.हिन्दी में ध्यान से सुनिए. दांत चियार कर हा हा हंसने की जगह आप पेट दबा कर खी खी हंसे. हमें दसवीं कक्षा के अर्थशास्त्र में सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम पढ़ाया गया था. मैं आपको बाबान्त उपयोगिता संस्थान पतन नियम. इसके तहत संस्थाओं का पतन हो जाए कोई बात नहीं, बाबाओं की उपयोगिता हर हाल में बनी रहे. यही है बाबान्त उपयोगिता संस्थान पतन नियम.
संसार का मोह छूट गया, हिमालय चला गया लेकिन स्टाक एक्सचेंज का मोह नहीं छूटा.इसका मतलब है कि उस बाबा के भीतर भले कुछ न हो, उसके खाते में ज़रूर बहुत कुछ होगा. जाने कब पता चलेगा कि शेयर और म्युचुअल फंड से बाबा ने कितने बनाए हैं. भारतीय आस्था को लेकर इतने संवेदनशील हैं कि कोई बाबा ठग भी ले तो चुप हो जाते हैं. बाबा को कुछ नहीं कहते और यह भी नहीं बताते कि कितना ठगा है. नेशनल स्टाक एक्सजेंच में बाबा वाला मामला 2016 में ही सामने आ गया था लेकिन सेबी का आदेश छह साल बाद यानी 2022 में क्यों आता है,
चित्रा रामाकृष्ण ने दिसंबर 2016 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के सीईओ के पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन वे इस पद पर 2013-2016 तक रहीं. यही राहत की बात है कि इनकी नियुक्ति यूपीए के समय हुई लेकिन क्या यह भी राहत की बात है कि इसकी जांच में 2016 से 2022 तक का समय लग गया? चित्रा रामाकृष्णा नियमों को बदल देती हैं और ग्रुप आपरेटिंग आफिसर का नया पद बना कर आनंद सुब्रमण्यन की नियुक्ति कर देती हैं. आनंद की तनख्वाह पिछली नौकरी में 15 लाख थी,यहां सवा करोड़ सालाना पैकेज मिलता है. फिर आनंद निराकार बाबा की सलाह पर प्रमोट होकर चित्रा का सलाहकार भी बन जाता है. चित्रा उसे चीफ स्ट्रेटजी आफिसर बना देती हैं. अब उसका वेतन पांच करोड़ सालाना हो जाता है. फिर निराकार योगी की तरफ से एक ईमेल आता है कि आनंद को पांच दिनों के बजाए तीन दिन ही काम करना चाहिए तो चित्रा इस तरह का आदेश पारित कर देती हैं. इस तरह आनंद तीन दिन काम करने का आनंद लेने लगता है. लगता है फ्राडियों का स्वर्ण युग चल रहा है भारत में.
चित्रा रामाकृष्णन बी कॉम हैं. चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. दुनिया के इस हिस्से में इनसे पहले कोलम्बो स्टाक एक्सचेंज और चीन के शेंजेंन स्टाक एक्सचेंज में महिला सीईओ बनी थीं. चित्रा एन एस ई की पहली महिला सीईओ बनी थीं. इम्पैक्ट था काफी ग्लोबल. 2016 में world federation of exchanges की अध्यक्ष भी बन गई थीं. क्या सब उस निराकार बाबा के आशीर्वाद से हो रहा था? क्या बाबा चित्रा को बिजनेस टुडे से लेकर फार्ब्स पत्रिका से अवार्ड भी दिलवा रहा था?
2013 में इन्हें Forbes' Women Leader of the year (2013) का दिया गया था. क्या ये वही forbes है जो दुनिया के अमीरों की सूची छाप कर दुनिया के ग़रीबों का मज़ाक उड़ाता है. अवार्ड इसलिए मिला है क्योंकि चित्रा ने नेशनल स्टाक एक्सचेंज के कमर्शियल और रेगुलेटरी रोल में कमाल का संतुलन बिठाया है. NSE को उच्च स्तर का पेशेवर बनाया है. नए प्रोडक्ट लांच किए हैं. कटिंग-एज टेक्नालजी लाई हैं.फार्चुय्न मैगज़ीन ने भी इन्हें भारत की शक्तिशाली महिला बिजनेसवुमन की श्रेणी में रखा था. बिजनेस टुडे ने बिजनेस में कामयाबी का परचम लहराने वाली तीस महिलाओं में शामिल किया था.बिजनेस टुडे को इन पर इतना भरोसा था कि लगातार चार साल तक इन्हें चोटी के तीन महिला बिजनेसवुमेन में शामिल करता रहा. क्या इन सबको पता था कि इनकी कामयाबी का राज़ एक बाबा है. असली सीईओ वह है.
सेबी ने चित्रा रामाकृष्णा पर तीन करोड़ का जुर्माना लगाया है क्योंकि ये एक निराकार बाबा के असर में काम कर रही थीं लेकिन सेबी यह क्यों नहीं पता लगा सकी कि बाबा कौन है जिससे नेशनल स्टाक एक्सचेंज की सारी आर्थिक जानकारी साझा कर रही थीं. बोर्ड मीटिंग का एजेंडा तक दे दिया करती थीं. उस निराकार बाबा से ईमेल के ज़रिए पूछा करती थीं कि किस कर्मचारी को कितनी रेटिंग देनी है और किसे प्रमोशन देना है.इस कहानी में गंगा आ गई हैं. मां गंगा.
बाबा से मुलाकात गंगा के किस तट पर हुई, चित्रा ने पूछताछ में नहीं बताया है, निराकार रुप में मुलाकात हुई या आकार रुप में मुलाकात हुई, यह भी नहीं बताया है, लेकिन इतना बताया है कि बीस साल पहले गंगा के तट पर तीर्थ के दौरान मुलाकात हुई थी. इसलिए हम अपने स्क्रीन पर बारी बारी से हरिद्वार और बनारस स्थित गंगा के तट की तस्वीरें दिखा दे रहे हैं. ताकि आप जब इन तटों पर जाएं तो उस बाबा को खोजते रहे हैं जो स्टाक एक्सचेंज चलाता है. आपकी भक्ति में शक्ति होगी तो आपको भी ये बाबा मिल जाएगा. और हां, प्रयागराज जाएं तो वहां भी गंगा तट पर चेक कर लीजिएगा. सेबी ने चित्रा से पूछा है कि बाबा की पहचान बताएं तो जवाब देती हैं कि योगी परमहंस हैं. हिमालय रेंज में कहीं रहते हैं. तीर्थ स्थलों में उनसे मुलाकात हुई है. सेबी ने फिर पूछा कि निराकार हैं तो ईमेल कैसे है तब चित्रा का जवाब है कि जहां तक मेरी जानकारी है, आध्यात्मिक शक्तियों को ऐसी भौतिक चीज़ों की ज़रूरत नहीं पड़ती है.
मैं जानता हूं कि बहुत से लोग इस खबर को दूसरे एंगल से देख रहे हैं. वे अफसोस कर रहे हैं कि उन्हें इस बाबा की जानकारी क्यों नहीं थी. समाज का स्तर यही है कि अगर कोई यह दावा कर दे कि वही स्टाक एक्सचेंज वाला बाबा है तो यकीन जानिए लाखों लोग उसके यहां कुंडली लेकर पहुंच जाएंगे. है कि नहीं. कांग्रेस ने कुछ सवाल किया है.
अगर आप अपने सीईओ के डेडलाइन से परेशान हैं तो इस बाबा को खोज ही निकालिए क्योंकि यह बाबा पांच दिन के बजाए तीन दिन की ड्यूटी करा देता है.ईमेल से पता चलता है कि यह निराकार बाबा छुट्टियां भी मनाता है. बिजनेस पत्रकार सुचेता दलाल की रिपोर्ट से पता चला कि बाबा सेशे ल्स और दिल्ली में मौज करने की योजनाएं बना रहा था. ईमेल में बाबा उनकी प्रशंसा भी करता है. केश-सज्जा के तरीके बताता है.मतलब इसे हेयर स्टाइल का भी आइडिया है. स्टाक का तो है ही.चित्रा ईमेल में लिखती है कि NSE तो आपके आशीर्वाद से चलती है. पत्रकार सुचेता बिजनेस की दुनिया की जानकार हैं तो उन्होंने NSE और SEBI के अधिकारियों से ऑफ रिकार्ड बातचीत की है और सेबी के आदेश के आधार पर रिपोर्ट में सवाल उठाए हैं.
चित्रा की नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठे थे लेकिन सेबी दस साल तक सोती रही. सेबी की जांच बोगस लगती है क्योंकि यह स्थापित नहीं कर सकी है कि हिमालय में रहने वाला निराकार योगी कौन है. जांच से यह भी पता नहीं चलता है कि योगी और चित्रा ने किस तरह के वित्तीय लेन-देन में किए हैं. कहां कहां दोनों छुट्टियां मनाने गए हैं. इन दोनों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई क्यों नहीं हुई है. सेबी के आदेश में काफी सारे डिटेल होने के बाद भी तर्कों में भारी कमियां हैं. उनके सहारे हल्की डांट के बाद NSE के बड़े अधिकारयों को छोड़ दिया गया है. सुचेता दलाल के अनुसार NSE के सीईओ की सोच है कि चित्रा ने इस्तीफा दे दिया है तो कार्रवाई नहीं हो सकती. इस दलील से कोई भी फ्राड कर इस्तीफा दे देगा तो क्या वह कार्रवाई से बच सकेगा.
नेशनल स्टाक एक्सचेंज में कई सौ लाख करोड़ का कारोबार होता है. करोड़ों लोगों का विश्वास इस एक्सचेंज से जुड़ा है और इससे कैसे कैसे लोग जुड़े हैं. क्या यह मामूली बात है, कि एक फ्राड बाबा बन स्टाक एक्सचेंज चला रहा था, और छह साल बीत जाने के बाद भी उसकी पहचान स्थापित नहीं हुई है?
सरकार को भी विस्तार से जवाब देना चाहिए ताकि हम उसका पक्ष समझ सकें. बताना चाहिए कि छह साल क्यों लगे इस आदेश के आने में.जब 23000 करोड़ के बैंक फ्राड का मामले में FIR हुई तो सवाल उठा कि पांच साल क्यों लगे. वित्त मंत्री ने जांच एजेंसी की तारीफ की कि पहले 52-56 महीने लगते थे इस बार जांच में कम समय लगे हैं. उस जांच में क्या निकला, ऋषि अग्रवाल कहां है इसकी कोई जानकारी नहीं है. सीबीआई ने लुक आउट नोटिस जारी किया है मतलब सीबीआई को पता नहीं कि ऋषि अग्रवाल कहां है. क्या पता ऋषि अग्रवाल बाबा की तरह निराकार हो गया हो. हर कोई कह रहा है कि इस खबर के बाद दुनिया भारत पर हंस रही है लेकिन मैं हंसने वालों में शामिल नहीं हूं.मैं जानता हूं जब तक आस्था के नाम पर लोगों ने दिमाग़ इस्तेमाल न करने की कसम खाई है तब तक बाबा के नाम पर हंसना इस देश में सुरक्षित नहीं है. इसलिए मैंने हिमालय का नहीं, आल्प्स का मज़ाक उड़ाया है. कुछ भी हो जा रहा है. निराकार बाबा आकर स्टाक एक्सचेंज चलाने लग जाता है तो यूपी की रैली में भीड़ हरियाणा से आ जाती है.
दस फरवरी को सहारनपुर में प्रधानमंत्री की रैली हुई थी. क्या आपको पता था कि यहां जो लोग जमा है वो हरियाणा के कई ज़िलों से 300 बसों में लाए गए थे? यूपी की चुनावी रैली में हरियाणा की जनता क्यों सुनने आई इसका जवाब वही बाबा दे सकता है जो निराकार है. लेकिन इस भीड़ की पोल उस दिन खुल गई जब दैनिक भास्कर ने यह खबर छाप दी. इसके अनुसार हरियाणा के 300 प्राइवेट बस आपरेटर पैसा मांग रहे हैं और पैसा नहीं मिल रहा है. हरियाणा के अलग अलग जिलों से 300 बसें सहारनपुर गई थीं. जिस पर बस वालों के 31 लाख खर्च हो गए थे. तीन सौ बसें तो बहुत होती हैं. तो क्या प्रधानमंत्री की सहारनपुर की रैली में सहारनपुर की जनता नहीं थी? होगी लेकिन सहारनपुर वालों को अजीब नहीं लगा होगा कि यहां हरियाणा वाले भाई क्या कर रहे हैं.
भीड़ भी फर्ज़ी हो सकती है. हरियाणा के लोग यूपी की चुनावी रैली में ताली बजाकर तो चले गए मगर वोट नहीं दे पाए होंगे. अब उन्हें फिर से वही भाषण सुनना होगा जब हरियाणा में चुनाव होंगे तब वोट देने का मौका मिल जाएगा. एक और मामला आया है. फोटोशॉप भीड़ का. कम से कम इस काम में पैसे तो बचे ही है. जब फोटोशाप की टेक्निक है ही तो 300 बसों का सिर दर्द कौन मोल ले जब.
मंगलवार के दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्विट किया है कि जनपद इटावा ने ठाना है. हर बूथ पर कमल खिलाना है. लेकिन जो तस्वीर ट्विट की उसे लेकर सवाल उठे. सवाल यह उठा कि तस्वीर में जो भीड़ आई है वो किसी और तरफ देख रही है जिससे पता चलता है कि मंच किसी और दिशा में है. और मुख्यमंत्री आदित्यनाथ किसी और दिशा से आकर हाथ हिलाते नज़र आ रहे हैं. ऑल्ट न्यूज़ के ज़ुबैर ने इसकी पड़ताल की है और पाया है कि दो असली फोटो को मिलाकर एक नया फोटो बना दिया गया है. आल्ट न्यूज़ ने फेक नहीं लिखा है, फोटोशाप लिखा है. मंच वाली तस्वीर दिसंबर 2021 की तस्वीर है जिसमें योगी आदित्यनाथ खड़े हैं और हाथ हिला कर अभिवादन कर रहे हैं. यह तस्वीर आउटलुक में छपी है. दिसंबर वाली तस्वीर में जनता है मगर कम है.मंगलवार की तस्वीर में जनता काफी है लेकिन मुख्यमंत्री और जनता के देखने की दिशा एक दूसरे से अलग है.क्या दो अलग अलग तस्वीरों को मिलाकर ये नई तस्वीर बनी है?
कांग्रेस सेवा दल ने ट्विट किया है कि इतिहास ही रच दिया है आज "फोटो एडिट" का.खुद देख रहे पश्चिम को,हाथ उठे हुए हैं दक्षिण को. कई पत्रकारों ने लिखा है कि फोटो एडिट करने वाले की नौकरी चली जाएगी, आगे से उसकी नौकरी न जाए उसे. हम आपको रविवार को इटावा में हुई योगी आदित्यनाथ की रैली का भी वीडियो दिखाना चाहते हैं, अरशद जमाल ने यह वीडियो भेजा है इससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इटावा की रैली में कितने लोग थे और फोटोशाप के ज़रिए किस तरह भीड़ गढ़ी गई.
अगर आप इस वीडियो को मुख्यमंत्री के ट्वीट में इस्तमाल तस्वीर से मिलान करेंगे तो काफी कुछ अलग दिखेगा. रैली का मंच ट्विट किए गए तस्वीर वाले मंच से अलग है. जो तस्वीर ट्विट की गई है उसमें मंच खुला सा लग रहा है लेकिन यहां मंच ढंका हुआ है. छोटा भी है. जिस जगह पर मुख्यमंत्री की रैली हुई वह इटावा शहर में हैं. यहां का रामलीला मैदान में है. रविवार को यहां जसंवंत नगर, भरथना और सदर की सीट के लिए बीजेपी की सभा हुई थी. मुख्यमंत्री ने कहा कि समाजवादी पार्टी अवसरवादी पार्टी वंश वादी और तमंचा वादी पार्टी है और यूपी में बीजेपी 325 सीटें जीतेगी. क्या आई टी सेल को यह लगा होगा कि यहां भीड़ कम है. अगर ये वीडिओ मुख्यमंत्री ट्विट करेंगे तो संदेश अच्छा नहीं जाएगा? इसलिए कहीं और की भीड़ का फोटो लगाकर ट्विट कर दिया गया वो भी मुख्यमंत्री के ही हैंडल से.मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि बीजेपी 325 सीटें जीतने जा रही है.
राजनीतिक दलों की सभा में आने वाली जनता अब दलों की टोपी में दिखती है. इससे समझना मुश्किल हो जाता है कि टोपी वाली जनता है या कार्यकर्ता हैं. दूसरे राज्य से भीड़ लाना और फोटोशॉप से भीड़ का निर्माण करना.यही नहीं नेता अब वैसे रास्तों पर रोड शो करते हैं जो तंग हो ताकि भीड़ दिखे. अखिलेश यादव की आज कन्नौज में सभा थी.
यह सपा की रैली का वीडियो है. कन्नोज में अखिलेश ने कहा कि अगर इतना जनसमर्थन मिल रहा है तो कन्नौज में बीजेपी शून्य होने जा रही है. जो लोग किसानों के हत्यारों को ज़मानत दिलवा रहे हो उनन्हें ज़नता से ज़मानत नहीं मिलेगी. अखिलेश ने कहा कि इतनी भीड़ बता रही है कि मतदान के लिए बीजेपी के बूथ पर भूत दिखाई देगा. कन्नौज में विधानसभा की तीन सीटें हैं. 2017 में यहां दो सीटों पर बीजेपी जीती थी और एक पर सपा. अखिलेश कहते हैं, “ये जो आ रहे हैं दिल्ली वाले अपने सपनों में नहीं देख सकते थे. सपा ने बनाई है बताओ गुजरात में है क्या ऐसी सड़क. जब पीएम नहीं बना पाए तो बाबा मुख्यमंत्री क्या सड़क बनाएंगे? अरे बाबा मुख्यमंत्री को इस बार सबक सिखाओगे कि नहीं सिखाओगे, ये गौशाला के नाम पर पैसा खा गए लूट गए तार लगाने पड़ रहे हैं खेत में. और बताओ सांड घूम रहे हैं कि नहीं घूम रहे हैं सांडौं को कौन पकड़ेगा, ये शिक्षा मित्र की मदद कर रहे हैं 11 लाख पद खाली हैं उनको भरने का काम करेंगे.” ऐसे ही आज प्रियंका गांधी का कानपुर में रोड शो हुआ. किदवई नगर, आर्यनगर में. ये असली भीड़ बनाम फर्जी भीड़ का मामला है.