'मोदी-मुक्त भारत' के नारे से BJP का पार्टनर होने तक - राज ठाकरे और नरेंद्र मोदी के नरम-गरम रिश्तों की कहानी

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Jitendra Dixit

राज ठाकरे की मंगलवार को दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद अब लगभग तय हो चुका है कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) NDA का हिस्सा होगी. राज ठाकरे ने शिर्डी और दक्षिण मुंबई की लोकसभा सीटों की मांग की है, जिस पर अगले एक-दो दिन में BJP फ़ैसला ले लेगी. BJP के साथ हाथ मिलाकर राज ठाकरे का नाम ऐसे नेताओं की फेहरिस्त में शामिल हो गया है, जो कभी किसी की तारीफ़ करते हैं, तो कभी उसका विरोध, कभी कोई उनका दुश्मन हो जाता है, तो कभी दोस्त और फिर वापस दुश्मन. यही राज ठाकरे 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले 'मोदी-मुक्त भारत' का नारा दे रहे थे. बीते डेढ़ दशक में राज ठाकरे और PM नरेंद्र मोदी के बीच के रिश्ते नरम-गरम रहते आए हैं.

साल 2009 में MNS ने जब पहली बार चुनाव लड़ा था, उनके निशाने पर BJP-शिवसेना गठबंधन था. लोकसभा में एक भी सीट हासिल नहीं हुई, लेकिन राज ठाकरे की पार्टी को विधानसभा चुनाव में 13 सीटें मिलीं. साल 2011 में राज ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि वे मोदी मॉडल का अध्ययन करने के लिए गुजरात जाएंगे और देखेंगे कि क्या वैसी प्रशासनिक व्यवस्था महाराष्ट्र में लागू की जा सकती है. यह दौरा 9 दिन का था, जिस दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज ठाकरे की जमकर खातिरदारी की और उन्हें सरकारी मेहमान का दर्जा दिया. तमाम विभागों के आला अफसरों के साथ ठाकरे की बैठक बुलाई गई, जिसमें हर विभाग की ओर से उन्हें प्रेज़ेंटेशन दिया गया. कुछ ठिकानों पर मोदी खुद ठाकरे के साथ घूमे. दौरा खत्म करने के बाद पत्रकारों से बातचीत में ठाकरे ने कहा कि वह गुजरात की मोदी सरकार से बड़े प्रभावित हैं और नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनना चाहिए.

लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान मोदी और राज ठाकरे के बीच अच्छे रिश्ते बरकरार रहे. उस साल भी शिवसेना और BJP ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था. अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे से सियासी अदावत के चलते राज ठाकरे ने शिवसेना उम्मीदवारों के खिलाफ़ तो अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन जहां-जहां BJP उम्मीदवार थे, वहां उन्होंने MNS उम्मीदवार खड़ा नहीं किया. चुनावी काल के दौरान उन्होंने मोदी की तारीफ़ में कुछ बयान भी दिए, लेकिन फिर पांच साल पूरे होते-होते ठाकरे और मोदी के रिश्तों में खटास आ गई.

लोकसभा चुनाव 2019 राज ठाकरे की पार्टी ने नहीं लड़ा, लेकिन उन्होंने मोदी के खिलाफ़ अभियान की शुरुआत कर दी, जिसका फ़ायदा कांग्रेस-NCP गठबंधन ने उठाने की कोशिश की. ठाकरे अपनी चुनावी सभाओं में एक बड़ी स्क्रीन लगवाते और उनमें मोदी के पुराने बयानों को दिखाते हुए यह बताते कि मोदी की कथनी और करनी में कितना फ़र्क है. ऐसी सभाओं में वह श्रोताओं से भारत को मोदी-मुक्त करने की अपील भी करते. ये सभाएं "लाव रे तो वीडियो" (वो वीडियो लगा तो रे...) नाम से मशहूर हो गई थीं. इसके कुछ महीने बाद राज ठाकरे को प्रवर्तन निदेशालय की ओर से समन आता है. एक पुराने मामले में उन्हें ED दफ़्तर बुलाकर करीब 8 घंटे तक पूछताछ की जाती है, जिसके बाद से राज ठाकरे कभी मोदी के खिलाफ़ बोलते नज़र नहीं आते.

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साल 2020 की शुरुआत में राज ठाकरे एक बार फिर सभी को चौंका देते हैं, जब वह अपनी पार्टी का झंडा बदल देते हैं और पार्टी की विचारधारा के तौर पर हिन्दुत्ववाद अपनाने का ऐलान करते हैं. नया भगवा ध्वज प्रदर्शित करते हुए ठाकरे ने कहा कि हिन्दुत्व उनके DNA में है. दरअसल राज ठाकरे समझ गए थे कि मराठीवाद के मुद्दे से उनकी पार्टी का विस्तार नहीं हो रहा था. पर-प्रांतीय विरोध के कारण वह बाकी पार्टियों के लिए सियासी तौर पर अछूत बन गए थे, क्योंकि बाकी पार्टियों को लगता था कि अगर वे महाराष्ट्र में ठाकरे से गठजोड़ करेंगी, तो उत्तर प्रदेश और बिहार में उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है. हिन्दुत्ववाद अपनाने के बाद अब राज ठाकरे के लिए भगवा गठबंधन से जुड़ने का रास्ता खुल गया है.

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जीतेंद्र दीक्षित मुंबई में बसे लेखक और पत्रकार हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.