भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में नाटकीय ढंग से खत्म हुए गठबंधन के बाद रिश्ते सुधारने के लिए उद्धव ठाकरे की ओर रुख करना शुरू कर दिया है. ये बात दोनों पार्टियों के सूत्रों के हवाले से सामने आई है, जिनसे मैंने इस कॉलम के लिए बात की थी. राज्यपाल बी.एस. कोश्यारी का इस्तीफा, इस संबंध में एक महत्वपूर्ण संकेत के रूप में देखा जा रहा है, जिनकी ठाकरे के नेतृत्व वाले विपक्ष के साथ भारी अनबन थी.
जून 2022 में एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की थी, जिसकी वजह से शिवसेना का विभाजन हुआ. शिवसेना के विभाजन ने भाजपा को मौका दिया और वो शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर महाराष्ट्र में सत्ता में लौट आई. भाजपा के देवेंद्र फडणवीस को उप मुख्यमंत्री के पद पर संतोष करना पड़ा, वह 2014 से 2019 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे थे, जब भाजपा ने उद्धव ठाकरे के साथ राज्य चलाया था.
थोड़े दिन हुए, जब महाराष्ट्र में भाजपा सार्वजनिक रूप से फडणवीस को मुख्यमंत्री के रूप में लौटने की बात कह रही है. कहा जा रहा है कि अगले आम चुनाव से पहले, शिंदे वर्तमान में जिस पद पर हैं, उस पर भाजपा अपने व्यक्ति को नियुक्त करेगी. शिंदे खुद ठाकरे के साथ लंबे समय से चल रहे पार्टी की कमान को लेकर झगड़े में व्यस्त हैं. कई मुद्दों पर दोनों के बीच खींचतान चल रही है, उदाहरण के लिए- सेना पार्टी के प्रतीक के अधिकार किसे मिलते हैं, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि शिंदे का बालासाहेब ठाकरे की विरासत के सच्चे धारक के रूप में खुद को स्थापित करने के लिए कैडर को परिवर्तित करना, जिन्होंने शिवसेना बनाई और उद्धव के पिता हैं.
इसका मतलब आम चुनाव में अभी बमुश्किल 400 दिन बचे हैं और शिंदे-बीजेपी गठबंधन ढीले-ढाले मोड में है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरे कार्यकाल का इतिहास रचने की दौड़ में, महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों पर कोई जोखिम उठाना नहीं चाहते.
सूत्रों ने मुझे बताया कि अलग-थलग पड़ चुके सहयोगी ठाकरे तक शुरुआती पहुंच की कोशिश एक अरबपति उद्योगपति के जरिए की गई, जिस पर दोनों पक्षों का भरोसा था. अब एक शक्तिशाली भाजपा नेता इस अभियान को बातचीत के स्तर तक ले जाने की कोशिश कर रहा है. भाजपा द्वारा अपनी पार्टी और महाराष्ट्र विकास अगाड़ी (एमवीए) सरकार, जिसमें वो मुखिया थे, को गिराने के अपने कड़वे अनुभव के बाद ठाकरे इसे लेकर ज्यादा उत्साही नजर नहीं आ रहे हैं.
अब आर्थिक राजधानी के आगामी नगर निगम चुनाव सभी 'खिलाड़ियों' के लिए एक बड़ी परीक्षा हैं. हालांकि, इसके लिए तारीखों की घोषणा की जानी बाकी है, लेकिन ठाकरे ने एक चतुर राजनीतिक चाल के चहत, इस सप्ताह घोषणा की कि शिवसेना का उनका गुट, दलित नेता प्रकाश अंबेडकर के राजनीतिक संगठन के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगा.
ठाकरे ने कहा कि "लोकतंत्र को बचाने के लिए भीम शक्ति और शिव शक्ति" को एक साथ आई हैं. ठाकरे के अन्य दो सहयोगी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और कांग्रेस, अम्बेडकर की पार्टी के साथ वोट बैंक साझा करते हैं. फिर भी, ठाकरे को अपने पाले में रखने के लिए, उन्होंने उनके नए साथी की कोई आलोचना नहीं की. सूत्रों का कहना है कि शरद पवार, अंबेडकर के साथ ठाकरे की बातचीत के बारे में जानते थे. इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा, कि अंबेडकर की सीटें सेना के कोटे से हों.
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व और महाराष्ट्र भाजपा अलग-अलग मकसदों पर काम करते नजर आ रहे हैं. अनिच्छुक डिप्टी फडणवीस, अपने पद में कटौती को लेकर अधीर हो रहे हैं. फडणवीस ने महाराष्ट्र भाजपा में अपनी एक अलग छवि बनाई है और पार्टी के राज्य के नेता चाहते हैं कि शिंदे सेना का भाजपा में विलय हो जाए. जिसके बाद ज्यादा पदों पर दावा करने में आसानी होगी. लेकिन केंद्रीय भाजपा को लगता है कि इस समय फडणवीस को प्रमोट करने से आम चुनाव को लेकर फोकस पर ग्रहण लगने का कारण बन सकता है. वह यह भी जानती है कि उद्धव फडणवीस पसंद नहीं करते
शिंदे और फडणवीस के बीच ठंडे पड़ते रिश्ते को वर्तमान में मुंबई में दो पुलिस आयुक्तों की नियुक्ति से भी हवा मिली है. फडणवीस के आलोचक उन पर एकतरफा तरीके से फैसले लेने का आरोप और ओल्ड पेंशन स्कीम जैसे अहम मु्द्दों पर बड़ी घोषणाएं करने को लेकर घेर रहे हैं.
शिंदे, फडणवीस के सभी कदमों को पसंद नहीं कर रहे हैं और अरबों रुपए की Foxconn-Vedanta डील के महाराष्ट्र से हाथ से छूटकर गुजरात जाने से वह चिढ़े हुए हैं. शिंदे खुद को ठाकरे के राजवंश के मुकाबले छोटे आदमी और "मराठी मानुस" के एक बड़े रक्षक के रूप में पेश करते हैं. इस छवि को काफी नुकसान पहुंचा है. गुजरात में जाने वाले अरबों के प्रोजेक्ट्स महाराष्ट्र में भाजपा के लिए विशेष रूप से गलत संदेश है, क्योंकि महाराष्ट्र-गुजरात का इतिहास कटुता से भरा रहा है.
शिंदे इस बात से परेशान हैं कि उनकी सेना के सदस्य पहले से ही फडणवीस के संपर्क में हैं.
हाल के कुछ मतदाता सर्वेक्षण इस ओर इशारा करते हैं कि महाराष्ट्र और कर्नाटक, इन दो राज्यों के जरिए विपक्ष भाजपा की जीत के उत्सव में सेंध लगा सकता है. यही वजह हो सकती है कि उद्धव ठाकरे से दोबारा संबंध सुधारने की कोशिश की जा रही है.
(स्वाति चतुर्वेदी एक लेखक और पत्रकार हैं, जिन्होंने द इंडियन एक्सप्रेस, द स्टेट्समैन और द हिंदुस्तान टाइम्स के साथ काम किया है.)
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं)