This Article is From Sep 29, 2021

गांधी भाई-बहन के अलावा सभी को दिख गया था सिद्धू नामक संकट

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Swati Chaturvedi

लंबे समय से नवजोत सिंह सिद्धू से सियासी दुश्मनी झेल रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को आखिरकार अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी. वह फिर से अपनी कही बातों को दोहरा रहे हैं कि "मैंने पहले ही कहा था... वह स्थिर व्यक्ति नहीं है." 79-वर्षीय कैप्टन फिलहाल नई दिल्ली के एक फाइव-स्टार होटल में ठहरे हैं और इस बात की पुष्टि या खंडन करने से इंकार कर दिया है कि वह BJP के शीर्ष नेतृत्व से मिलने जा रहे हैं और प्रधानमंत्री की पार्टी में शामिल होने के लिए सहमति पत्र भर रहे हैं.

कैप्टन के पद छोड़ने के ठीक 10 दिन बाद सिद्धू ने वही किया, जैसी कैप्टन ने चेतावनी दी थी. सिद्धू ने अब पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वह जैसा चाहते थे, वैसा कर नहीं पा रहे थे. हालांकि, पार्टी का कहना है कि इस्तीफा अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है, लेकिन जो बात निर्विवाद है, वह यह है कि कांग्रेस ने अपने ही कब्ज़े वाले राज्य में अपने ही ऊपर बुलडोज़र चलवा लिया है, जहां चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं.

सिद्धू ने आज सुबह ही एक वीडियो जारी करते हुए कहा कि उन्हें "समझौता कोने" (सिद्धू का गढ़ा नया विशिष्ट वाद) में धकेला नहीं जा सकता है और वह "अपनी अंतिम सांस तक लड़ेंगे", लेकिन किसके खिलाफ? इस पर भी सिद्धू कहते हैं कि भ्रष्ट नेताओं को नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने मंत्री बनाया है. उन्होंने यह भी कहा है कि पुलिस प्रमुख सहित कई पदों पर की गई नियुक्तियां अस्वीकार्य हैं, क्योंकि उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि बेअदबी मामले में उन दागियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी, जो उसमें शामिल रहे थे. 2015 में श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी के विरोध में प्रदर्शनकारियों पर दागी पुलिस अफसरों ने गोलियां चलवाई थीं.

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कांग्रेस हाईकमान (गांधी परिवार पढ़ें), विशेषकर प्रियंका गांधी वाड्रा सिद्धू की सबसे मज़बूत पक्षधर हैं, और उन्होंने सारी रात सिद्धू को संकेत प्रेषित किए, लेकिन सब व्यर्थ. सिद्धू ने उनकी कॉल भी नही उठाई, मैसेजों का जवाब भी नहीं दिया. उन्होंने हाईकमान की ओर से शांति संदेश लेकर पहुंचे अपने ही धड़े के विधायक परगट सिंह से भी बात नहीं की.

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एक नज़र सिद्धू के मिजाज़ पर डालते हैं - उन्होंने पहले भी प्रदेश प्रमुख पद छोड़ देने की धमकी दी थी, अगर सुनील जाखड़, हिन्दू, या सुखिंदर सिंह रंधावा, जो सिद्धू की ही तरह जाट सिख हैं, को कैप्टन के जाने के बाद मुख्यमंत्री बनाया गया. कई सूत्रों ने मुझे पुष्टि की है कि सिद्धू उस वक्त बैठक से उठकर चले गए थे, जब दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी का नाम मुख्यमंत्री के तौर पर पेश किया गया था. मुख्यमंत्री बनने के इच्छुक सिद्धू दो बार अपने वीटो अधिकारों का इस्तेमाल कर चुके थे, सो, अब उनके पास मान जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था, और पंजाब को पहला दलित CM मिल गया. कांग्रेस ने मजबूरी के माहौल में भी लाभ उठा लिया और दावा किया कि राहुल गांधी शुरू से ही किसी दलित को शीर्ष पद पर नियुक्त करना चाहते थे. राहुल ने सुनिश्चित किया कि वह चन्नी के शपथ ग्रहण में शिरकत करें, और उन्होंने ढेरों तस्वीरें भी खिंचवाईं. नेताओं का दावा रहा कि चन्नी की नियुक्ति मास्टरस्ट्रोक साबित हुई, जिससे सूबे के 32 फीसदी दलित वोटों तक संदेश पहुंचा, और इसी से मायावती का अकाली दल के साथ किया गया गठबंधन भी बेअसर हो गया. उन्होंने वादा किया था कि चुनाव जीतने की स्थिति में एक दलित को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा. चन्नी का चयन आम आदमी पार्टी, जो ओपिनियन पोलों के मुताबिक बेहद मज़बूत स्थिति में है, पर भी भारी पड़ा, क्योंकि वे अब तक यह फैसला नहीं कर पाए हैं कि मुख्यमंत्री पद के लिए किसका नाम आगे करें.

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प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ नवजोत सिंह सिद्धू...

जब सिद्धू ने चन्नी को कबूल किया, तब उन्होंने दो शर्त रख दी थीं - वह 'सुपर CM' के तौर पर काम करेंगे, और उन्हें चुनाव के लिए कांग्रेस के प्रचार में मुख्यमंत्री पद का दावेदार पेश किया जाएगा. चन्नी के नाम पर फैसला कर चुकी कांग्रेस के पास पीछे लौटने का कोई रास्ता नहीं बचा है, क्योंकि वह किसी भी तरह से चन्नी को सीधे या घुमा-फिराकर अस्थायी मुख्यमंत्री नहीं बता सकती है, क्योंकि वह दलितों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ सरीखा लगेगा. मायावती पहले ही यह आरोप कांग्रेस पर लगा चुकी हैं. सिद्धू के खिलाफ बोलने वालों की सूची में जुड़ा नया नाम सुनील जाखड़ का है, और उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि दलित मुख्यमंत्री की ऐतिहासिक नियुक्ति को प्रतीकात्मक नहीं बनने दिया जाना चाहिए. कांग्रेस भी सार्वजनिक बयान जारी कर चुकी है कि चन्नी और सिद्धू, दोनों ही चुनाव प्रचार का चेहरा होंगे. सिद्धू की एक महत्वाकांक्षा है - पंजाब का मुख्यमंत्री बनना - और एक कॉम्बो का हिस्सा बनना उनके ख्वाबों से मेल नहीं खाता. यह एहसास उन्हें हो गया है कि बाकी उम्मीदवारों के खिलाफ वीटो शक्ति का इस्तेमाल कर और चन्नी, जो उम्मीद से ज़्यादा सख्त साबित हुए हैं, का समर्थन कर उन्होंने अपने ही पांव में कुल्हाड़ी मार ली है.

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170 करोड़ रुपये की घोषित संपत्ति के साथ पंजाब के सबसे रईस विधायक और सैंड-माइनिंग में भ्रष्टाचार के आरोप में 2018 में कैप्टन अमरिंदर का कैबिनेट छोड़ने के लिए विवश हुए राणा गुरजीत सिंह को मंत्री बनाया जाना सिद्धू को नागवार गुज़रा. लेकिन सिद्धू द्वारा किए जाने वाले भ्रष्टाचार विरोधी होने के सभी दावों के मुकाबले पार्टी के सूबे में दोबारा जीत जाने की स्थिति में मुख्यमंत्री के तौर पर एकमात्र पसंद घोषित नहीं किए जाने पर निकली फुफकार कहीं ज़्यादा गहरी निकली.

सिद्धू ने चार साल पहले जल्दबाज़ी में BJP को छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामा था, क्योंकि AAP के साथ उनकी बातचीत उनके मनपसंद मोड़ पर नहीं पहुंची थी, क्योंकि बताया जाता है कि आम आदमी पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से इंकार कर दिया था. सिद्धू तब कांग्रेस में शामिल हो गए थे, जहां उन्होंने मान लिया था कि वही कैप्टन के उत्तराधिकारी होंगे.

कैप्टन के खिलाफ सिद्धू का साथ देने का पार्टी का फैसला गांधी भाई-बहन ने लिया था, जिनका मानना था कि पुराने लोगों के सामने अपना प्रभुत्व साबित करने का यह सही वक्त है. उनके सलाहकारों ने उन्हें समझा दिया था कि कैप्टन, जो कई विधायकों को पसंद नहीं थे, से छुटकारा पा लेने से सुनिश्चित हो जाएगा कि कांग्रेस के दोबारा जीत जाने में सत्ता-विरोधी लहर रुकावट हीं डाल पाएगी.

प्रियंका गांधी वाड्रा चुपचाप काम करने वाली राजनेता हैं, और उन्होंने ही 'पंजाब के लिए सिद्धू' अभियान का नेतृत्व कर अपने परिवार को साथ देने के लिए मनाया. और अब कांग्रेस हाईकमान को सिद्धू की वजह से मुंह की खानी पड़ी है. AAP के अभियान को भी चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस की इन गलतियों से लाभ मिलेगा. और अंततः कैप्टन ही सही साबित हुए, जो रोज़ाना सिद्धू द्वारा की जा रही सार्वजनिक बेइज़्ज़ती का सामना कर रहे थे. बताया जाता है कि किसान आंदोलन का हल तलाशने की योजना पर भी कैप्टन ही अमित शाह के साथ मिलकर काम कर रहे थे, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि कैप्टन को ही 'किसानों के मसीहा' के तौर पर पहचान मिलेगी.

कांग्रेस संगठन के लिए यह इंसानी चूकों की ताज़ातरीन कड़ी है, जिससे उससे काफी नुकसान हुआ है. इस घटनाक्रम से सिद्धू की सिर्फ अपने लिए सोचने वाली सोच की पोल तो खुल ही गई, कांग्रेस की भी माहौल को पढ़ने की नाकाबिलियत उजागर हो गई, खासतौर से जब प्रथम परिवार उसमें शामिल हो.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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