2025 के फरवरी महीने ने भारत के मौसम को लेकर एक अजीब बदलाव दिखाया है. एक तरफ गर्मी ने लोगों को परेशान किया, तो दूसरी तरफ पहाड़ों पर बर्फबारी और तूफानों ने मुश्किलें बढ़ा दीं. इस विचित्र मौसम के पीछे क्या कारण हैं, और हमें इससे क्या संकेत मिल रहे हैं? इस साल फरवरी ने भारतीय मौसम का एक नया इतिहास रच दिया. 125 सालों में यह सबसे गर्म फरवरी साबित हुआ, और इसने सर्दियों के ठंडेपन को बिल्कुल नकार दिया. औसतन तापमान 22.04 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया, जो सामान्य से 1.34 डिग्री ज्यादा था. आमतौर पर फरवरी में सर्दी का अहसास होना चाहिए था, लेकिन इस बार यह अप्रत्याशित गर्मी ने हर किसी को हैरान कर दिया. यह गर्मी न केवल दिन में महसूस हुई, बल्कि रातों तक भी इसका असर बना रहा. एक तरफ इस बढ़ती गर्मी ने ग्लोबल वार्मिंग की गंभीरता को और बढ़ा दिया है, वहीं दूसरी ओर, पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी की घटनाओं ने एकदम अलग ही परिप्रेक्ष्य पेश किया. यह विचित्र मेल क्या संकेत दे रहा है?
ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रभाव के कारण मौसम का मिज़ाज अब बहुत ज्यादा अप्रत्याशित हो चुका है. एक ओर जहां दिल्ली और अन्य मैदानी इलाकों में गर्मी ने दस्तक दे दी है, वहीं दूसरी ओर हिमालय और पहाड़ी क्षेत्रों में बर्फबारी ने हर किसी को चौंका दिया. उत्तराखंड के चमोली जिले में हाल ही में ग्लेशियर टूटने से 55 मजदूरों की जान जोखिम में पड़ गई. एक ओर ऐसी घटनाएं हर साल होती हैं, लेकिन इस बार सर्दियों का असर कम होने के बावजूद इन घटनाओं का होना साफ तौर पर एक संकेत है कि मौसम की पैटर्न में कोई बड़ा बदलाव आ रहा है.
कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बर्फबारी ने न केवल यात्रा को प्रभावित किया, बल्कि स्थानीय निवासियों और पर्यटकों के लिए खतरे भी बढ़ा दिए हैं. श्रीनगर-जम्मू हाइवे का दो दिनों से बंद होना, सड़कें क्षतिग्रस्त होना, और यहां तक कि पीराह-कुनफेर टनल का एक हिस्सा बंद हो जाना, इन घटनाओं ने यह दिखा दिया कि पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी और बारिश के कारण आम जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है.
अब सवाल यह उठता है कि आखिर ये बदलाव किस दिशा में जा रहे हैं? क्या यह सिर्फ एक अस्थायी बदलाव है, या फिर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव का संकेत है, जिससे हमें आने वाले दिनों में और अधिक असंतुलित मौसम का सामना करना पड़ेगा? क्या हमें अपनी तैयारियों को और बढ़ाना होगा? यह सब हम तभी समझ सकते हैं जब हम इस परिवर्तन को लेकर गहरी सोच-विचार करें. मौसम का यह विचित्र मिज़ाज निश्चित ही हमें यह सिखाता है कि हम प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें और हर बदलाव के प्रति सतर्क रहें.