‘संजीवनी’ है जरूरी, क्यों ‘आयुष्मान’ से दूरी?

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Hari Shankar Joshi

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह लगातार दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार पर हमला करते रहे हैं कि आयुष्मान योजना के लाभों से गरीबों को वंचित किया गया है. जवाब राजनीतिक रूप से जनता को दिए जाते रहे हैं लेकिन जनता कहीं न कहीं इस सवाल से चौंक भी रही थी. क्या संजीवनी योजना के जरिए अरविंद केजरीवाल सरकार ने उस सवाल का जवाब दे दिया है?

आयुष्मान मॉडल और दिल्ली मॉडल की लड़ाई को जनता के बीच जीतने में आम आदमी पार्टी पूरी तरह से लग गई है. प्रेस ब्रीफिंग के बाद से आम आदमी पार्टी के नेता, कार्यकर्ता लगातार संजीवनी योजना को आम जनता के लिए केजरीवाल का कवच बताते हुए प्रस्तुत कर रहे हैं. इस दौरान न केवल पार्टी संजीवनी योजना को बेहतर बता रही है, बल्कि आयुष्मान योजना को ‘धोखा' तक करार दे रही है. यानी लड़ाई गंभीर है. 

‘धोखा' है आयुष्मान योजना?

आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज बताते हैं कि आयुष्मान योजना फ्रॉड्युलेंट स्कीम है. कागजों पर है. वे सीएजी की रिपोर्ट का भी हवाला देते हैं. ध्यान रहे कि सीएजी की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ था कि केवल एक मोबाइल नंबर से 7.5 लाख लोग जुड़े हुए थे. 1.39 लाख लोग एक अन्य मोबाइल नंबर से जुड़े पाए गए और 94 हजार लोग एक अन्य यानी तीसरे नंबर से जुड़े मिले. यह तथ्य भी जानना जरूरी है कि आयुष्मान योजना के अंतर्गत जारी फंड का 98.98 करोड़ रुपया, 128.13 करोड़ रुपया और 139.67 करोड़ रुपया क्रमश: 2018-19, 2019-20 और 2020-21 में बचा रह गया यानी उपयोग ही नहीं हुआ.

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सौरभ भारद्वाज के शब्दों में, “गुजरात के अंदर 18-18 साल के लोगों के एन्जियोप्लास्टी दिखा दी गयी कागजों में. जो लोग मर गए, उनका आयुष्मान भारत पर इलाज कर दिया गया और पेमेंट कर दी गई.” 

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बात सिर्फ आयुष्मान योजना के दुरुपयोग की ही नहीं है. इसमें 70 साल से ऊपर के बुजुर्ग को फ्री इलाज देने की व्यवस्था है लेकिन लिमिट सिर्फ 5 लाख है. 60 साल से 70 साल के बीच जो लोग हैं उनकी कहीं कोई चर्चा ही नहीं है. सौरभ भारद्वाज पूछते हैं, “इनको क्या वो कुएं में डाल देंगे? तुम मर जाओ कोई बात नहीं पर 70 साल से ऊपर वालों को हम बचाएंगे. ये योजना इम्प्रैक्टिकल योजना है.”

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संजीवनी योजना में उम्र, खर्च सीमा का बंधन नहीं

संजीवनी योजना में ना उम्र की सीमा है न इलाज पर कोई बंधन. भले ही आयुष्मान योजना मरीज को बीच इलाज के दौरान अधर में छोड़ देता है लेकिन संजीवनी योजना इलाज के दौरान 5 लाख की रकम वाली सीमा खत्म हो जाने के बाद की जटिल स्थिति का समाधान देती है. केजरीवाल की स्कीम कहती है कि अगर व्यक्ति 60 साल से ऊपर का है और उसके ऊपर खर्चा  5 लाख हो, चाहे पचास लाख- सारा खर्चा दिल्ली सरकार वहन करेगी. 

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पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन का दावा है कि दिल्ली में रहने वाले 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों के लिए केजरीवाल की योजना ऐसी है जिस बारे में कोई सोच भी नहीं सकता. दिल्ली के अंदर रहने वाले सभी 60 साल के ऊपर के लोगों को न सिर्फ सरकारी अस्पताल में पूरा इलाज मिलेगा, बल्कि प्राइवेट अस्पतालों में भी उनके इलाज हो सकेंगे. और, ये इलाज दिल्ली सरकार कराएगी. आप कितना कमाते हैं, कितनी उम्र है जैसी बातों का संजीवनी योजना में कोई जगह ही नहीं है. दिल्ली का नागरिक होना चाहिए इतना काफी है. एक बार अगर आप बीमार पड़ गए तो बिल 5 लाख का हो कि 50 लाख का- दिल्ली सरकार वहन करेगी. बुजुर्गों को चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं है.

संजीवनी से बुजुर्ग ही नहीं बच्चों की भी बचत

फायदा बुजुर्गों का ही नहीं, उनके बच्चों का भी है. अपने मां-बाप के लिए मेडीक्लेम का प्रीमियम तो बच्चे ही भरते रहे हैं. हालांकि हमारे देश में बुजुर्गों को मेडीक्लेम से दूर रखा गया है. अब नियमों में बीते दिनों कुछ बदलाव हुए हैं तो बुजुर्ग कवर तो हुए हैं लेकिन उनका प्रीमियम इतना ज्यादा है कि उसे चुकाना सबके वश की बात नहीं होती. बच्चे भावनात्मक रूप से तनाव में आ जाते हैं. 

पति-पत्नी और दो बच्चों का प्रीमियम संभलता नहीं और मां-बाप के प्रीमियम का बोझ उन पर आ जाता है तो पारिवारिक तनाव की वजह भी बन जाते हैं वही मां-बाप जिन्होंने उन्हें धरती पर लाया है, पाला-पोसा है और इस काबिल बनाया है कि अपने पैरों पर खड़े हो सकें. अब बच्चों को भारी भरकम प्रीमियम नहीं भरना पड़ेगा. 50 हजार और 1 लाख रुपये तक का सालाना प्रीमियम सीधा बचत है जिसका लाभ बुजुर्गों के लिए बच्चों को मिलेगा. सत्येंद्र जैन बताते हैं कि केजरीवाल की ऐसी अनोखी योजना इससे पहले कभी सुनी भी नहीं गयी थी. निश्चित रूप से दिल्ली के बुजुर्ग केजरीवाल को आशीर्वाद देंगे. 

बीजेपी को आम आदमी की फिक्र नहीं?

आम आदमी पार्टी के नेता बीजेपी नेताओं पर हमला भी बोल रहे हैं. बुजुर्गों के लिए मुफ्त इलाज को ‘रेवड़ी' बताए जाने पर आम आदमी पार्टी की नेता प्रियंका कक्कड़ बिफर जाती हैं. वह पूछती हैं कि एक मिडिल क्लास परिवार के दुख-दर्द का क्या बीजेपी को अंदाजा नहीं है? कोई एक बड़ा केस सामने आ जाता है. न्यूरो सर्जरी हो या फिर बाइपास सर्जरी तो पूरा परिवार आर्थिक रूप से परेशान और बेबस हो जाता है. सालों की कमाई चली जाती है बल्कि कहें कि लुट जाती है. पूरी पूंजी खत्म हो जाती है. परिवार गरीबी के कगार पर आ जाता है. अरविंद केजरीवाल ने मिडिल क्लास को ऐसी किसी भी संभावित स्थिति से बचाने का काम किया है. संजीवनी योजना जो देने जा रही है उसको कोई मॉनेटाइज नहीं कर सकता. 

आम आदमी पार्टी की संजीवनी योजना ने उस मिडिल क्लास के बारे में सोचा है जो अपनी कमाई का हजारों-लाखों रुपये टैक्स देता है. अगर लाइफ टाइम योगदान को देखें तो यह करोड़ों में भी हो जाता है. ऐसे मिडिल क्लास के लोग जब बुजुर्ग हों और अरविंद केजरीवाल बेटा बनकर उनका मुफ्त इलाज कराएं तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. 

आयुष्मान योजना से बड़ा है संजीवनी का बजट

जैस्मीन शाह संजीवनी और आयुष्मान योजना की तुलना करते हुए कहते हैं कि 140 करोड़ की आबादी में आयुष्मान योजना का बजट सिर्फ 7 हजार करोड़ है जबकि अरविंद केजरीवाल की सोच वाली हेल्थ स्कीम में दिल्ली सरकार के पास दो-ढाई करोड़ की आबादी के लिए 9 हजार करोड़ का बजट है. यही पर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है. आयुष्मान योजना केवल और केवल गरीब वर्ग के लिए है. गरीबों में भी उनके लिए जिनकी आमदनी दस हजार रुपये से कम हो, घर में टू व्हीलर ना हो, फ्रीज ना हो.

बात साफ है कि आम आदमी पार्टी के नेता न सिर्फ संजीवनी योजना का बचाव कर रहे हैं बल्कि आयुष्मान योजना को असफल और आम लोगों की जरूरतों को नहीं पूरी कर सकने वाला करार दे रहे हैं. तार्किक रूप से यह दावा सही दिखता है. देशभर में आयुष्मान योजना का लाभ दक्षिण में अधिक उठाते हुए देखे गये हैं. समूचे देश में आज भी लक्षित 60 करोड़ जरूरतमंद तक आयुष्मान योजना नहीं पहुंच सका है पूरी आबादी तो इसका लक्ष्य भी नहीं है. वहीं, दिल्ली में बुजुर्ग को संजीवनी का रक्षा कवच मिला है. 


(हरि शंकर जोशी वरिष्ठ पत्रकार हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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