This Article is From Sep 22, 2022

स्मार्ट सिटी से लेकर गांव तक ज़रा सी बारिश में बेहाल

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Ravish Kumar

रेटिंग एजेंसियां भारत के विकास दर के साथ अच्छा नहीं कर रही हैं। काग़ज़ पर लिखती हैं, मिटाती रहती हैं। जिस हिसाब से रेटिंग एजेंसियों ने विकास दर में कटौती की है, अगर मुमकिन हुआ तो एक दिन इन एजेंसियों की भी छंटनी की जाने लगेगी, इन्हें ज्ञान दिया जाने लगेगा कि रेटिंग का फार्मूला सही नहीं है। डॉलर के मुकाबले रुपया 80 के पार चला जाता है, इसे लेकर उसी तरह शांति बनी रहती है जैसे परमाणु हमले की पुतिन की धमकी के बाद भारत में शांति है। जैसे परमाणु हमला कहीं होगा तो उसका असर भारत में नहीं होगा। पाकिस्तान ने जलवायु संकट में कितना कम योगदान नहीं है मगर इस सकंट की तबाही जैसे वो नहीं झेल रहा है। भारत में अब सूखे का एलान नहीं होता है, मगर खबरें ही बता रही हैं कि उसका असर है। ऐसा नहीं है कि भारत में बारिश और सूखे का खेल नहीं चल रहा है। यूपी में ही जहां कम बारिश के कारण धान की फसल सूख जाने की खबर आ रही थी वहां पिछले चार-पांच दिनों से कई शहरों में भारी बारिश की खबर है। मूसलाधार बारिश के कारण इटावा में तीन दिनों के लिए स्कूलों में छुट्टी कर दी गई है।कुछ दिन पहले बंगलुरु डूब गया था क्योंकि एक झटके में ज्यादा बरस गया।इस समय अलीगढ़, फिरोज़ाबाद और इटावा से भी इसी तरह की खबर है। भारी बारिश के कारण तीनों ज़िलों में स्कूल बंद कर दिए गए हैं।मीडिया के बड़े हिस्से के पास सामान्य से कम बारिश होने पर या सामान्य से ज्यादा बारिश होने पर तबाही को दर्ज करने की न तो भाषा है और न समझ। 

तमाम अखबारों में अलीगढ़ की इस हालत पर जलजमाव और जलभराव की समस्या के रुप में पेश किया गया है।आम शहरी में इसी भाषा में जलजमाव होने पर स्मार्ट सिटी पर ताने मार कर अपनी गली चल देता है। समझ और भाषा के स्तर पर मीडिया और नागरिक एक दूसरे के पूरक हो चुके हैं।अदनान ने बताया है कि अलीगढ़ में शनिवार से लेकर सोमवार के बीच इतनी बारिश हुई कि लोग स्मार्ट सिटी को कोस कर राहत महसूस करने लगे।अब लोगों को नई समझ यह है कि बेमौसम बरसात हुई है तो इसका मतलब है स्मार्ट सिटी में कोई कमी है।हमने अपनी मूर्खता को नए नए शब्दों से सज़ा दिया है ताकि कम से कम बोलने देखने में विद्वान नज़र आए। इस बात की गारंटी किसने दी है कि स्मार्ट सिटी हो जाने से या आई टी सिटी हो जाने से जलवायु संकट का असर नहीं होगा और मूसलाधारा बारिश के कारण शहर नहीं डूब जाएगा?अखबारों में अलीगढ़ के कई मोहल्लों के नाम छपे हैं जिनके बारिश में डूब जाने की खबर लिखी गई है। ज़िला प्रशासन ने उन लोगों से मकान खाली करने को कहा है जिन्होंने नीचले इलाके में घर बना लिए हैं, ज़ाहिर है आशंका होगी कि कहीं मकान धंस न जाएं। अलीगढ़ में 24 सितंबर तक स्कूल बंद कर दिए गए हैं।

इटावा की हालत इतनी खराब है कि 24 सितंबर तक के लिए स्कूल बंद कर दिए गए हैं। अरशद जमाल ने बताया है कि मूसलाधार बारिश के कारण चार जगह दीवारें धंस गई हैं और 10 लोग मर गए हैं। इनमें सात बच्चे हैं और तीन बुजुर्ग हैं। आठ लोग गंभीर रुप से घायल हो गए हैं। चंद्रपुरा गांव में छत के धंस जाने से एक ही परिवार के चार बच्चे मर गए। बारिश की तबाही ने इस बात की भी पोल खोल दी है कि भारत की जनता किस तरह के बने मकानों में रहती है। उन घरों में रहना भी खतरे से खाली नहीं है। एक ज़िला है कासगंज, वहां भी भयंकर बारिश हुई है, कई घंटे तक बिजली की आपूर्ति ठप्प हो गई(कोई शॉट्स भेजा है) बताया जा रहा है कि कासगंज में 47 साल का रिकार्ड टूट गया है। 24 घंटे से ज्यादा लगातार बारिश होती रही, इसका असर रेल यातायात पर भी पड़ा है। एक अंडर पास धंस गया।अमर उजाला ने लिखा है कि रात भर इतनी बारिश हुई है जिन इलाकों में कभी पानी नहीं भरता था, वहां भी जलभराव हो गया है। लोग कह रहे हैं कि 25-30 साल में ऐसी बारिश नहीं देखी। रात ग्यारह बजे से लेकर छह घंटे तक बरसात होती रही।

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यही हाल आगरा में भी रहा, वहां तीन दिनों से इतनी बारिश हो गई कि एक दिन तो तापमान में 7 डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया।शहरी इलाकों के साथ साथ ग्रामीण इलाकों में भी पानी भर गया है। शहर की हालत इतनी बुरी है कि लोगों के लिए काम पर पहुंचना मुश्किल हो गया। मथुरा में भी बारिश का कहर टूटा है। मुख्यमंत्री का कार्यक्रम रद्द करना पड़ा है। कई ज़िलों के अखबार शहर के डूब जाने की तस्वीरों से भरे पड़े हैं। फसलों को भी भारी नुकसान पहुंचा है। 

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फिरोज़बाद में भी मूसलाधार बारिश के कारण ज़िले में अनेक जगहों पर पानी जमा हो गया है। एक मकान की छत गिर गई और आठ लोग घायल हो गए। एक बच्चे की मृत्यु भी हो गई। ज़िला अस्पताल के परिसर में भी घुटनों तक पानी भर गया। शिकोहाबाद क्षेत्र में एक मकान की छत गिरने से 8 लोग घायल हो गए हैं और एक बच्चे की मौत हो गई है। दोपहर बाद बुलंदशहर से खबर आई कि 150 मीटर की परिधि में चक्रवाती तूफान दिखा जिसके कारण 
आम के बाग, धान और गन्ने की फसलों में भी भारी तबाही पहुंची है।चक्रवाती तूफान की चपेट में आने से मकान, दीवार, एचटी लाइन और विशाल पेड़ गिर गए। आधा दर्जन मकानों को नुकसान पहुंचा है। आज का दिन यूपी के लिए वाकई चुनौतियों भरा रहा है। 

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बंगलुरू की किस्मत थी कि चर्चा हो गई वैसे चर्चा से भी कुछ नहीं होने वाला है। यूपी के इन शहरों में जो बारिश हुई है, उसे केवल नालों की निकासी व्यवस्था की नाकामी के रुप में देखना ठीक नहीं होगा।विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने एक रिपोर्ट तैयारी की है। United in Science' इस रिपोर्ट के अनुसार अनजान क्षेत्रों में भी जलवायु संकट का प्रकोप देखने को मिल रहा है। पिछले सात वर्ष दुनिया के इतिहास में सबसे गर्म वर्ष के रुप में रिकार्ड किए गए हैं।संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने चिन्ता जताई कि बाढ़, सूखा, ताप लहरें, चरम तूफ़ान और जंगलों में आग लगने की घटनाएँ बद से बदतर हो रही हैं और उनकी आवृत्ति से रिकॉर्ड ध्वस्त हो रहे हैं. हर किसी को लगता है कि ये सारी खबरें दूसरे ग्रह में घट रही हैं जब तक उनके शहर में बारिश का कहर नहीं टूटता या सूखे के कारण किसानों की पूंजी नहीं डूब जाती। अभी कल ही यूपी के किसानों का बयान एन डी टी वी पर चला कि वे सूखे से परेशान हैं, धान की लागत बढ़ गई और फसल भी बर्बाद हो गई। आज खबरें छपी हुई हैं कि भारी बारिश से फसलों को भयंकर नुकसान पहुंचा है। इस बर्बादी की कल्पना कीजिए। मौसम यूपी के किसानों का इम्तहान ले रहा है।

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बारिश का ऐसा उत्पात कि बात बात में स्कूल बंद करने की नौबत आ जाती है। ज़ाहिर है कि हमारे पास मूसलाधार बारिश का सामना करने की क्षमता नहीं है। तीन तीन दिन स्कूल बंद होने पर भी इसके कारणों पर बहस नहीं है। वही बच्चे जलवायु संकट पर ड्राइंग बनाएंगे और मंत्री जी जैविक खेती के गुणों पर भाषण देंगे। द वायर की रिपोर्ट है कि कल्याण कर्नाटका और बांबे कर्नाटका क्षेत्र में भारी बारिश के कारण 11 लाख हेक्टयर ज़मीन में खड़ी फसलें बर्बाद हो गई है। बाजरा, मिर्च, ज्वार, तेलहन सब।.कोटा क्षेत्र में इस साल 400 मिलिमीटर वर्षा ज्यादा हो गई है जिसके कारण उड़द, सोयाबीन मूंग की फसल बर्बाद हो गई है। किसानों पर इस वक्त क्या बीत रही होगी, इस खबर शहर तक पहुंचने नहीं दी जाएगी। हमें अंदाज़ा नहीं कि  कम बारिश और अति बारिश की तबाही का स्केल कितना ज़्यादा है। हर दिन जांच एजेंसियों के छापों से खबरों का जाल फैला दिया जाता है, देश के सामने अचानक एक गंभीर संकट खड़ा कर दिया जाता है ताकि गोदी मीडिया का कारोबार चलता रहे, लेकिन देश के किसानों और आम शहरियों पर मौसम का जब छापा पड़ता है तो ज़्यादातर की खबरें गायब हो जाती है। 

डेनमार्क एक विकसित देश है। जलवायु संकट को लेकर आरोप लगता है कि विकसित देशों ने अपने विकास के लिे धरती को खतरे में डाल दिया। इसलिए उन्हें इसका मुआवज़ा चुकाना चाहिए। 21 सितंबर की खबर है कि डेनमार्क ने एलान किया किया है कि 100 मिलियन डेनिश क्राउन हर्जाने के तौर पर विकासशील देशों को देगा। जिन्हें जलवायु संकट से गहरा नुकसान पहुंचा है। ऐसा करने वाला यह पहला देश है। यह पैसा कुछ भी नहीं है लेकिन शुरूआत इसी गंभीरता से करनी होगी। 

पूजा की यह रिपोर्ट बता रही है कि मुंबई से सटे रायगढ़ जिले में कोस्टलाइन पर हुए एक अध्ययन में पाया गया कि क़रीब 55 हेक्टेयर तटीय क्षेत्र समंदर में समा चुका है, शुरूआती अध्ययन है लेकिन क्या यह इशारा नहीं है कि समुद्र का जल स्तर ऊपर उठ रहा है और इस तरह की आशंका कई बार जताई जा चुकी है।

जनवरी 2020 में जे पी नड्डा बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे।जे पी नड्डा पार्टी में चुनाव लड़ कर अध्यक्ष नहीं बने थे, क्योंकि उनके सामने किसी और नेता ने पर्चा ही नहीं भरा। इस तरह जे पी नड्डा अध्यक्ष पद का चुनाव बिना किसी विरोध और बहस के जीत गए। एक तरह से यह चुनाव नहीं था, मनोनयन था।ज़ाहिर है उनका चुनाव शीर्ष नेतृत्व ने किया न कि कार्यकर्ताओं ने। मिस्ड कॉल अभियान चला कर बीजेपी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा करती रही लेकिन सदस्य कितने सही हैं,इसकी जांच को लेकर सवाल उठे भी होंगे तो किसी ने ध्यान नहीं दिया होगा। उन सदस्यों की पार्टी अध्यक्ष चुनने में क्या भूमिका थी, इसे लेकर बात होनी चाहिए थी क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी में ऐसा होता तो बाकी दलों पर भी दबाव पड़ता कि वे भी ऐसा ही करें।


जनवरी 2020 में अध्यक्ष बनने से पहले जे पी नड्डा को 17 जून 2019 के दिन कार्यकारी तौर पर अध्यक्ष बनाया गया। तब से लेकर छह महीने तक बीजेपी पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं ढूंढ सकी। 2014 के लोक सभा चुनाव के बाद 9 जुलाई को अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष बनाए गए और इस पद पर पांच साल तक रहे। अमित शाह से पहले राजनाथ सिंह अध्यक्ष थे, अमित शाह चुनाव लड़ कर बीजेपी के अध्यक्ष बने या मनोनित किए गए। इस प्रश्न का जवाब इस बात से मिलता है कि जब नड्डा के खिलाफ किसी ने अध्यक्ष पद के लिए पर्चा नहीं भरा तो अमित शाह के खिलाफ किसी ने सोचा तक नहीं होगा।। मीडिया रिपोर्ट में लिखा है कि बीजेपी में आम सहमति से अध्यक्ष चुने जाने की परंपरा है। लेकिन यह आम सहमति किसके बीच बनती है, क्या इसमें कार्यकर्ता शामिल होते हैं? क्या हम और आप नहीं जानते कि आम सहमति कहां से तय होकर आती है? दुनिया की इस पार्टी में आम सहमति की परपंरा क्या लोकतांत्रिक कही जा सकती है? जब इस पार्टी में कोई भी कहीं से किसी भी पद पर पहुंच सकता है तो क्या उनमें से कोई भी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का सपना नहीं देखता होगा। क्या जे पी नड्डा के चुनाव में कार्यकर्ताओं की सहमति थी या प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की सहमति थी, दो लोगों की सहमति आम सहमति है तो फिर उन लाखों सदस्यों की क्या भूमिका है जिसके दम पर बीजेपी खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहती है। 

26 जून 2020 के दिन द प्रिंट में डी के सिंह का यह विश्लेषण है, हिन्दी में हेडलाइन का मतलब है कि कैसे अमित शाह ने जे पी नड्डा को रबर स्टाम्प अध्यक्ष बना दिया है। इस लेख में डी के सिंह उदाहरण देकर बता रहे हैं कि कैसे कई बड़े फैसलों में अमित शाह की चलती है, जे पी नड्डा की नहीं। जे पी नडडा का कार्यकाल जनवरी 2023 में खत्म हो रहा है लेकिन सूत्रो के हवाले से खबरें छपने लगी हैं कि उन्हें एक और विस्तार मिल सकता है। बीजेपी में कोई भी अध्यक्ष पद पर एक ही टर्म रह सकता है लेकिन 2012 में पार्टी का संविधान बदल दिया गया। नए नियम के मुताबित तीन तीन साल के दो बार अध्यक्ष पद पर कोई रह सकता है। यानी छह साल के लिए। 

मूल बात यह है कि हमारे सामने किसी भी दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने की पारदर्शी व्यवस्था नहीं है। यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है। इस सवाल के ज़रिए आप राजनीतिक दलों के भीतर कैसे निर्णय होते हैं, वो जानना चाहते हैं। व्यवस्था पारदर्शी होगी तो आपका भरोसा बढ़ेगा। लेकिन इससे भी बड़ा एक सवाल है। अध्यक्ष कैसे भी चुना जाए, आपको अंदाज़ा लग जाता है कि रबर स्टांप है या किसका आदमी है। लेकिन इन दलों में पैसा कौन लगा रहा है, हज़ार हज़ार करोड़ का चंदा कौन दे रहा है, आप नहीं जान सकते क्योंकि मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बान्ड का कानून ही इस तरह से बनाया है। अध्यक्ष कैसे भी चुना जाए अगर पार्टी और राजनीति करोड़ों रुपये का बान्ड खरीदने वाले अज्ञात लोगों के इशारे में चले, ये ज्यादा खतरनाक है।जब पूंजी ही गुप्त है, पारदर्शी नहीं है, तब सारे फैसले गुप्त माने जाने चाहिए। सारे फैसले किसी और के और किसी और के लिए माने जाने चाहिए। अच्छी बात है कि कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बहाने आतंरिक लोकतंत्र की चर्चा हो रही है। आज राहुल गांधी ने भी प्रेस कांफ्रेंस में एक नहीं कई बार इससे जुड़े सवालों का सामना किया और तंज भी किया कि इस देश में एक ही नेता हैं जो प्रेस कांफ्रेंस तक नहीं करते। राहुल ने उस एक नेता का नाम नहीं लिया, उन्हें नाम लेकर बताना चाहिए था कि प्रधानमंत्री मोदी ने आठ साल में एक बार भी खुली प्रेस कांफ्रेस नहीं की है। कांग्रेस में कई नेता आगे आ रहे हैं जो अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना चाहते हैं। अब ये सवाल अलग से जुड़ रहा है कि कौन बाहर की पार्टी के इशारे पर लड़ रहा है और कौन कांग्रेस के भीतर लोकतंत्र बहाल करने के लिए।

आज हर राजनीतिक दल खतरे में है। चुनाव हारने पर पार्टी में कई तरह के संकट उभर आते थे मगर अब संकटों के रुप बदल गए हैं। पूरी पार्टी ही तोड़ ली जा रही है। पार्टी को बचाना भी एक बड़ा काम हो गया है। अमरीका में राजनीतिक दल के भीतर कार्यकर्ता चुनाव करते हैं कि किसी चुनाव में उस पार्टी का उम्मीदवार कौन तय करेगा। यहां चाहे बीजेपी हो या कांग्रेस या कोई भी दल हो कार्यकर्ता का एक ही काम है झोला उठाना। आज कल आई टी सेल में ट्रोल का भी काम करना पड़ता है।अब इसके बाद सुशील बहुगुणा की लंबी रिपोर्ट है। हम लद्दाख का नाम इन दिनों चीन से सीमा विवाद के संदर्भ में ही सुनते हैं और समझने लगे हैं। मगर लद्धाख केवल सीमावर्ती इलाका भर नहीं है। यहां की आबो हवा बाकी भारत से काफी अलग है। 3500 से 5000 मीटर तक की ऊंचाई पर यहां आबादी बसती है। हवा में ऑक्सीजन कम होती है और सर्दी सितम ढाती है…फिर भी यहां के लोग सदियों से इस विषम मौसम में रहते आए हैं…लोगों ने सदियों से प्रकृति के हर हमले का सामना किया मगर अब शहरीकरण और नई जीवन शैली तरह तरह की बीमारियां लेकर आ रही है।लद्दाख में स्वास्थ्य व्यवस्था का ढांचा इन बढ़ती बीमारियों के आगे छोटा पड़ने लगा है…दिल्ली एम्स के डाक्टर अशोका मिशन के तहत इलाज करने जाते हैं मगर वह काफी नहीं है। लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश है तो इसकी स्वास्थ्य व्यवस्था भी स्थायी और बेहतर होनी चाहिए। ताकि इलाज के लिए यहां के लोगों को चंडीगढ़ और दिल्ली की दौड़ लगाने से छुटकारा मिल जाए। 

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